सम्पादकीय

परिवार की ओर लौटता पश्चिम: औरतें अब घर और नौकरी के बोझ से थक चुकी हैं, वे नौकरियां छोड़कर घर की तरफ लौट रही हैं

Gulabi
23 Nov 2020 9:22 AM GMT
परिवार की ओर लौटता पश्चिम: औरतें अब घर और नौकरी के बोझ से थक चुकी हैं, वे नौकरियां छोड़कर घर की तरफ लौट रही हैं
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कमला हैरिस उपराष्ट्रपति पद पर पहुंचने वाली वह पहली महिला जरूर हैं, मगर आखिरी नहीं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। एक ओर कुछ समाजों ने पहले परिवारों को औरतों का सबसे बड़ा शोषक और उनकी गुलामी का कारण बताया, वहीं इन दिनों ट्रेडिशनल वाइफ मूवमेंट सिर उठा रहा है। यह देखना दिलचस्प है कि इस आंदोलन से वे औरतें भी जुड़ रही हैं, जो उच्च शिक्षित हैं और अपने-अपने क्षेत्र में बेहद सफल रही हैं। कई साल पहले एक भारतीय अंग्रेजी पत्रिका ने एक बड़ा लेख छापा था, जिसका शीर्षक था-कमला कम्स बैक होम। यानी कमला की घर वापसी। इसमें बताया गया था कि औरतें अब घर और नौकरी के बोझ से थक चुकी हैं। वे ऊंचे वेतन छोड़कर घर की तरफ लौट रही हैं। इसमें जिन औरतों से बातचीत की गई थी, वे सब बेहद पढ़ी-लिखी और सफल करियर वुमन रह चुकी थीं।

कमला हैरिस उपराष्ट्रपति पद पर पहुंचने वाली वह पहली महिला जरूर हैं, मगर आखिरी नहीं

आज कमला हैरिस की चर्चा चारों ओर है। इसे औरतों खासतौर से अश्वेत और एशियाई महिलाओं के परचम लहराने के तौर पर देखा जा रहा है। कमला की जीत को दुनिया भर में नारीवादियों ने अपनी जीत की तरह देखा है। कमला ने कहा भी है कि इस पद पर पहुंचने वाली वह पहली महिला जरूर हैं, मगर आखिरी नहीं हैं। देखना है कि कमला हैरिस उपराष्ट्रपति रहते हुए अमेरिका की उन नीतियों में आखिर कौन से परिवर्तन कर पाती हैं, जो अपनी ताकत के आगे दुनिया को कुछ नहीं समझता है। हालांकि इसी अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर की पत्नी 1993 से परिवार की वापसी का आंदोलन चला रही हैं। गोर संयोग से डेमोक्रेट ही थे।


यदि बच्चों को नशे के खतरे से बचाना है, अच्छा नागरिक बनाना है, तो परिवार चाहिए

इसका एक कारण तबसे यही बताया जा रहा है कि वहां के बड़े समाजविज्ञानी, मनोविज्ञानी और बच्चों के लिए काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि यदि बच्चों को नशे के खतरे से बचाना है, अपराध की दुनिया से दूर रखना है और उन्हें अच्छा नागरिक बनाना है, तो परिवार चाहिए। जबकि हमारे यहां पश्चिम के समाज का मानकीकरण करने का विचार जोरों पर है। इसीलिए यहां 'क्वीन' जैसी फिल्में हिट हो जाती हैं। जिस अकेलेपन से पश्चिम दूर भाग रहा है, हम उसे अपने लिए सब दुखों से निजात पाने का महामंत्र समझ रहे हैं। हालांकि परिवार का जो शोषण मूलक स्वरूप है, जो औरतों को तमाम तरीके की गुलामी सौंपता है, उसे तो दूर होना ही चाहिए। मगर परिवार तोड़कर औरतों को मुक्ति मिल जाएगी, यह भी सच नहीं है। वरना पश्चिम से परिवार की वापसी और ट्रेडिशनल वाइफ मूवमेंट के नारे क्यों लगते।

