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- जिम्मेदार आज़ादी:...
निस्संदेह देश में सोशल और डिजिटल मीडिया के विस्तार ने अभिव्यक्ति की आजादी को नया आकाश दिया है। लेकिन जब इस आजादी का दुरुपयोग समाज में भ्रम, विद्वेष, अश्लीलता और अराजकता फैलाने के लिए निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा किया जाने लगे तो चिंता स्वाभाविक ही थी। कई मामलों में तो 'बंदर के हाथ में उस्तरे' जैसी कहावत भी चरितार्थ होने लगी। फर्जी खबरों की डिजिटल व सोशल मीडिया पर बाढ़ आने लगी।
यहां तक कि अपराधी भी धड़ल्ले से इन माध्यमों का दुरुपयोग करने लगे। वहीं देश की संप्रभुता और राष्ट्रीय एकता को चुनौती देने वाले प्रसंग भी सामने आये। यौन हिंसा के वीभत्स चित्रण से उपजे संकट पर देश की शीर्ष अदालत भी चिंता जाहिर कर चुकी है। शायद ऐसी चिंताओं के मद्देनजर ही केंद्र सरकार के कानून व सूचना प्रसारण मंत्रियों ने बृहस्पतिवार को सोशल मीडिया, डिजिटल प्लेटफॉर्म और ओटीटी के नियमन के दिशा निर्देशों की जानकारी दी जो तीन माह बाद कानून की शक्ल में अस्तित्व में आयेंगे। निस्संदेह यह कवायद देर आयद, दुरुस्त आयद की कहावत को चरितार्थ करती है।
यह इसलिए भी जरूरी था कि अरबों का कारोबार करने वाले विदेशी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के सूत्रधार अभिव्यक्ति के मानकों को लेकर भारत में यूरोपीय देशों के मुकाबले दोहरे मापदंड अपना रहे थे। साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास कर रहे थे। नये प्रावधानों में सरकार की मंशा है कि किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर विवादास्पद सामग्री को 24 घंटे के भीतर हटाना होगा।
हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर तांडव शृंखला पर हुए विवाद को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। निस्संदेह सोशल मीडिया माध्यमों ने करोड़ों लोगों को अभिव्यक्ति का सहज उपलब्ध मंच प्रदान किया है लेकिन इसके चलते तमाम राजनीतिक दलों द्वारा भी इसका दुरुपयोग किया जाने लगा। हर पार्टी ने आईटी सेल बनाकर सूचनाओं व आंकड़ों से खेलना शुरू कर दिया। वाकई भ्रामक खबरों का नियमन जरूरी है।