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- समाज की उलटी दिशा
By NI एडिटोरियल
सदियों तक गुलामी की जंजीर में रहने के बाद भारत के पुनरुत्थान की कहानी समाज सुधार के आंदोलनों के साथ शुरू हुई थी। राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योति बा और सावित्री बाई फुले, महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद से लेकर महात्मा गांधी तक को जोड़ने वाले तार उनके समाज सुधार के लिए किए गए प्रयत्न ही थे। अब अगर समाज उसके पहले जहां था, उसी दिशा में जाने के लिए मुड़ चुका है, तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसका क्या परिणाम होगा। इस दिशा के संकेत अनेक हैं। उनमें ही एक ताजा मामला मध्य प्रदेश के दमोह जिले के एक आदिवासी बहुल गांव में सामने आया। यह देखने की बात है कि आज के दौर में भी कैसे-कैसे विश्वास इस देश में प्रचलित हैं। उससे भी ज्यादा ध्यान देने की बात यह है कि उन अंधविश्वासों को लेकर समाज में कोई बेचैनी नहीं फैलती है। ऐसी घटनाएं महज एक छोटी खबर बन कर रह जाती हैँ। बहरहाल, मध्य प्रदेश का वो इलाका फिलहाल बारिश काफी कम होने की वजह से सूखे से जूझ रहा है।