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हाल ही में 16 सितंबर को उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत प्रत्येक क्षेत्र में शोध और नवाचार (रिसर्च एवं इनोवेशन) का समर्थन करते हुए अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ा रहा है। वर्ष 2022 में भारत की अर्थव्यवस्था में 7.5 फीसदी वृद्धि करने की आशा है जो विश्व की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक होगी। मोदी ने यह भी कहा कि आज भारत में 70000 से अधिक स्टार्टअप हैं, जिनमें 100 से अधिक यूनिकॉर्न हैं। ऐसे में भारत शोध और नवाचार को और अधिक प्रोत्साहन देते हुए देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने सहित विभिन्न क्षेत्रों में विकास को नई रफ्तार देने की डगर पर आगे बढ़ रहा है। गौरतलब है कि सरकार पिछले सात-आठ वर्षों से भारत को अनुसंधान और नवाचार के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में लगातार समर्थन देते हुए दिखाई दे रही है। 2014 के बाद से विज्ञान और नवाचार पर निवेश बढ़ा है। यही कारण है कि भारत ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में इस समय 46वें स्थान पर है, जो 2015 में 81वें स्थान पर था। इस समय जब भारत चौथी औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व कर रहा है तब भारत के विज्ञान और नवाचार की अहम भूमिका से विकास की आस पूरी होगी। सरकार ने देश को 25 वर्ष बाद 2047 तक विकसित देश बनाने के बड़े लक्ष्य को हासिल करने के मद्देनजर शोध और नवाचार की भूमिका को अब अधिक अहम एवं प्रभावी बनाए जाने का संकेत दिया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पिछले एक दशक में शोध, नवाचार और तकनीकी विकास के परिप्रेक्ष्य में भारत लगातार आगे बढ़ा है। शोध एवं नवाचार के कारण बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य, डिजिटल, प्रौद्योगिकी, कृषि, शिक्षा, रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति हो रही है। भारत के नवाचार दुनिया में सबसे प्रतियोगी, किफायती, टिकाऊ, सुरक्षित और बड़े स्तर पर लागू होने वाले समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं। नए वैश्विक ग्लोबल इंडेक्स के तहत भारत में कारोबारी विशेषज्ञता, रचनात्मकता, राजनीतिक और संचालन से जुड़ी स्थिरता, सरकार की प्रभावशीलता और दिवालियापन की समस्या को हल करने में आसानी जैसे संकेतकों में अच्छे सुधार किए हैं। साथ ही भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था, घरेलू कारोबार में सरलता, स्टार्टअप, विदेशी निवेश जैसे मानकों में भी बड़ा सुधार दिखाई दिया है।
नि:संदेह कोविड-19 भारत में नए चिकित्सकीय शोध और नवाचार को बढ़ावा देने का भी एक अवसर बना है। जब फरवरी-मार्च 2020 में देश में कोरोना संक्रमण की पहली लहर शुरू हुई थी, तब देश में कोरोना की रोकथाम के लिए कोरोना वैक्सीन से संबंधित शोध और उत्पादन के विचार आने शुरू हुए थे। सामान्य तौर पर किसी बीमारी का टीका बनाने में कई वर्ष लगते हैं, लेकिन भारत में कोरोना वायरस की चुनौती के मद्देनजर कुछ महीनों के अंदर कोरोना का टीका बनाने का कठिन लक्ष्य पूरा किया गया। इतना ही नहीं देश में अगस्त 2022 तक 200 करोड़ से अधिक टीके लगाए जा चुके हैं। देश में कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाने में भी कृषि संबंधी शोध और नवाचार की प्रभावी भूमिका है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक देश में कृषि शोध से जुड़ी सौ से अधिक रिसर्च इंस्टीट्यूट, 75 कृषि विश्वविद्यालयों और इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) के 20 हजार से अधिक वैज्ञानिकों के समर्पित शोध कार्य, प्री एंड पोस्ट हार्वेस्टिंग मैनेजमेंट, कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ते निजी निवेश, 731 कृषि विज्ञान केंद्रों से मुफ्त बीजों का वितरण, सीड टेक्नोलाजी में फसलों की जीनोम एडिटिंग की अनुमति, कृषि