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बिहारी अस्मिता एक बार फिर से आहत हुई है
प्रवीण कुमार।
बिहारी अस्मिता एक बार फिर से आहत हुई है. अभी कुछ दिन पहले पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit singh Channi) की अभद्र टिप्पणी के बाद अब तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ए. रेवंत रेड्डी ने 'बिहारी डीएनए वाला केसीआर' (Bihari DNA) का मुद्दा उछालकर एक नए राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है. इसके बाद से बिहार समेत पूरे देश में सिकुड़ती कांग्रेस (Congress) पर चौतरफा हमला शुरू हो गया है. इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया के मानचित्र पर जो पहचान भारत की रही है, भारत में बिहारी भी उसी हैसियत से पहचाना जाता है.
इसलिए जब भी कोई भारतीय शख्स बिहार, बिहारी होने या बिहार के डीएनए पर अभद्र टिप्पणी करता है तो वह जाने-अनजाने में भारतीय होने पर भी अभद्र टिप्पणी कर रहा होता है. कांग्रेस पार्टी के नेता और कार्यकर्ता इतनी सी बात नहीं समझने की गलती बार-बार कर रहे हैं. तो ऐसे में क्या यह मानना सही होगा कि देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी क्षेत्रवाद की राजनीति को बढ़ावा दे रही है? और क्षेत्रीय अस्मिता की खूबसूरती को तहस-नहस कर रही है?
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का बढ़ता राजनीतिक कद विरोधी दलों खासकर कांग्रेस पार्टी के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. लिहाजा एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी का दौर भी शुरू हो गया है.
इसकी पहली किस्त जारी की है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ए. रेवंत रेड्डी ने. एक बयान में सीएम पर तंज कसते हुए रेड्डी ने कहा कि केसीआर के पूर्वज बिहार से हैं. शायद इसीलिए उन्होंने प्रदेश के मुख्य सचिव का पद सोमेश कुमार और प्रभारी पुलिस महानिदेशक का पद अंजनी कुमार को दिया है. ये दोनों अधिकारी बिहार से हैं. इसके अलावा नगर प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव अरविंद कुमार, संदीप कुमार सुल्तानिया सहित राज्य प्रशासन में कई बड़े अधिकारी बिहार से है. इतना ही नहीं, आगामी चुनाव को जीतने के लिए केसीआर अब बिहार से ही आने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मदद ले रहे हैं.
रेवंत ने सूबे के लोगों से सवालिया लहजे में पूछा भी, क्या वे चाहते हैं कि कई बलिदानों के बाद मिले हमारे तेलंगाना पर कोई बिहारी राज करे? इतना ही नहीं, रेड्डी ने तेलंगाना के आईएएस और आईपीएस अधिकारियों से 'तेलंगाना का पौरुषम' दिखाने के लिए पद छोड़ने तक का आह्वान कर दिया. साफ है, कांग्रेस नेता तेलंगाना के पौरुषम को जगाकर और क्षेत्रवाद के मुद्दे को उभारकर आने वाले चुनाव में टीआरएस को चुनौती देना चाहते हैं.
कहीं क्षेत्रवाद में तो नहीं फंस गई है कांग्रेस?
निश्चित रूप से ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस पार्टी पिछले कुछ दशकों से क्षेत्रवाद की राजनीति में उलझ गई है. जब तक कांग्रेस अपने राजनीतिक आचार और व्यवहार से क्षेत्रीय अस्मिता का सम्मान करती रही, केंद्र और अधिकांश राज्यों में कांग्रेस की सत्ता रही. लेकिन जैसे-जैसे पार्टी ने क्षेत्रीय अस्मिता से दूरियां बनाई, राज्यों में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उभार होने लगा. पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु आदि ऐसे तमाम राज्य हैं जहां कभी कांग्रेस पार्टी की सत्ता होती थी, आज क्षेत्रीय दलों की सत्ता है. हालांकि इन तमाम राज्यों में आज भी कोई विकास नहीं हो पाया है. तो कह सकते हैं कि इन राज्यों के लोगों के लिए विकास के मुकाबले क्षेत्रीय अस्मिता ज्यादा अहम है.
क्षेत्रीय स्वाभिमान ज्यादा अहम है. यह सर्वविदित तथ्य है कि बिहार की मेधाशक्ति पूरे देश में राज करती है. चाहे आंध्रप्रदेश कैडर हो, महाराष्ट्र कैडर हो, केरल कैडर हो या फिर बिहार, यूपी का कैडर हो, सबमें बिहारियों का एकाधिकार रहा है. ऐसे में अगर तेलंगाना का मुख्य सचिव या अन्य प्रशासनिक अधिकार बिहारी है तो इसमें बिहारी डीएनए की क्या गलती है? तेलंगाना की स्थापना से लेकर अब तक सूबे में पांच मुख्य सचिवों की नियुक्ति हो चुकी है. सोमेश कुमार 5वें मुख्य सचिव हैं. इनमें से कट्टी प्रदीप चंद्रा को छोड़ बाकी चारों मुख्य सचिव तेलंगाना के नहीं हैं.
