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जिस समय अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएं सरकारों को अपनी जनता को राजकोष से मदद देने की सलाह दे रही हैं
By NI Editorial
जिस समय अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएं सरकारों को अपनी जनता को राजकोष से मदद देने की सलाह दे रही हैं, उसी समय ये हैरान करने वाली खबर आई है कि जीएसटी काउंसिल की अगली में बैठक में जीएसटी की न्यूनतम दर को पांच से बढ़ा कर आठ प्रतिशत करने पर विचार किया जाने वाला है।
कोरोना महामारी की वजह से पड़ी आर्थिक मार से जूझ रही दुनिया पर जिस समय यूक्रेन युद्ध की वजह से एक नई आर्थिक मुसीबत आ पड़ी है, तब कोई सरकार आम जनता पर टैक्स बढ़ाने को सोच सकती है, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल लगता है। जिस समय अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएं सरकारों को अपनी जनता को राजकोष से मदद देने की सलाह दे रही हैं, उस समय भारत की नरेंद्र मोदी सरकार आम जन की जेब से और पैसा निकालने की सोचेगी, सहसा इस खबर पर यकीन नहीं होता है। लेकिन ये हैरान करने वाली खबर आई है कि जीएसटी काउंसिल की अगली में बैठक में जीएसटी की न्यूनतम दर को पांच से बढ़ा कर आठ प्रतिशत करने पर विचार किया जाने वाला है। जीएसटी एक परोक्ष कर है। यह आम आर्थिक समझ है कि परोक्ष करों की मार कम आय वाले वर्गों पर ज्यादा पड़ती है। जबकि प्रत्यक्ष करों का बोझ समृद्ध और संपन्न तबकों को उठाना पड़ता है। नरेंद्र मोदी सरकार की दिशा आरंभ से ही प्रत्यक्ष करों में छूट देने और परोक्ष करों का बोझ बढ़ाने की रही है। जीएसटी उसका सिर्फ एक उदाहरण है। पेट्रोल- डीजल पर उत्पाद शुल्क और अधिभार बढाते जाना भी उसकी इसी सोच का परिणाम है।
अर्थशास्त्र में ऐसी कर नीति को आम जन की जेब से धनी तबकों के खजाने में धन का ट्रांसफर कहा जाता है। अब सरकार ट्रांसफर की गति और मात्रा में बढ़ोतरी करने का इरादा दिखा रही है। खबर के मुताबिक वित्त मंत्री इस महीने के आखिर में जीएसटी काउंसिल की होने वाली बैठक में एक रिपोर्ट पेश करेंगी, जिसमें जीएसटी की न्यूनतम दर में तीन प्रतिशत के इजाफे की सिफारिश की जाएगी। बताया गया है कि अगर ऐसा हुआ, तो उससे सरकार को हर साल डेढ़ लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय होगी। जबकि अगर सरकार ने 2019 में कॉरपोरेट टैक्स में जो छूट दी थी, सिर्फ उसे वापस ले ले, तो वह इतनी ही रकम जुटा सकती है। आखिर कॉरपोरेट टैक्स में उस छूट से ना तो अर्थव्यवस्था में प्राइवेट निवेश बढ़ा, ना ही नई नौकरियां पैदा हुईं। खुद उद्योग जगत ने कहा है कि जब बाजार में मांग घटती गई है और उसके पास उत्पादन की ओवर कैपेसिटी है, तो नया निवेश कोई क्यों करेगा। लेकिन ये बात सरकार को समझ नहीं आई है। वह मांग घटाने वाला एक और कदम उठाने जा रही है, जिससे देश की आर्थिक बदहाली निश्चित रूप से और बढ़ेगी।
नया इण्डिया
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