सम्पादकीय

आरक्षण का दायरा

Subhi
10 Oct 2022 5:30 AM GMT
आरक्षण का दायरा
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हालांकि इस बीच विभिन्न मानकों के मुताबिक समाज के कई तबकों को आरक्षण के दायरे में लाया गया, मगर भारत में जटिल सामाजिक बनावट के चलते किसी व्यवस्था के मामले में अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचना मुश्किल रहा है।

Written by जनसत्ता; हालांकि इस बीच विभिन्न मानकों के मुताबिक समाज के कई तबकों को आरक्षण के दायरे में लाया गया, मगर भारत में जटिल सामाजिक बनावट के चलते किसी व्यवस्था के मामले में अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचना मुश्किल रहा है।

मसलन, लंबे समय से यह विवाद का विषय रहा है कि हिंदू पहचान से अलग होकर अगर कोई दलित व्यक्ति किसी अन्य धर्म को अपना लेता है तो उसे आरक्षण की सुविधा मिलनी चाहिए या नहीं! दरअसल, इस सवाल का स्रोत वह व्यवस्था है, जिसमें अगर कोई हिंदू दलित अपनी धार्मिक पहचान को त्याग कर बौद्ध या सिख धर्म की दीक्षा ले लेता है तो उसे आरक्षण की सुविधा पूर्ववत मिलती रहती है, लेकिन अगर उसने ईसाइयत या इस्लाम का दामन थामा तो इस दायरे से बाहर हो जाएगा। इसे सामाजिक कारणों से मिलने वाले आरक्षण में विभाजित दृष्टि बताते हुए ईसाई और मुसलिम बने दलितों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान करने की मांग की गई थी।

इस मसले पर एक याचिका लंबे समय से अदालत में है और सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई से पहले केंद्र सरकार से अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। मगर केंद्र सरकार के ताजा फैसले से लगता है कि वह जल्दबाजी में नहीं है। शुक्रवार को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन कर दिया, जो उन नए समूहों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की जांच करेगा जो ऐतिहासिक रूप से इस वर्ग से संबंधित होने का दावा करते हैं, मगर संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति के आदेशों में उल्लिखित धर्मों के अलावा किसी अन्य धर्म में दीक्षित हो गए हैं।

यों दलित समुदाय के उन लोगों के लिए भी आरक्षण की मांग होती रही है, जिन्होंने किसी वजह से ईसाई और इस्लाम धर्म अपना लिया था। इसकी वजह यह बताई गई कि चूंकि इन दोनों धर्मों में मतांतरित होने के बावजूद दलितों की सामाजिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया और उन्हें वहां भी जातिगत वंचना से आजादी नहीं मिली, इसलिए उन्हें आरक्षण से वंचित रखने के प्रावधान पर पुनर्विचार हो। इसके अलावा, इस संदर्भ में अगर अनुसूचित जनजातियों के लिए यह नियम शिथिल है, तो अनुसूचित जातियों को भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।

जाहिर है, यह एक जटिल मुद्दा रहा है और इस पर विस्तृत अध्ययन के बाद ही यह सुनिश्चित हो सकेगा कि ईसाई और इस्लाम में मतांतरित दलितों को अनुसूचित जाति के लिए निर्धारित आरक्षण का लाभ मिले या नहीं। इस मसले पर एक आपत्ति यह जताई जाती रही है कि अगर मौजूदा ढांचे में ईसाई और इस्लाम अपनाने वाले दलितों को शामिल किया गया, तो पहले से ही इस समूह की कमजोर जातियों के लिए आरक्षण का दायरा और अवसर कम हो जाएंगे।

इसके मद्देनजर एक विकल्प यह दिया जाता रहा है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण में उप-वर्ग का प्रावधान करके ईसाई और मुसलिम दलितों के लिए व्यवस्था की जा सकती है। लेकिन यह देखने की बात होगी कि अन्य पिछड़ा वर्ग की तरह अनुसूचित जाति वर्ग में भी क्या ऐसी व्यवस्था संभव होगी। बहरहाल, अब यह इस पर निर्भर लगता है कि लंबे समय से इस उलझे हुए मुद्दे के हल के लिए गठित आयोग क्या सुझाव देता है। स्वाभाविक ही सरकार से यह अपेक्षा होगी कि वह इस पर अपना रुख स्पष्ट करे, ताकि कोई सर्वमान्य समाधान सामने आने का रास्ता साफ हो।


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