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- क्रांतिकारी थे कलम के...
जाने-माने साहित्यकार व क्रांतिकारी यशपाल का हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान है। बचपन की यातनाएं, भूमिगत विद्रोही भावना तथा सात वर्ष की लंबी जेल ने उन्हें तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक ढांचे के विरुद्ध कर दिया। वे इस ध्येय को नहीं मानते थे कि कमजोर वर्गों के लोगों को भाग्य पर बैठ जाना चाहिए। वे जीवन में काफी शौकीन थे। अपने आपको ऐसे संवारते थे जैसे कोई बहुत बड़ा अवसर हो। अपने आपको वैसे सबके बराबर समझते थे और अपने लेखों व रचनाओं द्वारा लोगों को असमानता से संघर्ष की प्रेरणा देते थे। 3 दिसंबर सन् 1903 को हमीरपुर जिले के भूंपल गांव में साधारण परिवार में यशपाल जी का जन्म हुआ। दुर्भाग्यवश उनकी छोटी आयु में ही पिता जी का साया उठ गया। माता जी जीवन निर्वाह हेतु एक अध्यापिका के रूप में सेवारत हुई। बचपन लायलपुर व लाहौर में बीता, जहां उनकी माता अध्यापिका थी। यशपाल व उनके भाई ने प्रारंभिक शिक्षा आर्य समाज व गुरुकुल कांगड़ी में प्राप्त की। माता जी की यह प्रबल इच्छा थी कि यशपाल एक दिन स्वामी दयानंद के विचारों का प्रचारक बने। यशपाल जी ने सात वर्ष तक यहां अध्ययन कर, देश भक्ति व समाज सेवा की शिक्षा प्राप्त की। सख्त अनुशासन व शारीरिक अस्वस्थता ने यशपाल जी को गुरुकुल छोड़ने पर मजबूर कर दिया। वे फिरोजपुर गए जहां उनकी माता अध्यापन में कार्यरत थी। तत्पश्चात वे दयानंद वैदिक स्कूल लाहौर में शिक्षा प्राप्त करने गए। यहां उन्होंने उर्दू सीखी। तब उर्दू पत्रिकाओं की भरमार थी। परिवार की परिस्थितियों ने व निर्धनता की ठोकरों ने यशपाल पर एक गहरी छाप डाली। माता जी का प्रातः दो बच्चों का भोजन बनाना और सात बजे स्कूल जाना, शाम को जब स्कूल से थके-मांदे वापस आना तो बच्चों के कपड़े धोना और घरेलू सफाई करना इत्यादि से यशपाल काफी प्रभावित हुए। वे माता जी की पूरी सहायता करने के लिए गांव के कुएं से पानी लाते थे। बाजार से वस्तुएं खरीद कर लाते। यशपाल जी आर्य समाज मंदिरों में जाते। वहां वेद पढ़ते और कभी-कभी व्याख्यान देते। हरिजनों की अवस्था देखकर वे बहुत पश्चाताप करते। इसी कारण रात को उन्होंने पढ़ाने का कार्य आरंभ किया। बाद में वे 8 रुपए प्रति मास वेतन पर अध्यापक नियुक्त हुए। माता जी ने यशपाल जी को कांग्रेस के आंदोलन से जुड़ने की अनुमति दे दी। तब महात्मा गांधी के निर्देशन से ब्रिटिश स्कूलों व न्यायालयों का बहिष्कार हुआ था। नेशनल कालेज में प्रवेश के लिए यशपाल के साथ छात्रावास में शहीद भगत सिंह के साथी सुखदेव थे। वे सभी जानते थे कि यशपाल साहित्य में रुचि रखते हैं।