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जो तुम्हारे बिना भी खुश हो, उसे सताया न करो
पं. विजयशंकर मेहता। जो तुम्हारे बिना भी खुश हो, उसे सताया न करो। रिश्ते निभाने का यह भी एक ढंग है। रिश्ते निभाने में दो बातें होती हैं- भोग और त्याग। बहुत से लोगों के लिए रिश्ते इन्स्ट्रूमेंट हैं। वे यंत्र की तरह रिश्तों का इस्तेमाल करते हैं। मनुष्य का शरीर मिला है तो भोग की कामना तो होगी ही। भोग और विलास तो इस शरीर के लिए भोजन व नींद की तरह जरूरी हैं, लेकिन इसके लिए रिश्तों को हथियार न बनाया जाए।
रिश्ते निभाने का दूसरा ढंग है त्याग। जिस दिन यह तासीर बन जाती है, रिश्ते सुगंधित हो जाते हैं। रिश्ते के वृक्ष को फूलने-फलने में त्याग खाद और पानी दोनों का काम करता है। भोग यदि प्राथमिकता है तो रिश्ते निभाए जाएंगे, त्याग यदि प्राथमिकता है तो रिश्ते जिए जाएंगे। निभाने और जीने में फर्क है। रिश्तों को भोग की ओर ले जाता है मन और त्याग की तरफ ले जाता है हृदय।
किसी फकीर ने लिखा है- 'धरती फाटे मेघ मिले कपड़ा फाटे डोर। तन फाटे को औषधि मन फाटे नहीं ठोर।' यदि धरती फट जाए तो आसमान का पानी उसे भर देता है। कपड़ा फटे तो धागे से सिला जा सकता है। किसी का तन फट जाए तो औषधि काम की है, लेकिन मन यदि फट जाए तो उसका कोई आसान इलाज नहीं है। मन को नियंत्रित करने के लिए ध्यान यानी मेडिटेशन का सहारा लेना होगा। मन नियंत्रित हुआ कि रिश्ते अलग ही रंग ले लेंगे..।
Rani Sahu
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