सम्पादकीय

हिजाब के खिलाफ क्रांति

Subhi
21 Sep 2022 3:21 AM GMT
हिजाब के खिलाफ क्रांति
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में शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर पाबंदी के विरोध में काफी बवाल मचा है और देश की शीर्ष अदालत में भी कानूनी जंग लड़ी जा रही है। लेकिन मुस्लिम देश ईरान में एक 22 वर्षीय महिला महसा अमीनी की मौत के बाद महिलाओं का आक्रोश भड़क उठा है

आदित्य नारायण चोपड़ा: में शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर पाबंदी के विरोध में काफी बवाल मचा है और देश की शीर्ष अदालत में भी कानूनी जंग लड़ी जा रही है। लेकिन मुस्लिम देश ईरान में एक 22 वर्षीय महिला महसा अमीनी की मौत के बाद महिलाओं का आक्रोश भड़क उठा है और वे जगह-जगह हिजाब के विरोध में प्रदर्शन कर रही हैं। तेहरान में विश्वविद्यालय के पास सैकड़ों महिलाओं ने हिजाब उतार कर सरकार विरोधी प्रदर्शन किया और कहीं-कहीं महिलाओं ने हिजाब भी जला दिए। कई महिलाएं सोशल मीडिया अकाऊंट पर अपने बाल काटे जाने का ​वीडियो भी शेयर कर रही हैं। महसा अमीनी को हिजाब न पहनने पर नैतिक पुलिस ने हिरासत में​ लिया था। हिरासत में उसे शारीरिक प्रताड़नाएं दी गईं, जिससे उसके सिर में चोट आई और अस्पताल में ईलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। अमीनी की मौत के बाद ईरान में ऐसी चिंगारी उठी कि उसने कई शहरों को अपनी चपेट में ले लिया। हिजाब के खिलाफ महिलाओं की इस जंग में ईरान सुलग रहा है, लेकिन ईरान इसे अपना घरेलू मामला करार देकर महिलाओं की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहा है। ईरान की महिलाओं के आक्रोश को देखकर पूरी दुनिया चौंक उठी है। जबकि कट्टरपंथी इस पर भड़के हुए हैं। किसी दौर में ईरान बहुत आधुनिक देश था। 1979 से पहले ईरान में शाह मोहम्मद रजा पहलवी का शासन था जो देश में आधुनिक शासन की स्थापना कर रहे थे। उन्होंने इस्लाम की कई रूढ़ीवादिता को चुनौती दी थी। इसी कारण उन्हें कट्टरपंथियों की चुनौती का सामना करना पड़ रहा था। रजा पहलवी ने देश में इस्लाम की भूमिका कम करनी शुरू कर दी थी और उन्होंने देश में पश्चिमीकरण को बढ़ावा देना शुरू कर दिया था। इससे देश के मुल्ला मौलवी चिढ़ गए थे और उन्होंने रजा पहलवी को अमेरिकी पिट्ठू बताकर जंग का ऐलान कर दिया था। अंततः उनके खिलाफ इस्लामिक क्रांति हो गई, जिस कारण उन्हें देश छाेड़ कर भागना पड़ा। तब आयतुल्ला खुमैनी खुद को ही एक अंतरिम सरकार का गठन कर ईरान का सर्वोच्च धार्मिक नेता घोषित कर दिया था। खुुमैनी ने देश में कट्टर धार्मिक कानून लागू कर दिये। कट्टर इस्लामी कानून के चलते खुले ईरान को बंद करके रख दिया। तेहरान में इससे पहले पैरिस और लंदन जैसा माहौल था। वह माहौल खत्म हो गया। महिलाओं के लिए बुर्का, हिजाब और इस्लामी तरीके से कपड़े पहनने का कानून बना दिया गया। जो महिलाएं ड्रैस कोड नहीं मानती उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है। ईरान की जनता और खास तौर पर महिलाएं धार्मिक कानूनों से तंग आ चुकी है । इस्लामिक क्रांति अब देशवासियों के लिए एक बुरा सपना बनके रह गई। धार्मिक ड्रैस कोड का उल्लंघन करने पर अब तक हजारों महिलाओं के खिलाफ मामले चलाए जा रहे हैं। ईरान में धर्म यांत्रिक बन चुका है। उसकी संवेदनशीलता सूखती जा रही है। इस्लामिक क्रांति के वारिस इसका इस्तेमाल एक वस्तु के रूप में कर रहे हैं। इस्लामिक क्रांति की नियति अब कुछ और ही दिखाई दे रही है। महिलाओं का विरोध वास्तव में धर्म आधारित सत्ता के खिलाफ विद्रोह है। इस विद्रोह को कुचलने के लिए ईरान के सुरक्षा बलों ने दमनकारी नीतियां अपनानी शुरू कर दी। प्रदर्शनकारी महिलाओं पर फायरिंग भी की गई। संपादकीय :असली श्राद्ध...राजनाथः मृदुता से भी मजबूतीमुस्लिम व ईसाई दलित?यूनिवर्सिटी कैंपस में बवालहैदराबाद का 'मुक्ति दिवस'आतंकवाद का समर्थक चीनईरान सरकार महिलाओं के ड्रैस कोड को लेकर इतनी कट्टर है कि प्रशासन सार्वजनिक परिवहन के मामलों में चेहरे की पहचान करने वाली टैक्नोलोजी को लागू करने पर विचार कर रही है, ताकि हिजाब कानूनों का सलीके से पालन नहीं करने वाली महिलाओं की पहचान हो सके। ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने हिजाब और शुद्धता कानूनों को नए प्रतिबंधों के साथ सख्ती से लागू करने का आदेश दे दिया है। इसके तहत अनुचित तरीके से हिजाब पहनने के साथ-साथ अब महिलाओं पर हाई हील्स और स्टोफिन्स पहनने पर भी रोक लगा दी है। अब महिलाओं के​ लिए गर्दन और कंधों को ढक कर रखना भी अनिवार्य है। आज स्विट्जरलैंड, डेनमार्क, फ्रांस, रूस, इटली आदि देशों में बुर्के और हिजाब पर बैन है। यहां तक कि मुस्लिम बाहुल्य देशों सीरिया और मिस्र में भी पूरा चेहरा ढकने पर प्रतिबंध लगा रखा है। केवल तीन या चार देशों में ही बुर्का और हिजाब पहनना अनिवार्य है। आज के दौर में महिलाएं ​वैचारिक रूप से पहले से कहीं अधिक स्वतंत्र हैं। उन्हें पाबंदियों में नहीं रखा जा सकता। हैरानी की बात यह है कि भारत में हिजाब को लेकर क्यों बवाल मचाया जा रहा है। ईरान में मजहब की आड़ में लूट की छूट मिली हुई है। इस्लामिक क्रांति का मूल उद्देश्य धुंधला पड़ चुका है। शासक वर्ग समाज की सच्चाइयों के प्रति उदासीन है। यदि धार्मिक नेतृत्व ने खुद को नहीं बदला तो महिलाओं की क्रांति एक न एक दिन उसे ही बदल देगी। भारत के मुस्लिम समाज को भी यह बात समझनी होगी कि जब कट्टरपंथी मुस्लिम देशों में हिजाब और बुर्के का विरोध हो रहा है तो भारत में तूफान क्यों खड़ा किया जा रहा है। भारतीय मुसलमानों को यहां दूसरे देशों के मुकाबले काफी हद तक स्वतंत्रता है। उन्हें अपनी सोच को प्रगतिशील बनाना होगा।

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