बार-बार आहत होती रही है बिहारी अस्मिता
ऐसा नहीं है कि बिहारी अस्मिता कोई पहली बार आहत हुई है. जब जिसे मुफीद लगता है, वो अपने बयान से ठेस पहुंचा जाता है. साल 2015 की बात है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मुजफ्फरपुर में आयोजित एक चुनावी जनसभा में नीतीश कुमार की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि इनके डीएनए में ही खोट है. ये अलग बात है कि आज की तारीख में नीतीश और मोदी दोनों एक ही नाव पर सवार हैं लेकिन बिहार की अस्मिता तब भी आहत हुई थी. पलटवार करते हुए तब नीतीश कुमार ने भी डीएनए की बात को बिहारी स्वाभिमान से जोड़ते हुए कहा था, ये किसके डीएनए की बात कर रहे हैं? मैं कौन हूं? मैं कहां से आया हूं? ये तो बिहार के डीएनए पर ऊंगली उठाई गई है. तब भाजपा बिहार में चुनाव हार गई थी. मुम्बई की राजनीति में खासा दखल रखने वाले बाल ठाकरे को मुंबई आकर बसने वाले उत्तर भारतीयों के खिलाफ आग उगलने के लिए जाना जाता था. उस वक्त यूपी-बिहार के लोगों को एक खास शब्द 'भईया' कहकर पुकारा जाने लगा था.
साल 2008 में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना में प्रकाशित संपादकीय में बिहारियों के लिए 'गोबर का कीड़ा' और 'एक बिहारी सौ बीमारी' जैसी संज्ञा का इस्तेमाल किया था. तभी बिहारी अस्मिता और स्वाभिमान को जगाने के लिए 'एक बिहारी सौ पर भारी' नारा लगाया गया था. पिछले साल बंगाल चुनाव के दौरान ममता बनर्जी भी लगातार अपने बयानों में यूपी-बिहार से आए लोगों को गुंडा बताकर निशाना साधती रहीं. अभी हाल में पंजाब चुनाव प्रचार के दौरान सीएम चरणजीत चन्नी ने प्रियंका गांधी की मौजूदगी में बिहारियों को लेकर विवादित बयान में कहा था, 'यूपी, बिहार और दिल्ली वालों को यहां राज नहीं करने देंगे और न ही पंजाब में फटकने देंगे. इस बयान को भी बिहारी अस्मिता से जोड़कर देखा गया था और कांग्रेस को जवाब देना भारी पड़ गया था. अब जबकि दक्षिणी राज्य तेलंगाना से बिहारी डीएनए पर कांग्रेस ने सवाल उठाया है तो बिहार में कांग्रेसी नेताओं की मुश्किलें बढ़ गई हैं.
बहरहाल, तेलंगाना में अगले साल चुनाव होने हैं. मुख्यमंत्री केसीआर जान रहे हैं कि अगले चुनाव में उनकी चुनौतियां बढ़ने वाली हैं. भाजपा का तेलंगाना में प्रभाव लगातार बढ़ रहा है. कांग्रेस को भी कम आंकना केसीआर के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है. लिहाजा केसीआर आगामी चुनाव में राजनीतिक और रणनीतिक तौर पर ऐसी कोई गलती नहीं करना चाहते हैं जो उन्हें और उनकी पार्टी को सत्ता से बाहर कर दे. प्रशांत किशोर बिहार के रहने वाले हैं लेकिन चुनावी रणनीतिकार के तौर पर अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग राजनीतिक दलों को सेवा देना उनका पेशा है. इसमें बिहारी डीएनए की कोई भूमिका नहीं है. प्रशांत किशोर आंध्रा में जगन रेड्डी को भी अपनी सेवा दे चुके हैं. ऐसे में बिहारी अस्मिता को आहत कर कांग्रेस खुद के लिए परेशानी खड़ा रही है. कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है और उसे यह समझने में कोई गलती नहीं करनी चाहिए कि तेलंगाना में बिहारी अस्मिता या यूपी अस्मिता को ठेस पहुंचाकर बिहार और यूपी में कांग्रेस अपनी अस्मिता को किस तरह से बचा पाएगी. तेलंगाना का कोई आईएएस अगर बिहार का मुख्य सचिव बनता है तो इसका मतलब यह थोड़े ही है कि नीतीश कुमार का डीएनए तेलंगाना का डीएनए हो जाएगा. ऐसे में इस तरह के बयान से कांग्रेस नेताओं को परहेज करना चाहिए.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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