- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- आक्रोश बनाम अनुशासन
शायद यह पहली बार है जब किसी परीक्षा में गड़बड़ी को लेकर छात्र इस कदर उग्र हो गए। रेलवे भर्ती बोर्ड की अव्यावहारिक पहल के चलते यह विवाद पैदा हुआ और छात्र आंदोलन ने विस्फोटक रूप ले लिया। अच्छी बात है कि रेल मंत्रालय ने इस मामले को बहुत समझदारी से संभाला और भर्ती परीक्षा को स्थगित करने का आदेश दे दिया। मगर पिछले तीन दिनों में आंदोलनरत छात्रों ने रेलवे संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचा दिया। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में पुलिस ने जिस तरह छात्रों के खिलाफ दमन का रास्ता अपनाया, उससे सरकार की छवि भी खराब हुई है।
इन घटनाओं ने फिर से रेखांकित किया है कि सरकारें आखिर रोजगार के मसले पर पारदर्शी और व्यावहारिक रुख क्यों नहीं अख्तियार कर पातीं, वे छात्रों को उकसाने वाले फैसले क्यों करती देखी जाती हैं। रेलवे के विभिन्न वर्गों में भर्ती का विज्ञापन तीन साल पहले निकाला गया था। उसकी परीक्षा को टाला जाता रहा, तब उसके लिए भी छात्रों ने व्यापक आंदोलन चलाया था। फिर परीक्षा आयोजित की गई, मगर उसमें योग्यता का वर्गीकरण ठीक से नहीं किया गया, जिसके चलते परीक्षा परिणाम में एक ही विद्यार्थी को चार-चार पदों के लिए योग्य मान लिया गया। इस पर स्वाभाविक ही विद्यार्थी आक्रोशित हुए।
पहले रेलवे भर्ती परीक्षा में अलग-अलग श्रेणियों के लिए योग्यता के आधार पर अलग-अलग पर्चे तैयार किए जाते थे। मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। इसमें दुहराव से बचने के लिए रेलवे बोर्ड ने कहा कि वह बीस गुना अधिक नतीजे देगी, मगर उसने घोषित संख्या से आधे प्रत्याशियों को ही योग्य घोषित किया। इससे भी लाखों विद्यार्थी ठगा हुआ महसूस करने लगे। अभी छात्र इसका विरोध कर ही रहे थे कि बोर्ड ने दूसरे चरण की परीक्षा घोषित कर दी। इससे छात्रों की नाराजगी विस्फोटक हो गई। प्रतियोगी परीक्षाएं इसीलिए कराई जाती हैं कि उनके आधार पर सर्वश्रेष्ठ प्रत्याशियों की छंटाई में आसानी होगी। मगर इन परीक्षाओं का एक वैज्ञानिक और पारदर्शी आधार तैयार किया जाता है, जो कि रेलवे बोर्ड ने नहीं किया।