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विश्वविद्यालयी शिक्षा में क्रांतिकारी कदम
सोर्स- Jagran
प्रो. निरंजन कुमार : राष्ट्रीय शिक्षा नीति यानी एनईपी की दूसरी वर्षगांठ कुछ ही दिन पहले मनाई गई। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली नीति आयोग की बैठक में भी शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर गहन चर्चा हुई। 21वीं सदी की चुनौतियों से मुकाबले के लिए तैयार एनईपी-2020 के उद्देश्य बहुत उच्च और दूरगामी हैं, लेकिन इनका क्रियान्वयन अपने आप में एक चुनौती है। एनईपी-2020 का एक प्रमुख लक्ष्य विद्यार्थियों का चरित्र निर्माण है, ताकि शिक्षार्थियों के जीवन के सभी पक्षों और क्षमताओं का संतुलित विकास हो सके। भारतीय चिंतन परंपरा में चरित्र निर्माण और समग्र व्यक्तित्व विकास, विद्या या कहें कि शिक्षा का महत्वपूर्ण लक्ष्य माना जाता है। वर्तमान युग में चरित्र निर्माण और समग्र व्यक्तित्व विकास की जरूरत और बढ़ जाती है।
यह अनायास नहीं कि एनईपी-2020 की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया। मानव संसाधन से ध्वनित होता था कि मानवीय संवेदना, भावों एवं संस्कारों से रहित मनुष्य जैसे एक भौतिक संसाधन मात्र हों जिसे इस्तेमाल कर फेंक दिया जाए। यह एक तरह से पश्चिम के भौतिकवादी चिंतन से प्रेरित था। जबकि शिक्षा अभिधान मनुष्य के भौतिकवादी पहलू के साथ-साथ चारित्रिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक सभी पक्षों को समाहित करता है, जो भारतीय चिंतन-पद्धति का प्रतिबिंबन है। युवाओं की इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखकर एनईपी-2020 के क्रियान्वयन की दिशा में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा वैल्यू एडिशन कोर्सेस अर्थात मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम बनाए गए हैं। यह एक अभिनव और ऐतिहासिक कदम है।
पश्चिम से प्रभावित जीवनशैली, टेक्नोलाजी के खोल में सिमटती हुई दुनिया, रियल लाइफ के बजाय वर्चुअल लाइफ और इंटरनेट मीडिया का बढ़ता वर्चस्व, शारीरिक और श्रमपरक खेलकूद की जगह गैजेट गेम्स में उलझते जीवन, बढ़ते एकाकीपन ने देश के युवाओं को एक खतरनाक गिरफ्त में लेना शुरू किया है। इसका दुष्परिणाम है ऐसे असंतुलित व्यक्तित्व का निर्माण, जो स्वयं उनके लिए ही नहीं, बल्कि परिवार, समाज और देश के लिए भी अनुत्पादक और खतरनाक साबित हो रहा है।
आए दिन युवाओं से संबंधित अनेक असामान्य और डरावनी घटनाएं हमें देश भर से सुनने को मिलती हैं। शिक्षा के धरातल पर इन्हीं से निपटने के लिए एक सुचिंतित, सुविचारित और दूरगामी प्रयास है मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम। देश भर के विशेषज्ञों की सहायता से तैयार इन पाठ्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास और चरित्र निर्माण और टीम वर्क का विकास करना है। मैकाले माडल की तरह ये कोरे सैद्धांतिक कोर्स नहीं होंगे, बल्कि प्राचीन भारतीय अध्ययन पद्धति या आधुनिक काल में महात्मा गांधी के माडल से प्रेरित सभी कोर्सों में प्रायोगिक अध्ययन कम से कम 50 प्रतिशत होगा। इन पाठ्यक्रमों को विज्ञान, कला और कामर्स आदि सभी के छात्र पढ़ सकते हैं। ये पाठ्यक्रम हमारे युवाओं में सामाजिक दायित्व का बोध और सेवा का भाव भरने के साथ उनमें देशप्रेम का भाव भी विकसित करेंगे।
