सम्पादकीय

किराया कटौती को नमन

Rani Sahu
30 Jun 2022 7:14 PM GMT
किराया कटौती को नमन
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शक्ति नारी की, एचआरटीसी की और सत्ता की ताकत का इजहार करती अद्भुत योजना की धर्मशाला से शुरुआत हो गई। इस संकल्प की वैधता का कोई आर्थिक सवाल नहीं, लेकिन आधी आबादी का दस्तूर बदलती घोषणा अपने अमल में ही परिवहन की सोहबत बदल देती है

शक्ति नारी की, एचआरटीसी की और सत्ता की ताकत का इजहार करती अद्भुत योजना की धर्मशाला से शुरुआत हो गई। इस संकल्प की वैधता का कोई आर्थिक सवाल नहीं, लेकिन आधी आबादी का दस्तूर बदलती घोषणा अपने अमल में ही परिवहन की सोहबत बदल देती है। नारी अब हर घोषणा व संसाधनों पर भारी है, तो यह उसके विशेषाधिकार का युग है। वह अब जाति, धर्म और परिवार से कहीं ऊपर अपनी गिनती का निजी हिसाब कर सकती है, इसलिए जब उसका बस किराया आधा हो रहा है, तो वह कृतज्ञ है और श्रेष्ठ भी। यही श्रेष्ठता उसके मौलिक चरित्र को बदल कर राजनीति की सबसे ऊंची हस्ती और सत्ता के विमर्श की सबसे बड़ी निशानी बन रही है।

जन कल्याण की सारी योजनाओं की धुरी पर रहने के बावजूद देश और प्रदेश अब समाज के आधे हिस्से के साथ ऐसा गठबंधन करना चाहता है, जो आगे चलकर इस वर्ग की अभिलाषा में वृद्धि करेगा। यानी अब औरत खुद में एक समाज होगी, जबकि समाज और देश के भीतर विशेषाधिकार प्राप्त होगी। यह महिला सशक्तिकरण के साथ आर्थिक दृष्टि से राष्ट्रीय संसाधानों में उसकी हिस्सेदारी है। बहरहाल जिस खाके में हिमाचल की बसों में महिला यात्री अब स़फर करेंगी, वहां किराया आधा नहीं होगा, बल्कि प्रोत्साहन यह भी है कि घर की जरूरतों के लिए औरतें ज्यादा यात्रा करें। जाहिर है सरकार ने योजना लागू करके अगर वित्तीय घाटा उठाया है, तो इसकी भरपाई के लिए अतिरिक्त संसाधन भी ढूंढे होंगे। यह दीगर है कि सारी योजना में उदारता के बावजूद हम हिमाचली परिवहन को सस्ता होते हुए नहीं देखते। प्रसन्नता का विषय यह जरूर है कि न्यूनतम किराया सात से घट कर पांच रुपया हो रहा है। प्रदेश में सड़क परिवहन का सीधा ताल्लुक हर घर और जीवन के हर पहलू से है और इसमें माल ढुलाई से हर तरह के परिवहन तक की किराया दरों का असर होता है। हर दिन चूल्हे पर चढ़ता खाना ट्रक किराए में निरंतर वृद्धि की खैर मनाता है, तो पारिवारिक अनुष्ठानों में परिवहन की बढ़ी हुई दरें परेशान करती हैं। ऐसा प्रायः देखा जाता है कि पारिवारिक व धार्मिक यात्राओं में जिन वाहनों का प्रयोग होने लगा है, उनकी दरें ऐसे परिवहन की जरूरत को खर्चीला बना देती हैं। इसी श्रेणी में स्कूली बसें भी जुड़ जाती हैं, जो बच्चों की पढ़ाई की लागत बढ़ा देती हैं। बेशक सरकारी बसों में मुफ्त या कम किराए पर चलने वालों की एक खासी संख्या पहले से थी और अब इसे महिला स्पैशल बनाकर सरकार ने इस वर्ग से आशीर्वाद ले लिया है।
आम जनता के खर्चों में कटौती करने के इरादे से सरकार के हर फैसले का स्वागत होगा, लेकिन दूसरी ओर आर्थिक सेहत की चिंताएं भी हैं। सरकार किराया कटौती करके महिलाओं में जितना भी शहद बांट दें, इसके आर्थिक डंकों से बचा नहीं जा सकता। खास तौर पर जब सरकार इस योजना को निजी बसों में लागू करने का मन बना रही हो, तो वित्तीय प्रबंधन की कसौटी पर समूचे परिवहन क्षेत्र को सोचना पड़ेगा। हिमाचल में परिवहन सेवाओं की बेहतरी के लिए नए कायदे-कानून के अलावा वित्तीय पोषण भी चाहिए। प्रदेश की आर्थिकी को ढोते पर्यटन क्षेत्र को जिस परिवहन की दरकार है, उसे हासिल करने के लिए वित्तीय निवेश करना पड़ेगा। प्रदेश भर में आधुनिक बस स्टैंड के निर्माण के साथ-साथ बसों की स्थिति को सुधारने के लिए धन चाहिए, तो शहरी परिवहन की दुरुस्ती के लिए यातायात के नए विकल्प या रज्जु मार्ग भी चाहिए। प्रदेश में पर्यटक आगमन को प्रोत्साहित करती निजी वोल्वो बसों के मुकाबले आज भी सरकारी बसों की किराया दर सुविधाओं में फिसड्डी है। ऐसे में सरकारी बनाम निजी बसों की प्रतिस्पर्धा में भी अगर एचआरटीसी को साबित करना है, तो इस समय भारी निवेश की जरूरत है। बावजूद इसके किराया दरों में कमी करने का हर्जाना अगर भरना पड़ा तो महिला दिल जीतने की यह अदा सरकारी उपक्रम के दिल में छेद ही करेगी। यह दीगर है कि महिलाएं अगर इस फैसले की लाभार्थी बन रही हैं, तो इससे चुनावी फायदे में अवश्य ही इजाफा होगा।

सोर्स- divyahimachal

Rani Sahu

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