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सोर्स -JAGRAN
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के केवड़िया में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस के साथ पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रेरित करने वाले कार्यक्रम मिशन लाइफ का शुभारंभ करते हुए लोगों से प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी समझने की जो अपील की, उसे न केवल सुना जाना चाहिए, बल्कि उस पर अमल भी किया जाना चाहिए। ऐसा करते हुए यह समझा जाना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन प्रकृति के अंधाधुंध दोहन का नतीजा है और उससे उपजी चुनौतियों से अब तभी निपटा जा सकता है, जब हर कोई पर्यावरण की रक्षा में अपने हिस्से का योगदान देने के लिए आगे आएगा।
प्रगति करते समय प्रकृति और पर्यावरण के हितों का ध्यान रखना समय की ऐसी मांग है, जो हर हाल में पूरी होनी चाहिए। मिशन लाइफ सरीखे आयोजनों की आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि आम लोग इससे तो परिचित हैं कि जलवायु परिवर्तन से मानव जीवन के समक्ष किस तरह की गंभीर समस्याएं खड़ी हो गई हैं, लेकिन वे इससे अनजान ही अधिक हैं कि इन समस्याओं का सामना कैसे किया जा सकता है? मिशन लाइफ इस प्रश्न का उत्तर देता है। यह लोगों को बताता है कि वे अपनी जीवन शैली में कैसे परिवर्तन लाकर पर्यावरण की रक्षा में सहायक बन सकते हैं। शायद यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन केवल नीतिगत विषय नहीं है, बल्कि यह आम जनता से जुड़ा मसला है।
वैसे तो हम भारतीय प्रकृति को संरक्षण देने के तौर-तरीकों से अच्छी तरह परिचित हैं, लेकिन आधुनिक जीवनशैली के चलते उनकी महत्ता को ओझल कर रहे हैं। यह सही समय है कि मिशन लाइफ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को इससे अवगत कराया जाए कि उन्हें अपने दैनिक जीवन में किस तरह के बदलाव लाने की आवश्यकता है। यह संदेश जन-जन तक जाना चाहिए कि लोग अपनी दिनचर्या में बदलाव लाकर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।
यह बहुत कुछ इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि सरकारों के स्तर पर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जो कुछ किया जा रहा है, वह तब तक एक सीमा तक ही प्रभावी रहेगा, जब तक उन्हें जनता का सहयोग नहीं मिलेगा। पर्यावरण रक्षा के लिए किए जाने वाले व्यक्तिगत प्रयास बहुत आसानी से सामूहिक प्रयास में परिवर्तित किए जा सकते हैं। यदि ऐसा हो जाए तो वे राष्ट्रीय प्रयास का रूप ले सकते हैं।
हम भारत के लोगों को मिशन लाइफ कार्यक्रम के जरिये विश्व समुदाय के समक्ष पर्यावरण रक्षा का एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि सरकारों के स्तर पर किए जा रहे अनेक प्रयासों के बाद भी जलवायु परिवर्तन थम नहीं रहा। असमय वर्षा, ग्लेशियरों का पिघलना, तूफानों का क्रम बढ़ना और कहीं आवश्यकता से अधिक बरसात तो कहीं अवर्षण आदि जलवायु परिवर्तन के ही दुष्परिणाम हैं।
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