आगामी अकादमिक सत्र 2022-23 के पहले सेमेस्टर के लिए अब तक 24 कोर्स बनाए जा चुके हैं। पूरे स्नातक प्रोग्राम के लिए कुल लगभग सौ ऐसे कोर्स बनाए जाएंगे। वर्तमान के कुछ प्रमुख कोर्स इस प्रकार हैं-वैदिक गणित, स्वच्छ भारत, फिट इंडिया, आर्ट आफ बीइंग हैप्पी, इमोशनल इंटेलीजेंस, पंचकोश: होलिस्टिक डेवलपमेंट, भारतीय भक्ति परंपरा और मानव मूल्य, आयुर्वेद एंड न्यूट्रिशन, साइंस एंड सोसायटी, योग: फिलासफी एंड प्रैक्टिसेज, साहित्य, संस्कृति और सिनेमा, प्राचीन भारतीय परंपरा में आचार-नीति और मूल्य, कांस्टीट्यूशनल वैल्यूज एंड फंडामेंटल ड्यूटीज, डिजिटल एंपावरमेंट इत्यादि। वैदिक गणित का पाठ्यक्रम अपने ढंग का अद्वितीय कोर्स है।
यह हमारा दुर्भाग्य रहा कि गणित की अपनी प्राचीन समृद्ध विरासत को स्वाधीनता पश्चात भी हम अपने पाठ्यक्रमों में शामिल नहीं कर पाए। वैदिक गणित विद्यार्थियों की संगणन क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है। आइआइएम में प्रवेश के लिए कैट एग्जाम की कोचिंग कराने वाले संस्थान वैदिक गणित की टेक्निक सिखाते हैं। यही नहीं, वैदिक गणित विद्यार्थियों के क्रिटिकल थिंकिंग को भी बढ़ावा देगी और भारत के प्रति गौरव-सम्मान का भाव भी भरेगी।
युवाओं में बढ़ते असंतुलन, मानसिक तनाव और आक्रामकता आदि से निपटने में पंचकोश: होलिस्टिक डेवलपमेंट बहुत सहायक सिद्ध होगा। तैत्तिरीय उपनिषद में उल्लिखित 'पंचकोश' के आधार पर व्यक्तित्व-चरित्र का निर्माण युवाओं को एक नई दिशा देने का कार्य करेगा। योग: फिलासफी एंड प्रैक्टिसेज कोर्स भी आज के जटिल और तनावपूर्ण जीवन में बहुत उपयोगी सिद्ध होने वाला है। अन्य कोर्सों में भी भारतीय ज्ञान परंपरा के तत्वों को यथासंभव शामिल किया है। जैसे कांस्टीट्यूशनल वैल्यूज एंड फंडामेंटल ड्यूटीज वाले कोर्स में सेक्युलरिज्म के साथ-साथ सर्व धर्म समभाव की अवधारणा भी जोड़ी गई है। धर्म को लेकर हमारी संवैधानिक स्थिति सेक्युलरिज्म की अवधारणा के बजाय भारतीय सर्व धर्म समभाव की अवधारणा के ज्यादा अनुरूप है।
21वीं सदी में दुनिया में परचम लहराने को तैयार युवाओं का नया भारत आर्थिक रूप से तो तैयारी कर ही रहा है, लेकिन यह जरूरी है कि न्यू इंडिया संतुलित, चरित्रवान, सामाजिक दायित्व-बोध और राष्ट्रप्रेम के भाव से युक्त भी हो, तभी भारत पुन: जगद्गुरु बन पाएगा। आशा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के वैल्यू एडिशन कोर्सेस देश के विश्वविद्यालयों के लिए इस संदर्भ में एक माडल होंगे।
Rani Sahu
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