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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना संक्रमण के नये हमले को लेकर आज प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विभिन्न राज्यों के मुख्यमन्त्रियों के साथ जो बैठक की है उसका एक प्रमुख निष्कर्ष यह निकलता है कि देश के जिला स्तर के अस्पतालों को आधुनिकतम चिकित्सा सुविधाओं से लैस किये जाने की सख्त जरूरत है।
इसके साथ ही कोरोना को दूर रखने के लिए थोड़ी भी गफलत की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही यह भी निष्कर्ष इस बैठक से निकाला जा सकता है कि लोगों को इस बीमारी से बचाने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की ही है। उन्हें अपने राज्य की परिस्थितियों के अनुसार कोरोना से बचाव के व्यापक उपाय और प्रबन्ध करने पड़ेंगे मगर एक बात श्री मोदी ने जमीनी व्यावहारिकता की कही है जिसकी वजह से लोग कोरोना के प्रति लापरवाह होते जा रहे थे।
वह यह है कि भारत में कोरोना से भला-चंगा होने वाले लोगों की संख्या अन्य देशों के मुकाबले बहुत बेहतर है जिसकी वजह से लोगों ने लापरवाही बरतनी शुरू कर दी। उनमें यह भाव घर कर गया कि अगर किसी वजह से बीमार हो भी गये तो ठीक हो जायेंगे क्योंकि 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग तो ठीक हो ही रहे हैं मगर यह सावधानी छोड़ने का कोई कारण नहीं है। लोगों को सावधानी तब तक बरतनी पड़ेगी जब तक कि इस बीमारी का कोई पक्का या पुख्ता इलाज नहीं आ जाता। इस सन्दर्भ में कोरोना वैक्सीन या टीके का अभी तक बाजार में न आना बताता है कि दुनिया भर के चिकित्सीय वैज्ञानिक परीक्षण अभी इस टीके के बारे में हो रहे हैं।
प्रधानमन्त्री ने यह तो कहा है कि भारत में भी इस टीके को विकसित करने के प्रयास युद्ध स्तर पर किये जा रहे हैं परन्तु यह कब तक सुलभ हो जायेगा, इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इस बारे में विभिन्न वैश्विक चिकित्सीय औपचारिकताओं को भी पूरा करना पड़ता है। अतः जब तक कोई पुख्ता चिकित्सा उपाय सुलभ नहीं होता है तब तक एहतियात बरतना ही बुद्धिमानी है और उन तरीकों का इस्तेमाल किया जाना आवश्यक है जिनसे कोरोना को दूर रखा जा सकता है।
-हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि कोरोना टीके के आने पर सबसे पहले स्वास्थ्य कर्मचारियों को ही उसे दिया जायेगा और उसके बाद आवश्यक जनसेवा से जुड़े व्यक्तियों को सुलभ कराया जायेगा और फिर उम्र के लिहाज से बुजुर्गों व बच्चों को यह टीका लगाया जायेगा मगर असली सवाल अपनी जगह पर ही खड़ा हुआ है कि यह टीका अन्तिम रूप से बाजार में कब आयेगा? प्रधानमन्त्री ने इस बैठक में साफ तौर पर कहा है कि कोरोना के नये आक्रमण को टालने के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों को मिल-जुल कर ही उपाय करने होंगे। इसके िलए कोई एेसा सीधा रास्ता नहीं कि सभी प्रदेश एक निश्चित दिशा निर्देशों पर काम करें।
वास्तव में स्थिति भी एेसी ही है। इसी बैठक में प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार अभी तक कोरोना नियन्त्रण पर चार हजार करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है और हाल में ही गुजरे त्यौहारी मौसम के बावजूद उनके राज्य में संक्रमण नहीं बढ़ पाया है बल्कि अस्पतालों से ठीक होकर घर जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है और गंभीर रूप से बीमार लोगों की संख्या भी कम हुई है। वहीं केरल के मुख्यमन्त्री पिनयारी विजयन ने कहा कि उनकी सरकार ने कोरोना पर नियन्त्रण करने के मामले में पूरे देश में सर्वाधिक कोरोना परीक्षण किये हैं जिससे किसी भी बीमार व्यक्ति का तुरन्त इलाज किया जा सके। दस लाख व्यक्तियों में से कोरोना टैस्ट डेढ़ लाख से अधिक व्यक्तियों का किया जा रहा है।
इसी प्रकार हरियाणा के मुख्यमन्त्री श्री मनोहर लाल खट्टर ने स्पष्ट किया कि कोरोना वैक्सीन आने पर उनकी सरकार की वरीयताएं क्या होंगी जिससे भविष्य को सुरक्षित किया जा सके मगर राज्यों की एक मांग इस बैठक में यह भी रही कि केन्द्र सरकार उन्हें उनके हिस्से की वित्तीय धनराशि भी जल्दी सुलभ कराये जो जीएसटी में उनके अंश से सम्बन्धित है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोरोना महामारी के चलते लगभग सभी राज्यों की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है और उनके पास वित्तीय स्रोत बहुत सीमित रह गये हैं।
खास कर जीएसटी प्रणाली लागू होने के बाद राज्य सरकारें इससे प्राप्त होने वाले अपने राजस्व हिस्से पर ही कमोबेश निर्भर करती हैं। उनके हाथ में सिर्फ पेट्रोलियम पदार्थ व अल्कोहलिक पेय (मदिरा) ही बचती है जिस पर वे अपने हिसाब से कर लगा सकती हैं। दूसरी तरफ यह भी हकीकत है कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है। अतः अपने लोगों के स्वास्थ्य की चिन्ता करना उनका पहला दायित्व बनता है और यह भी हकीकत है कि बिना समुचित धनराशि के राज्य सरकारें कोरोना पर नियन्त्रण रखने की चिकित्सीय गतिविधियों को त्वरित गति से चालू नहीं कर सकती हैं।
अतः प्रधानमन्त्री के साथ कोरोना बैठक में आय स्रोतों का मुद्दा उठाया जाना स्थिति की गंभीरता को बताता है, परन्तु श्री मोदी ने यह तो साफ कर दिया है कि राष्ट्रीय स्तर पर जिला अस्पतालों को कोरोना से निपटने के लिए तैयार करने हेतु केन्द्र अपने स्तर पर जरूरी कदम उठा रहा है और प्रत्येक जिला अस्पताल को आक्सीजन सप्लाई में आत्म निर्भर बनाने हेतु आक्सीजन उत्पादन के संयन्त्र बहुत तेजी से लगा रहा है। एेसे 160 संयंत्र चालू करने के लाइसेंस दे भी दिये गये हैं मगर इसके साथ ही राज्य सरकारों को वित्तीय मामलों में आत्मनिर्भर बनाना भी जरूरी होगा।