सम्पादकीय

दोहराव, लेकिन जरूरी है

Triveni
14 Jun 2021 2:35 AM GMT
दोहराव, लेकिन जरूरी है
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जब से कोरोना महमारी आई है उसकी वजह से दुनिया में बढ़ती तबाही की रिपोर्टों की भरमार लगी हुई है।

जब से कोरोना महमारी आई है उसकी वजह से दुनिया में बढ़ती तबाही की रिपोर्टों की भरमार लगी हुई है। लेकिन जब सच वैसा ही है, तो आखिर उसे दोहराने से कब तक बचा जा सकता है? उन संस्थाओं की तारीफ करनी चाहिए कि वे ऐसी हकीकत को सामने लाने में जुटी हुई हैं, जो पीड़ा और अंधकारमय भविष्य से भरी महसूस होती है। अब अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया ने 20 साल में पहली बार बाल श्रम में बच्चों की संख्या में वृद्धि देखी गई है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि कोरोनो वायरस संकट से और अधिक किशोरों को का भविष्य बिगड़ने का खतरा है। बाल मजदूरों की संख्या 2016 के 15.2 करोड़ से बढ़कर 16 करोड़ हो गई है। यह दर्शाता है कि 2000 के बाद से हासिल प्रमुख लाभ पलट रहा है, जिसके तहत बाल मजदूरी घट रही थी। इस 0साझा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर बड़े कदम नहीं उठाए गए, तो 2022 के अंत तक यह आंकड़ा 20.6 करोड़ तक जा सकता है।

साफ है दुनिया बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई में हासिल की गई जमीन खो रही है। लॉकडाउन के कारण लगातार दूसरे साल में स्कूल बंद होने, आर्थिक व्यवधान और सिकुड़ते बजट के कारण परिवारों को अपने बच्चों से मजदूरी करवाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इस परिस्थिति के बीच संयुक्त राष्ट्र ने उचित ही 2021 को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन वर्ष के रूप में घोषित किया है। उसने 2025 तक देशों से इसे खत्म करने की दिशा में तत्काल कार्रवाई करने के लक्ष्य हासिल करने का आग्रह किया है। ये रिपोर्ट पूरी दुनिया के बारे में है। लेकिन भारत में भी सूरत बेहतर नहीं है। मसलन, भारतीय श्रम कानून के मुताबिक 15 साल से कम उम्र के बच्चों से श्रम कराना गैर कानूनी है। स्कूल के बाद वे परिवार के व्यवसाय में हाथ बंटा सकते हैं। इस प्रावधान का हाल में दुरुपयोग बढ़ गया है। इसे बाल मजदूरी कराने का बहाना बना लिया गया है। इससे बाल तस्करी के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है। स्पष्टतः अगर सामाजिक सुरक्षा कवरेज कमजोर होता है, तो संकट के वक्त बाल मजदूरी बढ़ती है। फिलहाल, ऐसा ही होता दिख रहा है


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