- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- दमन का सहारा
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी की सरकार किन मुश्किलों में घिर गई है, उसे वहां की मौजूदा हालात से समझा जा सकता है। यों पिछले कुछ समय से वहां लगातार ही इस मसले पर व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं कि इमरान खान फौज की ओर से सत्ता पर थोपे गए नेतृत्व के तौर पर काम कर रहे हैं और उन्हें हटाया जाए। इन विरोध प्रदर्शनों को पाकिस्तान सरकार ने बहुत महत्त्व नहीं दिया था। लेकिन हाल ही में पाकिस्तान के ग्यारह विपक्षी दलों के गठबंधन पीपुल्स डेमोक्रेटिक मूवमेंट यानी पीडीएम ने अपने एक बड़े प्रदर्शन के दौरान प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी की सरकार के खिलाफ निशाना साधा, तब शायद वहां के सत्ता तंत्र का धीरज जवाब दे गया है। समस्या का कोई समाधान निकालने के बजाय व्यापक विरोध का सामना करने के लिए जिस तरह की कार्रवाइयां हो रही हैं, उससे सरकार और ज्यादा मुश्किल में फंसती नजर आ रही है। गौरतलब है कि विरोध प्रदर्शनों के बाद पुलिस ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के दामाद मुहम्मद सफदर को एक होटल में छापा मार कर गिरफ्तार कर लिया था। इसी के बाद विरोध ने और ज्यादा तीखा रुख अख्तियार कर लिया। जब सेना और सरकार के संबंधित महकमे इस गिरफ्तारी को सही ठहराने की स्थिति में नहीं रहे, तब सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने इससे जुड़ी परिस्थितियों की जांच का आदेश दिया।
आखिर पाकिस्तान में फौज और प्रकारांतर से उसके सहारे से चलती सरकारों को देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत उठाए जाने वाले सवालों या विरोध में चल रहे आंदोलनों से इतनी दिक्कत क्यों हो जाती है! एक ओर इमरान खान देश में और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अक्सर यह दावा करते दिख जाते हैं कि वे पाकिस्तान को एक नए रास्ते पर आगे ले जाने की योजना पर काम कर रहे हैं, लेकिन क्या कारण है कि उनकी इस योजना या परिकल्पना को खुद पाकिस्तान के ही दूसरे दलों या समूहों का समर्थन नहीं मिल पा रहा है! अब हालत यह हो गई है कि वहां चल रहे ताजा घटनाक्रम के आलोक में पुलिस और अर्धसैनिक बल भी आमने-सामने खड़े हो गए हैं। बल्कि एक तरह से देश के सबसे बड़े शहर सिंध में अर्धसैनिक बल और पुलिस के बीच गतिरोध पैदा हो गया है। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सिंध पुलिस के प्रमुख ने न केवल अपनी छुट्टी टाल दी, बल्कि अपने अधिकारियों को 'बड़े राष्ट्रहित' के मद्देनजर अगले दस दिनों तक अवकाश के आवेदनों को टाल देने के लिए कहा।
अगर यह स्थिति कुछ रोज और बनी रही तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान में एक बार फिर कैसा राजनीतिक और व्यवस्थागत संकट पैदा हो जाएगा। यह किसी से छिपा नहीं है कि जब भी पाकिस्तान में सरकार कमजोर स्थिति में होती है, तब वहां की सेना सत्ता पर हावी हो जाती है। विडंबना यह है कि सरकार मौजूदा राजनीतिक संकट से निटपने के लिए विपक्षी दलों से संवाद स्थापित करने के बजाय अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों का सहारा लेने का रास्ता चुन रही है। संगठित विपक्ष की ओर से सरकार की घेरेबंदी की कोशिश को इमरान खान महज 'सर्कस' का नाम देकर चुनौतियों से मुंह मोड़ना चाहते हैं। सवाल है कि पिछले कुछ समय से पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में मुद्दों के आधार पर जिस तरह की नई राजनीतिक गोलबंदी खड़ी हुई है, महंगाई, बिजली नहीं रहने, रोजगार और अन्य आर्थिक सहित क्षेत्रीय स्तर के कई सवालों पर लोग सड़कों पर उतर आए हैं, उसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दमन का तरीका कितना और कब तक कारगर साबित हो सकता है!