सम्पादकीय

सामाजिक न्याय के​ लिए आरक्षण

Subhi
22 Jan 2022 2:54 AM GMT
सामाजिक न्याय के​ लिए आरक्षण
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सुप्रीम कोर्ट ने 7 जनवरी को नीट पोस्ट ग्रेजुएट एडमिशन में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण की अनुमति दी थी। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत फैसला जारी करते हुए कहा है

सुप्रीम कोर्ट ने 7 जनवरी को नीट पोस्ट ग्रेजुएट एडमिशन में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण की अनुमति दी थी। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत फैसला जारी करते हुए कहा है कि पीजी और यूजी आल इंडिया कोटा में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को संवैधानिक रूप से मान्य माना जाएगा और इसके लिए केन्द्र को अब सुप्रीम कोर्ट की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते समय जो कुछ कहा है, उसे हम सबकाे सुनना चाहिए। बहुत दिनों से यह विवाद सुप्रीम कोर्ट में लम्बित था। काउंसलिंग में देरी हो रही थी, जिससे छात्रों का भविष्य अधर में लटका हुआ था। इस मुद्दे पर डाक्टरों ने हड़ताल भी की थी, जिसके बाद केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा और अदालत से जल्द फैसला देने का आग्रह किया था। सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक न्याय का हवाला देते हुए कई बिन्दुओं को पूरी तरह से स्पष्ट कर​ दिया है। देश की सर्वोच्च अदालत का कहना है कि आरक्षण और मैरिट एक-दूसरे के विपरीत नहीं हैं। सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण की जरूरत होती है। अनुच्छेद 15(4) और 15(5) हर देशवासी को मौलिक समानता देते हैं। प्रतियोगी परीक्षाएं उत्कृष्टता, व्यक्तियों की क्षमताओं को नहीं दर्शाती। ऐसे में कुछ वर्गों को​ मिलने वाले सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक लाभ को प्रतिबिंबित नहीं किया जा सकता। उच्च स्कोर योग्यता का एक मात्र मानदंड नहीं है। सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के संबंध में योग्यता को प्रासंगिक बनाने की जरूरत है। पिछड़ेपन को दूर करने में आरक्षण की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।अदालत ने साफ कर दिया है कि पहले के फैसलों ने यूजी और पीजी एडमिशन में आरक्षण पर रोक नहीं लगाई है। इसको लेकर कोर्ट ने कहा है कि हम अभी भी एक महामारी के बीच में हैं। डाक्टरों की भर्ती में देरी से स्थिति प्रभावित होती है। कोर्ट ने इस सत्र के लिए ईडब्ल्यूएस की आय सीमा 8 लाख रुपए में किसी तरह का बदलाव नहीं किया है। इस फैसले से डाक्टरों को काफी राहत मिली है। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि सामाजिक अन्याय के लिए आरक्षण की सार्थकता है लेकिन कोर्ट ईडब्ल्यूएस आरक्षण को लेकर मार्च के तीसरे हफ्ते में सुनवाई करेगा। इस मुद्दे को लेकर विस्तृत सुनवाई की जरूरत है।संपादकीय :प्रशासनिक सेवा के अधिकारी5-जी का पंगायू.पी. में अवधारणा युद्धभाजपा कांग्रेस व प्रादेशिक चुनावपंजाब में आप का मानजुगलबंदी सबके लिए...नीट-पीजी कोर्स में दस प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण को लेकर कई याचिकाएं दायर हैं। इससे पहले अक्तूबर 2021 में ऐसी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल किया था कि ईडब्ल्यूएस कोटा के तहत अगड़े वर्गों को दस प्रतिशत आरक्षण देने के लिए 8 लाख की आय सीमा का आंकड़ा सरकार ने कैसे तय किया। इस सवाल पर सरकार ने एक हल्फनामा दायर कर अपना पक्ष स्पष्ट किया था। हल्फनामे में कहा गया था कि यह फैसला आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 2006 में गठित तीन सदस्यीय राष्ट्रीय आयोग की​ रिपोर्ट के आधार पर किया गया था। सेवा निवृत्त मेजर जनरल एस.आर. सिंहुओ की अध्यक्षता में बनी 2010 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। हालांकि इस रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। इस रिपोर्ट से जुड़ी कई खबरें हवाओं में तैरती रहीं। कहा जा रहा है कि कमेटी ने स्पष्ट रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए कभी आरक्षण का सुझाव नहीं दिया था, बल्कि यह कहा था​ कि पिछड़े वर्गों की पहचान रोजगार और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण प्रदान करने के लिए सिर्फ आय के आधार पर नहीं की जा सकती। राज्य द्वारा ईडब्ल्यूएस की पहचान केवल कल्याणकारी योजनाओं के विस्तार के लिए की जा सकती है। 2019 में सरकार ने 103वां संवैधानिक संशोधन पेश कर सामान्य वर्गों के लिए 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटे को मंजूरी प्रदान की। संशोधन के तहत आर्थिक मानदंड को आरक्षण का एकमात्र आधार बनाया गया था। जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। अदालत के निर्देश पर पिछले साल केन्द्र सरकार ने ईडब्ल्यूएस के आरक्षण के मानदंडों पर पुनर्विचार करने के लिए एक विशेष कमेटी का गठन किया। इस कमेटी ने 31 दिसम्बर, 2021 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में ईडब्ल्यूएस के लिए मौजूदा वार्षिक पारिवारिक आय सीमा आठ लाख को बरकरार रखा था। कमेटी ने यह भी कहा था कि ईडब्ल्यूएस के आय पैमाने और ओबीसी क्रीमी लेयर की आय सीमा के पैमाने में फर्क है। ईडब्ल्यूएस की आय मानदंड किसी उम्मीदवार के आवेदन के वर्ष से पहले के ​वित्तीय वर्ष पर निर्भर करता है। जबकि ओबीसी श्रेणी में क्रीमी लेयर के लिए आय मानदंड लगातार तीन वर्षों के लिए औसत वार्षिक आय पर लागू होता है। ओबीसी क्रीमी लेयर के मामले में वेतन, कृषि और पारम्परिक कारीगर व्यवसायों से होने वाली आय को नहीं जोड़ा जाता जबकि ईडब्ल्यूएस के लिए आठ लाख मानदंड में खेती सहित सभी स्रोतों को शामिल किया जाता है। अब मामला अदालत में है। ओबीसी क्रीमी लेयर की आय सीमा को भी कई बार संशोधित किया जा चुका है। अब नजरें सुप्रीम कोर्ट की मार्च की सुनवाई पर लगी है। आरक्षण से जुड़े विवादों का समाधान पहले भी सर्वोच्च अदालत ने ही किया है।

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