औरतें अपने परिवार की घरेलू जिम्मेदारियों को निभाना चाहती हैं

इस आंदोलन का मुख्य चेहरा ऐलेना पेरिट हैं। वह ब्रिटेन में रहती हैं और मशहूर ब्लॉगर तथा लेखिका भी हैं। ऐलेना का कहना है कि जो औरतें अपने परिवार की जिम्मेदारी निभाना चाहती हैं, अपने बच्चों तथा घर की देखभाल करना चाहती हैं, वह उन्हें आगे बढ़ाती हैं। वह मानती हैं कि बड़ी संख्या में औरतें अपने परिवारों को पसंद करती हैं। वे अपने घर में रहकर तमाम किस्म की घरेलू जिम्मेदारियों को निभाना चाहती हैं। वे सफल करियर छोड़कर अगर घर की तरफ लौटना चाहती हैं, तो नारीवादियों को उनका मजाक उड़ाने, उन्हें तुच्छ समझने का कोई हक नहीं है।


ऐलेना की मीडिया में आलोचना भी हो रही है

ऐलेना के साथ बहुत-सी अमेरिकी, ऑस्ट्रेलियाई और ब्रिटिश औरतें जुड़ रही हैं। हालांकि वहां के मीडिया में इनकी बहुत आलोचना भी हो रही है। यूरोप के एक बड़े अखबार ने तो औरतों के इस तरह के विचार को नाजी विचार बताया है। यही नहीं, वहां मीडिया इसे स्त्रीवाद के खिलाफ प्रतिक्रिया की तरह भी देख रहा है। इसे बढ़ती स्त्री असुरक्षा से भी जोड़ा जा रहा है। इस पर ऐलेना और उनकी संगी-साथियों का कहना है कि वे इन दिनों दफ्तर में होने वाले काम के दबाव को नहीं झेल सकतीं। तब तो और भी नहीं, जब उनके पति अच्छा कमाते हैं। पैसे के लिए वे अपने बच्चों के जीवन को बर्बाद कैसे होने दें। यही नहीं, यदि वे अपने-अपने पति को पसंद करती हैं, घर में रहकर घर संभालना चाहती हैं, तो यह उनका चुनाव है।


बेहतर है घरेलू जिम्मेदारियां निभाई जाएं

आखिर यह किसी महिला पर ही निर्भर है कि वह घर में रहना चाहती है या नौकरी करना चाहती है। इसके अलावा तमाम औरतें यह भी मानती हैं कि सरकारें तमाम किस्म की सामाजिक सुरक्षा, घर को आसानी से चलाने वाली योजनाओं से हाथ खींच रही हैं। ऐसे में महिलाओं के इस आंदोलन की आलोचना के बजाय इसे समझना जरूरी है। आखिर जिम जाकर, ट्रेडमिल पर चढ़कर वजन घटाने से बेहतर है कि घरेलू जिम्मेदारियां निभाई जाएं। इससे घर भी संभल सकता है और वजन भी कम रह सकता है। वे दफ्तर के काम के बोझ को उठाए घर नहीं लौटना चाहतीं। दरअसल इस आंदोलन के उभार का कारण स्त्रीवाद की तरह-तरह की अति और दफ्तरों में बदलती कार्य संस्कृति को भी माना जा रहा है। विकसित देशों के दफ्तरों में औरतों को बहुत काम करना पड़ता है। ऐलेना के इस विचार का अमेरिका की एक सफल उद्योगपति डिक्सी एंडेलिन भी समर्थन करती हैं।


पति, परिवार और घर को पसंद करना कोई अपराध नहीं है

इस आंदोलन से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि आखिर अपने पति, परिवार और घर को पसंद करना कोई अपराध तो नहीं है। मजेदार तो यह है कि इस आंदोलन से जुड़ी महिलाएं पिछली सदी के छठे दशक में लौटना चाहती हैं। वे कहती हैं कि वे अपने पति को पहला स्थान देना चाहती हैं, क्योंकि उनके पति भी उन्हें वही वरीयता देते हैं। वे स्त्रीवाद के उस कथन को को सिरे से नकारती हैं कि औरतों की जिंदगी में वर्क-लाइफ बैलेंस होना चाहिए। वे कहती हैं कि अगर वे पत्नी बनकर रहना चाहती हैं, तो इससे किसी को क्या तकलीफ। यह उनकी मर्जी। उनका व्यक्तिगत निर्णय है। जाहिर है यह हमारे समक्ष एक नई चुनौती और दुविधा है। साथ ही यह सोचने का अवसर भी है कि आखिर कट्टर स्त्रीवाद कितना कारगर है और यह उन स्त्रियों को क्यों नहीं लुभा पा रहा, जो हर तरह से सक्षम हैं।

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