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आस्था की शक्ति से उपजा प्रतिरोध: विदेशी आक्रांता मंदिर विध्वंस कर भारतीय धर्म परंपरा को खत्म करना चाहते थे, परंतु वे रहे असफल
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क| भूपेंद्र सिंह| भारतीय चिंतन में सत्य के प्रति प्रगाढ़ आस्था है। सत्य मिला तो आस्था हुई। आस्था हुई तो सत्य की उपलब्धि हुई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमनाथ मंदिर को लेकर यथार्थ ही कहा कि सत्य को असत्य से नहीं हराया जा सकता। आस्था को आतंक से नहीं कुचला जा सकता। सोमनाथ मंदिर को कितनी ही बार तोड़ा गया। उसका अस्तित्व मिटाने की तमाम कोशिशें हुईं, लेकिन उसे जितनी बार गिराया गया वह उतनी ही बार उठ खड़ा हुआ। इसलिए सोमनाथ मंदिर भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिए एक विश्वास है और एक आश्वासन भी। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि तोड़ने वाली शक्तियों की सोच आतंक के बलबूते साम्राज्य खड़ा करने वाली है। वह किसी कालखंड में कुछ समय के लिए भले हावी हो जाए, परंतु उसका अस्तित्व स्थायी नहीं रहा। वे ज्यादा दिनों तक मानवता को दबाकर नहीं रख सकते। यह बात जितनी तब सही थी जब कुछ आततायी सोमनाथ को गिरा रहे थे उतनी ही आज भी सही है जब विश्व ऐसी विचारधाराओं से आशंकित है। संप्रति आतंकी समूहों के उत्पात से विश्व मानवता पीड़ित है। आतंकी समूह अनेक हैं, मगर सबका मकसद एक है। वे हिंसा के बल पर अंधविश्वासी राज्य की स्थापना चाहते हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी उनके ठेंगे पर है।
भारत की आस्था विश्व मानवता का लोक मंगल है
वहीं भारत की आस्था विश्व मानवता का लोक मंगल है। अलगाववादी आतंकी शक्तियां भारत में भी सक्रिय रही हैं, लेकिन भारत के लोगों ने अपनी संस्कृति, पौरुष व पराक्रम से उनका लगातार सामना किया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग सातवीं शताब्दी में भारत आए। उनके विवरण के अनुसार उत्तरी भारत में पंजाब था, कश्मीर था और पूर्वी अफगानिस्तान था। उत्तरी भारत में काबुल और जलालाबाद भी था। डा. बीआर आंबेडकर ने 'पाकिस्तान ओर पार्टिशन आफ इंडिया' में लिखा है, 'ह्वेनसांग के आने तक पंजाब और अफगानिस्तान के लोग अपनी आस्था के अनुसार वैदिक या बौद्ध धर्मानुयायी थे। इसके बाद भारत में पहला मुस्लिम आक्रमण (711 ई.) मोहम्मद बिन कासिम ने किया। फिर गजनी ने लगातार आक्रमण किए। गजनी की मृत्यु 1030 में हुई। 30 साल की अल्पावधि में उसने भारत पर 17 हमले किए। सोमनाथ विध्वंस और लूटपाट का पाप गजनी ने ही किया था। इसके बाद मोहम्मद गोरी का आक्रमण हुआ। फिर चंगेज खां ने हमला किया। वर्ष 1526 में बाबर ने भारत पर धावा बोला। इसके बाद नादिरशाह और अहमद शाह अब्दाली ने आक्रमण किए।
आक्रांताओं का उद्देश्य लूट करना ही नहीं, हिंदुओं की मूर्ति पूजा का खात्मा था
डा. आंबेडकर ने लिखा है कि 'इन आक्रांताओं का उद्देश्य लूट करना ही नहीं था। उनके उद्देश्य हिंदुओं को इस्लाम में शामिल करना और हिंदुओं की मूर्ति पूजा और बहुदेववाद का खात्मा था। यह बात मोहम्मद बिन कासिम ने हज्जाज को लिखे पत्र में कही है।' गजनी के इतिहासकार उत्बी ने लिखा है, 'उसने मूर्ति और मंदिर तोड़े, मूर्ति पूजकों को मारा।' गोरी ने भी यही किया। उसके इतिहासकार हसन निजामी ने लिखा कि गोरी ने बड़े पैमाने पर मूर्ति पूजकों की हत्या की। तैमूर के हमलों का भी यही मकसद था। वहीं मुगल औरंगजेब भारत का शासक होने के बावजूद मूर्तिभंजक था। हिंदू विरोधी और अत्याचारी था। मंदिर उपासना स्थल थे। शिक्षा और शोध के केंद्र थे। आस्था के शिखर थे। जनकल्याण के तमाम प्रकल्प मंदिरों द्वारा संचालित थे। वे प्रीतिपूर्ण स्थापत्य की अभिव्यक्ति थे। तालिबान ने बामियान में बुद्ध की भव्य मूर्तियां तोड़ी थीं। तब तालिबान मुखिया मुल्ला उमर ने कहा था कि 'असली इबादत सिर्फ अल्लाह की है। इसलिए गैर इस्लामी इबादतगाहों को तोड़ दिया जाना चाहिए।'
