सम्पादकीय

ग्रांफू-लोसर मार्ग का नवींकरण जरूरी

Rani Sahu
4 Oct 2022 7:01 PM GMT
ग्रांफू-लोसर मार्ग का नवींकरण जरूरी
x
हाल ही में मुझे जि़ला किन्नौर के रिकांगपिओ, पूह और जि़ला लाहौल-स्पीति में काज़ा जाने का अवसर मिला। वापस शिमला लौटते समय काज़ा-लोसर-ग्रांफू मार्ग से शिमला आया। रिकांगपिओ से काज़ा लगभग 209 किलोमीटर व काज़ा से लोसर 60 किलोमीटर तथा लोसर से ग्रांफू लगभग 77 किलोमीटर पड़ता है। बॉर्डर एरिया की सडक़ों के निर्माण व रखरखाव का कार्य ''सीमा सडक़ संगठन'' यानी बी.आर.ओ. को दिया गया है, क्योंकि यह सडक़ें सेना की आवाजाही व उससे जुड़ी अन्य सामग्री व आयुध ढुलाई के लिए प्रयोग की जाती हैं। ''रिकांगपिओ-पूह-नाको-समदो-काज़ा-लोसर-ग्रांफू मार्ग'' का अधिकतर हिस्सा ''शीत मरुस्थल'' में आता है, जहां मौसम व विशेष भौगोलिक परिस्थितियों के कारण मार्ग बार-बार बाधित होते रहते हैं। यहां मैं ''लोसर-ग्रांफू मार्ग'' की भयावह हालत का जिक़्र करना चाहूंगा जिस पर यात्रा करना जान हथेली पर रख कर चलने के समान है। यह वर्णन मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है और यह लेख संभवत: उन पाठकों के लिए भी उपयोगी हो, जो भविष्य में इस इलाके के भ्रमण पर जाएं। ''लोसर पुलिस चैक पोस्ट'' से ग्रांफू की ओर जाते समय थोड़ी दूरी से ही कच्चा व पत्थरीला मार्ग शुरू हो जाता है, जहां गाड़ी की रफ्तार 15 से 20 किलोमीटर प्रति घंटे सी भी कम रहती है।
14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित कुंजम दर्रे से नीचे उतरने के बाद जब रास्ता नदी के साथ-साथ शुरू होता है, तब स्थिति ''विकराल'' हो जाती है, जो अवर्णननीय है। ग्रांफू तक यह रास्ता लगभग 55 किलोमीटर का है जिसे पार करने में हमें 5 घंटे का समय लगा। सडक़ के नाम पर केवल बड़े-बड़े पत्थर, कीचड़ व पहाड़ी जल-स्त्रोतों से बहता हुआ जल छोटे नालों के रूप में पूरे मार्ग को बाधित किए है। गाड़ी की रफ्तार यहां 5 से 10 किलोमीटर प्रति घंटा रह जाती है। यदि चालक अनाड़ी हो या इस प्रकार के पहाड़ी मार्ग से पहले अनभिज्ञ हो तो उस गाड़ी का इस मार्ग पर चलना असंभव है। बी.आर.ओ. द्वारा लोसर से ग्रांफू मार्ग को लगभग भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मैं दिन में 1:30 बजे काज़ा से चला था व रात्रि 9 बजे के करीब जब मैं कोकसर की पक्की चौड़ी सडक़ पर पहुंचा तब जान में जान आई। मैंने व गाड़ी के चालक ने भगवान को धन्यवाद दिया कि सही सलामत पहुंच गए हैं। वैसे तो काज़ा से आगे निकलते ही बार-बार मोबाइल फोन का सिग्नल बाधित होता है, परंतु लोसर के बाद ग्रांफू तक पूरे मार्ग पर मोबाइल फोन काम नहीं करते। कहीं भी इस प्रकार की चेतावनी वाले बोर्ड भी नहीं लगे हैं, जहां इस मार्ग पर चलने वाले पर्यटकों के लिए सूचना व चेतावनी लिखी हो कि -''आगे आपके मोबाइल फोन काम नहीं करेंगे व आप अपने घरवालों, रिश्तेदारों को इस विषय में पहले सूचित कर दें ताकि वे परेशान न हों''। आज के इस संचार क्रांति के युग में यह विश्वास करना मुश्किल है कि सामरिक महत्व की इन सडक़ों पर 5-6 घंटे लगातार मोबाइल फोन पर सिग्नल उपलब्ध न हो।
