सम्पादकीय

जातीय जनगणना का आग्रह: जाति जनगणना सरकार की योजनाओं को ठोस रूप देने में होगी सक्षम

Neha Dani
24 Aug 2021 2:13 AM GMT
जातीय जनगणना का आग्रह: जाति जनगणना सरकार की योजनाओं को ठोस रूप देने में होगी सक्षम
x
जनगणना के बहाने जातियों की गोलबंदी करने की जो अनावश्यक राजनीति शुरू हो चुकी है उस पर विराम लगाने में भी सक्षम होगी।

नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार के नेताओं ने जाति केंद्रित जनगणना को लेकर प्रधानमंत्री से जो मुलाकात की वह सकारात्मक नतीजे सामने लाने वाली होनी चाहिए। केंद्र सरकार ने जब से जाति केंद्रित जनगणना कराने से इन्कार किया है तब से ऐसा कराए जाने का आग्रह बढ़ा है। यह आग्रह केवल बिहार के नेताओं की ओर से नहीं, बल्कि अन्य अनेक नेताओं की ओर से किया जा रहा है। यह लगभग तय है कि आने वाले समय में इस तरह का आग्रह और अधिक बढ़ेगा। यदि केंद्र सरकार उसकी अनदेखी करती है तो जाति के आधार पर राजनीतिक दल गोलबंद हो सकते हैं और इस मुद्दे को राजनीतिक रूप भी दे सकते हैं। ऐसा नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि इसका कोई औचित्य नहीं कि जाति केंद्रित जनगणना के नाम पर जातिवाद की राजनीति को बल मिले। यह ठीक है कि स्वतंत्र भारत में जाति केंद्रित जनगणना नहीं हुई, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आगे भी ऐसा न हो। आज जाति केंद्रित जनगणना कराने के कहीं अधिक पुष्ट आधार उपलब्ध हैं। केंद्र सरकार इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि तमाम सरकारी योजनाओं और खासकर सामाजिक उत्थान संबंधी योजनाओं का सही तरह क्रियान्वयन तभी हो सकता है जब नीति-नियंताओं के पास इसके स्पष्ट आंकड़े मौजूद हों कि देश में किन जातियों की कितनी संख्या है और उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति क्या है? जाति केंद्रित जनगणना केवल लोगों की गिनती नहीं होती, बल्कि उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति को भी रेखांकित करती है। यह स्पष्ट रेखांकन वक्त की जरूरत बन चुका है।

जाति केंद्रित जनगणना होना इसलिए और अधिक आवश्यक है, क्योंकि अभी आरक्षण एवं अन्य तमाम योजनाएं उन आंकड़ों के आधार पर बनाई जा रही हैं जो स्वतंत्रता के पहले जाति आधारित जनगणना से हासिल हुए थे। इसका कोई औचित्य नहीं कि दशकों पुराने आंकड़ों के आधार पर योजनाओं का निर्धारण किया जाए। आखिर जब जनगणना में अनुसूचित जातियों और जनजातियों की गिनती होती है तो फिर अन्य पिछड़े वर्गों और सामान्य वर्ग के लोगों की गिनती कराने में क्या बुराई है? ऐसे किसी निष्कर्ष पर पहुंचने का कोई मतलब नहीं कि जाति केंद्रित जनगणना कराने से समाज में विषमता अथवा वैमनस्य उभर सकता है। समय के साथ भारतीय समाज परिपक्व हो चुका है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि जाति भारतीय समाज की एक ऐसी सच्चाई है जिस पर पर्दा नहीं डाला जा सकता। उचित यह होगा कि केंद्र सरकार जाति केंद्रित जनगणना कराने के लिए तैयार हो। ऐसा करके वह न केवल अपनी योजनाओं को ठोस स्वरूप प्रदान करने में सक्षम होगी, बल्कि जाति केंद्रित जनगणना के बहाने जातियों की गोलबंदी करने की जो अनावश्यक राजनीति शुरू हो चुकी है उस पर विराम लगाने में भी सक्षम होगी।


Next Story