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By NI Editorial
विक्रमसिंघे को इस बात पर गौर करना चाहिए। कोलंबो में मुख्य प्रतिरोध स्थल पर मौजूद कार्यकर्ताओं ने साफ कहा है कि उनका वहां से लौटने का कोई इरादा नहीं है। कोर्ट के आदेश की नाफरमानी के लिए भी तैयार हैँ।
श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को यह गलत सलाह दी गई है कि दमन का रास्ता अपना कर वे देश में जारी जन असंतोष को दबा सकते हैँ। देश में इमरजेंसी तो उन्होंने राष्ट्रपति का पद संभालते ही लगा दी थी। बीते एक हफ्ते से देश भर में गिरफ्तारियों का दौर जारी है। इसके अलावा आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं की कड़ी निगरानी की जा रही है। इस बीच राष्ट्रपति सार्वजनिक रूप से यह बयान भी देते रहे हैं कि मनमानी गिरफ्तारियां नहीं होंगी। जबकि खबर है कि वहां पुलिस को घर-घर भेजा जा रहा है और आंदोलन से जुड़े लोगों के परिजनों से पुलिस पूछताछ कर रही है। कई गिरफ्तार कार्यकर्ताओं पर अरागलया के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है। जो प्रमुख कार्यकर्ता गिरफ्तार किए गए हैं, उनमें श्रीलंका टीचर्स यूनियन के नेता जोसेफ स्टालिन भी हैं। इस बीच विक्रमसिंघे ने आंदोलनकारी नेताओं और विपक्ष से बातचीत भी शुरू की है। इस दौरान उनसे मिले विपक्षी नेताओं ने कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाया। उधर आंदोलनकारियों ने राष्ट्रपति आपातकाल तुरंत हटाने की मांग की है।
साथ ही उन्होंने कहा कि आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के बजाय सरकार के लिए उचित यह होगा कि वह आंदोलन के कारणों पर ध्यान दे। लगभग चार महीनों से जारी प्रतिरोध का कारण जानने के लिए उन्होंने विक्रमसिंघे से एक आयोग बनाने की मांग की है। अगर गौर करें, तो विक्रमसिंघे को महसूस होगा कि यह कहीं समझदारी भरा सुझाव है। आंदोलन देश में बढ़ती आर्थिक मुसीबतों के कारण पैदा हुआ। जब तक इन मुश्किलों का हल नहीं निकलेगा, दमन के रास्ते से हालात औऱ पेचीदा ही होंगे। उन्हें इस बात पर गौर करना चाहिए कि कोलंबो में मुख्य प्रतिरोध स्थल पर मौजूद कार्यकर्ताओं ने साफ कहा है कि उनका वहां से लौटने का कोई इरादा नहीं है। वे इस सिलसिले में कोर्ट के आदेश की भी अवज्ञा करने को भी तैयार हैँ। जब संकल्प इतना पक्का हो, तो दमन भोथरा हो जाता है।

Gulabi Jagat
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