सम्पादकीय

टीका नीति की समीक्षा हो

Neha Dani
4 Jun 2021 2:30 AM GMT
टीका नीति की समीक्षा हो
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अपनी गलतियां दुरुस्त करते हुए ही हम इस कठिन दौर से निकल सकते हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेसक | सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार की वैक्सीन नीति पर जो तीखी टिप्पणी की है, उसे संदर्भ से काटकर नहीं देखा जा सकता। कोर्ट ने पहले दो फेज में स्वास्थ्यकर्मियों, फ्रंटलाइन वर्करों और 45 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए मुफ्त वैक्सीन मुहैया कराने और बाद में 18-44 वर्ष उम्र समूह के लोगों से टीके की कीमत चुकाने के लिए कहने की नीति को पहली नजर में मनमाना और बेतुका बताया है। इतना ही नहीं, उसने वैक्सिनेशन की कथित लिबरलाइज्ड पॉलिसी के विभिन्न पहलुओं की विसंगतियों की ओर ध्यान दिलाया। यह भी कहा कि सरकार उठाए गए सवालों की रोशनी में टीकाकरण नीति की फिर से समीक्षा करे और दो हफ्ते में हलफनामा दायर कर अदालत को उसमें किए गए बदलावों की विस्तार से जानकारी दे। शीर्ष अदालत के इस कड़े रुख के पीछे निश्चित रूप से देश में पिछले कुछ समय से टीकाकरण को लेकर देखी जा रही अनिश्चितता और अव्यवस्था की स्थिति का भी हाथ है। न केवल टीके की अलग-अलग कीमतों को लेकर राज्य सरकारें केंद्र से शिकायत करती रही हैं बल्कि टीके की सप्लाई को लेकर भी अनिश्चितता का आलम रहा।

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कई राज्यों में बहुत सारे टीका केंद्र तात्कालिक तौर पर बंद करने पड़े तो कई जगह से लोगों को घंटों इंतजार के बाद भी बिना टीका लगवाए वापस लौटने की नौबत आई। ऐसी शिकायतें भी मिलीं कि कुछ प्राइवेट अस्पतालों को टीके की सप्लाई हो रही है, लेकिन राज्य सरकारों को उसकी पर्याप्त मात्रा नहीं मिल पा रही। इन्हीं स्थितियों के मद्देनजर अदालत ने अपने इस आदेश में स्पष्ट किया है कि संविधान में शक्ति और अधिकारों का बंटवारा किए जाने का मतलब यह नहीं है कि जब कार्यपालिका की नीतियों की वजह से नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो न्यायपालिका मूकदर्शक बनी रहेगी। इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया था कि कार्यपालिका की समझ पर भरोसा करते हुए कोर्ट को नीतियां निर्धारित करने का काम उस पर छोड़ देना चाहिए। अदालत ने उस संदर्भ में कहा कि न्यायिक समीक्षा के तहत उसका काम यह देखना है कि बनाई गई नीतियां संविधान द्वारा तय मानकों के अनुरूप हैं या नहीं और लोगों के जीने के अधिकार की रक्षा करती हैं या नहीं। बहरहाल, अभूतपूर्व चुनौतियों से भरे इस दौर में शासन के विभिन्न अंगों के नेक इरादों पर पूरा भरोसा जताते हुए भी यह कहना जरूरी है कि वे समझदारी के साथ-साथ संयम का भी दामन थामे रहते हुए आगे बढ़ें। जरा सी भी गलतफहमी उनसे ऐसी गलतियां करवा सकती है, जिसकी देशवासियों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। एक-दूसरे के साथ सहयोग और सामंजस्य बनाए रखते हुए और हर कदम पर अपनी गलतियां दुरुस्त करते हुए ही हम इस कठिन दौर से निकल सकते हैं।


Neha Dani

Neha Dani

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