सम्पादकीय

पाबंदी की राजनीति

Gulabi
9 Oct 2020 10:39 AM GMT
पाबंदी की राजनीति
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अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव के दिन जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव के दिन जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, मुद्दे या फिर उन्हें तूल देने के मामले में जिस तरह के आग्रहों का प्रदर्शन हो रहा है, उससे साफ है कि वास्तविक तस्वीर पर लोकप्रिय धारणाओं को हावी करने की कोशिश जारी है। खासतौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ऐसा लगता है कि जीत की खातिर जरूरी समर्थन जुटाने के लिए लोकप्रिय धारणाओं पर आधारित मुद्दों का सहारा लेना ही मुख्य रास्ता है। शायद यही वजह है कि वे एच-1बी वीजा से जुड़े नियमों को और सख्त करके संदेश देना चाहते हैं कि अमेरिकी लोगों के हित के बारे में खयाल करने वाले अकेले नेता वही हैं। दरअसल, एच-1बी वीजा नियमों के मसले पर ट्रंप ने यह पहलकदमी करीब चार महीने पहले की थी, जिसके जरिए वे यह बताना चाहते हैं कि दुनिया के दूसरे देशों से अमेरिका में आए लोग अमेरिकियों के लिए रोजगार के अवसर कम कर रहे हैं। इसलिए इस एच-1बी नियमों को सख्त बना कर इस चलन पर पर लगाम लगाई जाए। अब एक बार फिर ट्रंप ने इससे संबंधित नियमों को और सख्त करने की घोषणा की है।

जाहिर है, चुनाव के दिन करीब आने के साथ-साथ ट्रंप एक तरह से इसी लोकप्रिय धारणा का सहारा लेकर लोगों की भावनाओं को अपनी ओर खींचना चाहते हैं कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में अमेरिकियों के हितों की फिक्र वही करते हैं। सच यह है कि एच-1बी वीजा से जुड़े नियमों को मुद्दा बनाने का मौका इस वजह से आया है कि वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण और पूर्णबंदी जैसे हालात में समूचे देश में रोजगार और व्यवसाय पर विपरीत असर पड़ा और लाखों लोगों को रोजगार से वंचित होना पड़ा है। ऐसे में रोजगार निश्चित रूप से एक बड़ा मुद्दा हो गया है। ताजा कवायद के बाद अमेरिका में वाइट हाउस की ओर से यह कहा गया है कि इससे अमेरिकी लोगों की नौकरियां बचाने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद मिलेगी। सवाल है कि क्या गैर-अमेरिकियों के लिए अवसरों में कमी करके ही इस समस्या का हल निकाला जा सकता है? क्या इस तरह के नियमों में समस्या का हल खोजने से पहले यह सोचा गया कि किसकी सुविधा और किसके मुनाफे के लिए ऐसे कायदे बनाए गए और किन वजहों से अमेरिकी लोगों के मुकाबले आप्रवासियों को नौकरी पर रखा गया?

भारत के लिहाज से इसका बड़ा असर यह पड़ सकता है कि बड़ी तादाद में आप्रवासी भारतीयों की मौजूदा स्थिति बुरी तरह प्रभावित होगी। खासतौर पर भारतीय सूचना तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवर लोगों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसमें अमेरिकी कंपनियों के लिए विदेशी कर्मचारियों को काम पर रखने और भत्तों से जुड़ी शर्तों में बदलाव कर दिए गए हैं। वहीं, अमेरिका में काम कर रही भारतीय आइटी कंपनियों को स्थानीय लोगों को काम पर रखने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। यानी अगर अमेरिका में प्रवासी भारतीयों को रोजगार मिल रहा था तो इसकी एक बड़ी वजह अपेक्षया सस्ता श्रम था। इसके बावजूद ट्रंप अपनी राजनीतिक स्थिति कमजोर पड़ते जाने के दौर में इस तरह के कदम उठाने की घोषणा कर रहे हैं। संभव है कि ऐसे कदमों से कुछ अमेरिकियों का समर्थन उन्हें मिल जाएं, लेकिन यह भी तथ्य है कि अमेरिका में रहने वाले भारी तादाद में अप्रावसी भारतीय लोगों पर इसका स्वाभाविक और विपरीत असर पड़ सकता है। भविष्य में अगर स्थितियां सामान्य होती हैं और फिर से दूसरे देशों के लोगों के लिए यही रास्ता खोला गया तो लोग कैसे भरोसा कर पाएंगे और रोजगार के लिए अमेरिका जाने का जोखिम कैसे उठा पाएंगे?

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