क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा दिए जाने से कृषि क्षेत्र में विकास का नया अध्याय तेजी से आगे बढ़ रहा है। जब हम इस प्रश्न पर विचार करते हैं कि भारत को विकसित देश बनाने के लिए शोध एवं नवाचार में कितना आगे बढऩा होगा, तो हमारे सामने दुनिया के 38 विकसित देशों का आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) दिखाई देता है। इस समूह के सभी देशों ने अपने-अपने देश में आर्थिक विकास को ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए शोध और विकास (आरएंडडी) की भूमिका को प्रभावी बनाया है।
इस समय यूरोपीय संघ में आरएंडडी पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 2 प्रतिशत, अमेरिका और जापान में करीब 3 फीसदी और दक्षिण कोरिया में करीब 4.5 फीसदी व्यय किया जाता है। जहां दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में आरएंडडी पर खर्च निरंतर तेजी से बढ़ा है, वहीं भारत में आरएंडडी पर करीब 0.67 प्रतिशत ही व्यय हो रहा है। यदि हम आरएंडडी की दृष्टि से देखें तो आज भारत उसी मुकाम पर खड़ा है, जहां 60-70 वर्ष पहले अमेरिका था। यह ध्यान देने योग्य है कि अमेरिका ने आरएंडडी पर तेजी से अधिक खर्च करके सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, दवाओं, अंतरिक्ष अन्वेषण, ऊर्जा और अन्य तमाम क्षेत्रों में तेजी से आगे बढक़र दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनने का अध्याय लिखा है। ऐसे में भारत को भी आर्थिक शक्ति और विकसित देश बनाने के लिए आरएंडडी की ऐसी सुविचारित रणनीति पर आगे बढऩा होगा जिसके तहत सरकार, निजी क्षेत्र और शोध संस्थानों के बीच सहजीविता और समन्वय के सूत्र आगे बढ़ाए जा सकें। सरकार के द्वारा शोध एवं नवाचार की भूमिका को प्रभावी बनाने के मद्देनजर आरएंडडी पर देश की कुल जीडीपी का कोई दो फीसदी तक खर्च किया जाना सुनिश्चित करना उपयुक्त होगा। इसके साथ ही आरएंडडी में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी भी बढ़ाई जानी होगी। आरएंडडी की राशि को केवल सरकारी शोध प्रयोगशालाओं तक ही सीमित न करके बुनियादी एवं अनुप्रयुक्त शोध के लिए व्यापक आधार तैयार करने पर भी खर्च किया जाना होगा।
बड़ी कंपनियों के लिए अपने लाभ का एक उपयुक्त हिस्सा आरएंडडी पर व्यय करना सुनिश्चित करना होगा। यह भी महत्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभागों का पुनर्गठन किया जाना होगा। मिशन आधारित उपक्रम बनाए जाने होंगे, डीआरडीओ और अंतरिक्ष आयोग जैसे मिशन केंद्रित अनुसंधान संस्थानों का निजी क्षेत्र के साथ बेहतर जुड़ाव किया जाना होगा। देश के उच्च शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में उच्च शोध और नवाचार को प्रोत्साहित किया जाना होगा। जलवायु परिवर्तन और जैव-अर्थव्यवस्था जैसी उभरती चुनौतियों से निपटने के साथ ही नैनो टेक्नोलॉजी और एआई जैसे दीर्घकालिक अवसरों को मुठ्ठी में लेने के लिए नए मिशन केंद्रित कार्यक्रमों पर ध्यान दिया जाना होगा। चिप डिजाइन और फार्मा जैसे उत्पादों में आरएंडडी की और अधिक दखल जरूरी होगी। हम उम्मीद करें कि सरकार दुनिया के विभिन्न विकसित देशों की तरह भारत में भी शोध एवं नवाचार पर जीडीपी की दो फीसदी से अधिक धनराशि व्यय करने की डगर पर आगे बढग़ी। इससे जहां ब्रांड इंडिया और मेड इन इंडिया की वैश्विक स्वीकार्यता सुनिश्चित की जा सकेगी, वहीं स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, कारोबार, ऊर्जा, शिक्षा, रक्षा, संचार, अंतरिक्ष सहित विभिन्न क्षेत्रों में देश तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई देगा। ऐसे में 2047 में आजादी के सौ वर्ष पूरा करने के ऐतिहासिक अवसर पर भारत आर्थिक शक्तिशाली और विकसित भारत बनने के सपने को भी साकार करते हुए दिखाई दे सकेगा।
डा. जयंतीलाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री
By: divyahimachal

Rani Sahu
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