आक्रांता आतंकी मंदिर ध्वंस करके भारतीय धर्म परंपरा को खत्म करना चाहते थे
आतंक की सभी घटनाओं का एक केंद्रीय विचार है। यह विचार सारी दुनिया को अपने विश्वास की छतरी के नीचे लाने के लिए आतंक के मार्ग से जुड़ा है। आक्रांता आतंकी मंदिर ध्वंस के माध्यम से भारतीय धर्म परंपरा को खत्म करना चाहते थे। सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा और काशी के मंदिरों के ध्वंस प्रत्यक्ष हैं। ऐसी आक्रामकता से भारत के लोग लड़ते रहे। परिणामस्वरूप सोमनाथ और अन्य मंदिरों की भव्यता दूनी-चौगुनी बढ़ती रही। बेशक आक्रांताओं को कुछ सफलता मिलती रही, लेकिन करीब तीन सौ वर्षों तक संघर्ष के बावजूद भारत पर पूर्ण कब्जा नहीं कर पाए। भारतवासियों की अजेयता का मूल कारण सत्यनिष्ठा और सत्य के प्रति आस्था है।
भारत लंबे समय तक आतंकवाद और अलगाववाद का भुक्तभोगी रहा
भारत लंबे समय तक आतंकवाद और अलगाववाद का भुक्तभोगी रहा है। आइबी के पूर्व अधिकारी मलय कृष्ण धर ने लिखा था कि 'भारत अंतरराष्ट्रीय जिहाद के निशाने पर है। समझ लेना चाहिए कि यह जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर जैसे धर्म युद्ध की घोषणा है। याद कीजिए जब बाबर राणा सांगा की सेनाओं से घिर गया था तब उसने सेना के नौजवानों से कहा कि शराब छोड़ो और सांगा से जिहाद लड़ो। बाबर और वलीउल्ला की वह कड़ी इन जिहादियों में बनी हुई है। देश को इससे निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए।' प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने आतंकियों और अलगाववादियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं। उनका विश्वास है कि असत्य सत्य को नहीं हरा सकता। उनके नेतृत्व में माओवार्दी ंहसा के विरुद्ध भी कठोर कार्रवाई जारी है। आंतरिक सुरक्षा के संकट से निपटने के लिए तन्मयता से प्रयास जारी हैं। कश्मीर घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंक की सुरक्षा बलों ने कमर तोड़ दी है।
सत्य और संस्कृति के प्रति आस्था से भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा है
सत्य और संस्कृति के प्रति आस्था से भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा है। आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है। श्रीकृष्ण भारत के मन का अखंड विश्वास हैं। लोक आस्था हैं। कथित प्रगतिशील वामपंथी विद्वान उन्हें कवि की कल्पना बताते हैं। श्रीकृष्ण सामान्य सांसारिक व्यक्ति की भांति कर्मविश्वासी थे। उनका जन्म हुआ। उन्होंने मानवीय चेतना की चरम ऊंचाई प्राप्त की। शिशु की तरह उनका खेलना भी आस्था का विषय बना। तरुण हुए तो उनका नृत्य महारास कहलाया। प्रौढ़ हुए तब गीता दर्शन का ज्ञान प्रकट हुआ। महाभारत युद्ध हुआ। उन्होंने मित्र अर्जुन का साथ निभाया। उसके सारथी बने। अर्जुन को विषाद हुआ तो उन्होंने अर्जुन के मन का विषाद दूर किया। युद्ध के लिए प्रेरित किया। संसार में अपने होने का कारण भी बताया कि श्रेष्ठजनों की रक्षा के लिए ही हम सब इस संसार में हैं। मानवता विरोधी लोगों को दंडित करने के लिए हमारा यहां आवागमन है। गीता के एक श्लोक में राष्ट्रजीवन के उद्देश्य का निर्देश है 'परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।' स्पष्ट है कि प्रत्येक कालखंड में प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य अपनी आस्था और सत्यनिष्ठा का पालन करते हुए ही संषर्घरत रहना है।