सम्पादकीय

पदोन्नति में आरक्षण: शिवराज के लिए दो धारी तलवार है सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

Rani Sahu
31 Jan 2022 5:06 PM GMT
पदोन्नति में आरक्षण: शिवराज के लिए दो धारी तलवार है सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
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प्रमोशन में रिजर्वेशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख के बाद कई राज्यों की राजनीति पर इसका असर देखने को मिल सकता है

दिनेश गुप्ता प्रमोशन में रिजर्वेशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख के बाद कई राज्यों की राजनीति पर इसका असर देखने को मिल सकता है. मध्यप्रदेश वह राज्य है जहां पिछले पांच साल से सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति सिर्फ आरक्षण के कारण ही नहीं हो पा रही है. प्रमोशन में रिजर्वेशन वाले मध्यप्रदेश सरकार के नियमों को हाई कोर्ट निरस्त कर चुकी है. हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार रिजर्वेशन के आधार पर पदोन्नति का लाभ लेने वाले शासकीय सेवकों को रिवर्ट किया जाना है. सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने के कारण सरकार ने रिवर्ट करने की कार्यवाही नहीं की है.

आरक्षित वर्ग के दबाव से कैसे बाहर निकलेगी सरकार
मध्यप्रदेश में बीस प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है. अनुसूचित जाति सोलह प्रतिशत है. चुनावी राजनीति में छत्तीस फीसदी वोटों की राजनीति बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है. सरकारी नौकरियों में आरक्षण भी आबादी के हिसाब ही रखा गया है. सरकार में सबसे ज्यादा पद आदिवासी समुदाय के रिक्त है. इस वर्ग में शिक्षा का प्रसार अभी अपर्याप्त है. आयु और शैक्षिक योग्यता में छूट के बाद भी रिक्त पद नहीं भर पाते है. इसके विपरीत अनुसूचित जाति वर्ग लगभग हर श्रेणी के पदों के लिए उम्मीदवार मिल जाते हैं. पदोन्नति में आरक्षण का भी सबसे ज्यादा लाभ अनुसूचित जाति वर्ग को ही मिला है.
सरकार भी इन दोनों आरक्षित वर्ग के दबाव में दिखाई देती रही हैं. मध्यप्रदेश में हाईकोर्ट ने जब पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित नियमों को निरस्त किया तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जाकर स्टे आर्डर ले लिया. साथ ही सरकार ने यह फैसला भी ले लिया कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद ही पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. सरकार के इस निर्णय का असर यह हुआ कि पिछले पांच साल में पांच लाख से अधिक कर्मचारी बगैर पदोन्नति के रिटायर हो गए.
आरक्षण के बिना पदोन्नति पर लगी रोक हटाना है चुनौती
पिछले विधानसभा चुनाव के परिणामों में इस मुद्दे का असर दिखाई दिया था. शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा चुनाव हार गई थी. पंद्रह साल बाद कांग्रेस की सरकार में वापसी हुई. सामान्य वर्ग भाजपा और शिवराज सिंह चौहान से नाराज था. दलित वर्ग की नाराजगी अत्याचार निवारण अधिनियम के कारण बनी थी. पदोन्नति में आरक्षण का मामला ऐसा है,जिसमें एक के पक्ष में खड़े होने पर दूसरे वर्ग की नाराजगी का सामना स्वाभाविक तौर पर करना पड़ेगा.
नौकरी में आरक्षण देने से बड़ी चुनौती उच्च पद पर पदोन्नत किए गए शासकीय सेवक को रिवर्ट करने की है. पदोन्नति में आरक्षण के प्रावधान के कारण मध्यप्रदेश में दो-दो तीन-तीन प्रमोशन का लाभ आरक्षित वर्ग को मिला है. हजारों लोग रिटायर भी हो गए हैं. सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि क्या शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार पदोन्नति की सामान्य प्रक्रिया शुरू करेगी या फिर कानूनी जोड-तोड से इसे आगे टाल दिया जाएगा.
राजनीति के केन्द्र में आ गया है आरक्षण का मुद्दा?
राज्य में विधानसभा के चुनाव अगले साल होना है. ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने को लेकर राज्य में पहले से ही राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की स्थिति बनी हुई है. सुप्रीम कोर्ट की ही एक खंडपीठ ने निकाय चुनाव में ओबीसी को सत्ताईस प्रतिशत आरक्षण रोक दिया. ओबीसी को सरकारी नौकरी में चौदह प्रतिशत आरक्षण है. सरकार दावा कर रही है कि राज्य में ओबीसी की आबादी पचास प्रतिशत से अधिक है. इस कारण आरक्षण की सीमा बढ़ाया जाना सही है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट इंदिरा साहनी में मामले में आरक्षण की पचास प्रतिशत सीमा तय कर चुका है.
पदोन्नति में आरक्षण का विषय अथवा पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण का विषय सीधे डेटा से जुड़ा हुआ है. चुनाव में लाभ के लिए लगभग सभी राजनीतिक दल आरक्षण से लाभान्वित हुए लोगों के विकास का डेटा संग्रहित करने से बचते हैं. डेटा के आधार पर समीक्षा की भी कोई सीमा निर्धारित नहीं है. सुप्रीम कोर्ट की मंशा समीक्षा कर आरक्षण के लाभार्थी की पहचान करना है. आरक्षण को समाप्त करने के पक्ष में शायद कोई भी नहीं है. लेकिन,इस बात में सहमति जरूर दिखाई देती है कि आरक्षण का लाभ चुनिंदा लोगों को ही न मिलता रहे. पदोन्नति में आरक्षण बंधनकारी अधिकार नहीं हैं बल्कि राज्य विशेष यदि चाहे तो पदोन्नति में आरक्षण के लिए कुछ बंधनकारी शर्तों का पालन करना आवश्यक हैं.
डेटा संग्रह को लेकर गंभीर होना होगा
पदोन्नति में आरक्षण का भाव भी कुछ ऐसा ही है. प्रारंभिक शिक्षा से लेकर सरकारी नौकरी पाने तक लाभ अर्जित करने के बाद पदोन्नति में आरक्षण की जरूरत क्यों है? जरनैल सिंह मामले में उठे विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ तौर पर कहा कि प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है,इसके डेटा का संग्रह राज्य सरकार को करना है. हाईकोर्ट ने भी मध्यप्रदेश सरकार से यह अपेक्षा की थी कि वह डेटा संग्रहण करे. लेकिन,राजनीतिक लाभ-हानि मेंइस पर राज्य ने कोई काम ही नहीं किया.
नागराज केस में जो मापदंड तय किए गए उनका पालन भी नहीं हो सका. उल्लेखनीय हैं कि मप्र पदोन्नति नियमों को अप्रैल 2016 में उच्च न्यायालय ने एम. नागराज प्रकरण में निर्धारित मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुरूप न पाते हुए असंवैधानिक करार देकर हुए खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट का ताजा रुख के बाद यदि सामान्य वर्ग की पदोन्नति बाधित रही तो वह भी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार के लिए नुकसानदेह है.
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