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देश में अधिकतर किसान आयकर नहीं देते अथवा कृषि भूमि पर आयकर की व्यवस्था नहीं है
divyahimachal.
देश में अधिकतर किसान आयकर नहीं देते अथवा कृषि भूमि पर आयकर की व्यवस्था नहीं है। किसान और कृषि के नाम पर छूट है और कई तरह की सबसिडी भी सरकार देती रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व व्यापार संगठन में कई देशों को इस व्यवस्था पर आपत्ति है। भारत पर उनका दबाव है कि कृषि की फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और सबसिडी को कम किया जाए। भारत सरकार उस मोर्चे पर भी किसानों के लिए लड़ती रही है। अब किसान आंदोलन के कुछ नेता एमएसपी के गारंटी कानून, मृत 689 किसानों के परिजनों को उचित मुआवजे और उनके स्मारक सरीखी मांगों पर अड़े हैं। पराली, बिजली, बीज से जुड़े कानूनों और बिलों की मांगें अलग हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को निर्देश दे दिए हैं कि आंदोलित किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमे और मामले वापस लिए जाएं। ऐसी कार्रवाई शुरू भी हो चुकी है। दिल्ली की सीमाओं पर धरना देते रहे किसानों में से 32 जत्थेबंदियों ने बैठक कर तय किया था कि अब आंदोलन समाप्त करना चाहिए और किसान घर-वापसी की शुरुआत करें। ऐसे ज्यादातर किसान पंजाब के हैं।
माना जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों के इन गुटों को समझा-मना रहे हैं। कैप्टन ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को भी ऐसी ही रणनीति अपनाने की सलाह दी है। हमारा दावा या आरोप नहीं है कि किसान आंदोलन बंट चुका है। हकीकत अपने आप सार्वजनिक होगी, लेकिन एमएसपी की मांग पर अड़े रहना भी व्यावहारिक नहीं है। किसान अपनी लामबंदी के जरिए सरकार पर दबाव बनाए रखना चाहते हैं। अलबत्ता सरकार ने कमेटी बनाने की बात कही है। लिखित प्रस्ताव भी आ जाएगा कि कमेटी का स्वरूप क्या होगा और समय-सीमा कितनी होगी। किसान अपने प्रतिनिधि कमेटी में भेज सकते हैं। नाहक भ्रम फैलाने या सरकार को कोसने से कोई समाधान नहीं निकलेगा। यदि फिर भी किसान एमएसपी के गारंटी कानून पर आमादा हैं, तो हमारा देशहित में एक विनम्र सुझाव है कि जिन किसानों के पास 2-3 हेक्टेयर से अधिक खेती-योग्य ज़मीन है और सालाना आमदनी 10-15 लाख रुपए से अधिक है, तो वे किसान आम करदाता की तरह आयकर दें। वे आयकर रिटर्न भी दाखिल करें। हम मानते हैं कि करीब 86 फीसदी किसानों के पास औसतन 2 हेक्टेयर या उससे भी कम ज़मीन है।
वे गरीब हैं, लेकिन जो बड़े ज़मींदार हैं, जिनके पेट्रोल पंप भी चलते हैं और जो चमचमाती कारों में सवार रहते हैं, उन्हें आयकर में छूट क्यों दी जाए? जब सरकार ने आयकर-छूट की नीति बनाई थी, तब आर्थिक स्थितियां कुछ और होंगी, लेकिन अब तो आर्थिक उदारीकरण का दौर है। बाज़ार विदेशों तक फैल चुके हैं। देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर भी बदल चुकी है। बड़े किसान आयकर क्यों न दें? उन्हें सबसिडी क्यों दी जाती रहे? यदि एमएसपी की गारंटी देनी है, तो सभी 265 फसलों पर दी जानी चाहिए। फिलहाल सरकार और उसका आयोग सिर्फ 23 फसलों पर ही एमएसपी की घोषणा करते हैं। दूध, मक्खन, मछली, अंडा आदि मुहैया कराने और पशुपालन, मछलीपालन, मुर्गीखाना चलाने वालों को भी एमएसपी क्यों न दिया जाए? कृषि विशेषज्ञ स्वामीनाथन ने अपनी रपट में अनुशंसा की थी कि गेहूं और धान पर एमएसपी देना बंद करें। उसके बजाय विविध फसलों पर एमएसपी तय किया जाए। फिलहाल एमएसपी गेहूं और धान पर ही सबसे ज्यादा है। गन्ने का भी सरकारी मूल्य घोषित किया जाता रहा है। यदि किसान वाकई 'अन्नदाता' है, तो सभी फसलें पैदा करने वाले किसान 'अन्नदाता' हैं और उन्हें भी तमाम सुविधाएं मिलनी चाहिए। जहां तक एमएसपी का सवाल है, चरण सिंह, देवीलाल और टिकैत भी इसे कानूनी दर्जा नहीं दिला पाए। मौजूदा दौर में यह और भी पेचीदा है, क्योंकि सभी राज्य सरकारों की सहमति भी अनिवार्य है।
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