सम्पादकीय

केजरीवाल जवाब दें

Rani Sahu
16 Sep 2022 6:56 PM GMT
केजरीवाल जवाब दें
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By: divyahimachal
आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और पार्टी के प्रवक्ता 'पीडि़त' और 'मासूम' बनने की राजनीति न करें। उन्हें सवालों के सीधे जवाब देने चाहिए। सवाल केजरीवाल की राष्ट्रीय लोकप्रियता और प्रधानमंत्री मोदी के विकल्प का नहीं है। उसे तो चुनाव सत्यापित करते आए हैं और गुजरात, हिमाचल समेत करीब एक दर्जन राज्यों के जनादेश भी साबित कर देंगे। मासूमियत की आड़ में घोटालों के आरोपों को मत छिपाएं। हम किसी भी घोटाले या स्टिंग ऑपरेशन की पुष्टि नहीं करते और न ही यह हमारा अधिकार-क्षेत्र है। घोटालों की जांच सीबीआई के अधीन है। जो भी निष्कर्ष सामने आएंगे, उन्हें जांच एजेंसी अदालत के सामने प्रस्तुत करेगी। न्यायिक निर्णय अदालत का होगा। दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने अनियमितताएं पाई थीं, जिनका उल्लेख उपराज्यपाल को भेजी रपट में किया गया था। उपराज्यपाल दिल्ली के संवैधानिक प्रमुख हैं और वरिष्ठतम आईएएस अधिकारी के तौर पर मुख्य सचिव के भी दायित्व संवैधानिक ही हैं। 'आप' के नेता विभिन्न आरोपों पर नकली हंसी के साथ प्रलाप करना बंद करें, क्योंकि शराब घोटाला हो, स्कूल के कमरे बनवाने का घपला हो और बस खरीद का विवाद हो, इनके जवाब केजरीवाल सरकार अथवा 'आप' के प्रवक्ताओं को देने हैं।
लोकतंत्र में जनता को यह अधिकार है और 'आप' भी इसी सोच के साथ राजनीति में उतरी थी। यह दीगर है कि 'आप' के नेताओं ने सियासी शुचिता और नैतिकता के मूल्यों को झटक दिया है। गुजरात के 56 पूर्व नौकरशाहों ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है कि केजरीवाल चुनावी लोकतंत्र को खत्म कर रहे हैं, लिहाजा उनकी 'आप' की मान्यता रद्द कर दी जाए। केजरीवाल पुलिस कर्मियों, होम गॉड्र्स, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, बस के चालकों-परिचालकों आदि सरकारी कर्मचारियों से बार-बार आग्रह कर रहे हैं कि वे लोगों को 'आप' के पक्ष में वोट डालने को तैयार करें। यदि 'आप' की सरकार बनी, तो कर्मचारियों और जनता को अमुक फायदे दिए जाएंगे। बहरहाल निर्णय चुनाव आयोग को लेना है कि लोकतंत्र प्रभावित हो रहा है अथवा नहीं। हमारा सरोकार घोटालों के आरोपों से जुड़ा है और 'आप' को सटीक जवाब देने चाहिए, क्योंकि सरकार होने के नाते पहली जवाबदेही 'आप' की ही है।
बहसों को पलटप्रश्नों से मत भटकाएं। उनके जवाब संबद्ध पार्टी या सरकार देगी। एक आरोपित दूसरे आरोपित पर सवाल नहीं कर सकता। दोनों स्वतंत्र मामले हैं। दिल्ली में कथित शराब घोटाले के संदर्भ में एक स्टिंग ऑपरेशन सामने आया है, जिसमें आरोपित व्यक्ति अमित अरोड़ा ने कई खुलासे किए हैं। चूंकि वह खुद शराब के ठेकों से जुड़ा था और सीबीआई ने भी उसे आरोपित नंबर 9 बनाया है, लिहाजा उसके खुलासों को नकारना संभव नहीं है। शराब की ठेकेदारी के लिए किसने, कितने, कैसे 'पैसे' दिए और किसने वह धन कबूल किया, उस अर्जित धन का पंजाब चुनाव में इस्तेमाल किया गया और गुजरात चुनाव में भी खर्च किया जा रहा है, शराब पर कमीशन 2.5 फीसदी से 12.5 फीसदी क्यों की गई, केजरीवाल सरकार ने शराब माफिया के चार चेहरों के साथ मिल कर आबकारी नीति तैयार की और इस तरह संविधान की शपथ का उल्लंघन किया, दिल्ली से दारू गुजरात जैसे शराबबंदी वाले राज्य में सप्लाई की जा रही है और 'आप' की तिजोरी में 300-400 करोड़ रुपए धंधे की घूसखोरी से आए होंगे। ये सभी ऐसे गंभीर आरोप और खुलासे हैं, जिनका स्पष्टीकरण केजरीवाल, सिसोदिया, 'आप' प्रवक्ताओं को देने होंगे। यह उनकी संवैधानिक बाध्यता है। सिसोदिया के आवास और बैंक लॉकर में सीबीआई को कुछ नहीं मिला और स्टिंग की जांच कर सीबीआई सोमवार तक उन्हें गिरफ्तार करे, ऐसी हुंकारें भरकर मनीष सिसोदिया आरोप-मुक्त नहीं हो सकते। मासूम और पीडि़त भी साबित नहीं हो सकेंगे। सीबीआई की जांच प्रक्रिया अपने तरीके की होती है। उन्हें सभी आरोपितों से सवाल-जवाब कर किसी निष्कर्ष तक पहुंचना है, साक्ष्य जुटाने हैं, ताकि अदालत के सामने कुछ ठोस पेश किया जा सके। राजनीति में मासूमियत की गुंज़ाइश नहीं है।
Rani Sahu

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