यात्री व पर्यटक इस बात से अनभिज्ञ रहते हैं और उनके घरवाले व रिश्तेदार जब उनसे कई घंटे बात नहीं कर पाते तो उन्हें भी अनावश्यक चिंता हो जाती है जैसा कि मेरे साथ घटित हुआ। मार्ग की इस विकट हालत के बारे में मैंने सीमा सडक़ संगठन के 2 आई.सी. लेफ्टिनेंट कर्नल श्री कंवर जीत सिंह से दूरभाष पर बात की और उन्हें अपने इस मार्ग के भयावह अनुभव के बारे में बताया। उन्होंने भी इस बात को स्वीकार किया और अवगत करवाया कि इस मार्ग का बहुत-सा हिस्सा अभी भू-अधिग्रहण प्रक्रिया के अंतर्गत चल रहा है, जिस कारण सडक़ का रखरखाव नहीं हुआ। मैंने उनसे अनुरोध किया कि जब तक ''ग्रांफू-लोसर मार्ग'' कुछ हद तक वाहन चलने योग्य नहीं हो जाता, तब तक इस मार्ग को आवाजाही के लिए बंद कर देना चाहिए तथा कुंजम दर्रे से नीचे ''चंद्रताल'' तक ही ''किन्नौर-काज़ा मार्ग'' से जाने की अनुमति होनी चाहिए। हमारे चालक ने तो बहुत कुशलता के साथ बचा-बचा कर वाहन को इस अति कठिन मार्ग से बाहर निकाला, परंतु सफर के दौरान मैंने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड से आई ऐसी कई गाडिय़ों को ग्रांफू से काज़ा आते समय मार्ग में फंसे देखा। कुछ गाडिय़ों के तो ''चैंबर'' फट गए थे व उनमें से इंजन का तेल रिसने के कारण इंजन बंद हो गए थे। गाडिय़ां जहां-तहां मार्ग पर खड़ी थीं। उनमें फंसे यात्रियों की हालत बहुत ही दयनीय व अकल्पनीय थी। रात में ठहरने का कोई आसरा उनके पास नहीं था। हम तो किसी तरह भगवान की कृपा से मुख्य-मार्ग तक पहुंच गए, परंतु उन फंसे यात्रियों की क्या हालत हुई होगी, यह तो ईश्वर ही जाने। मेरा यह उपरोक्त वर्णन किसी भी संस्था अथवा विभाग पर कोई आरोप लगाने की मंशा से नहीं है, परंतु यह भी सत्य है कि जो भी इस महत्वपूर्ण मार्ग की व्यवस्था से जुड़े हैं, अपने व्यक्तिगत अनुभव से मैं कुछ सुझाव देना चाहता हूं:-मार्ग तब तक वाहन योग्य घोषित न किया जाए जब तक इसकी ठीक ढंग से मरम्मत व रखरखाव नहीं हो जाता।
कोकसर से ग्रांफू मार्ग पर प्रवेश करते समय पर्यटकों व वाहन चालकों को इस मार्ग की दुश्वारियों व मोबाइल फोन का सिग्नल उपलब्ध न होने व अन्य कठिनाइयों के बारे में स्पष्ट चेतावनी बोर्ड पर अंकित होनी चाहिए ताकि उसे पढक़र चालक स्वयं निर्णय लें कि उन्हें आगे बढऩा चाहिए या काजा पहुंचने के लिए वाया रिकांगपिओ-पूह होकर जाना चाहिए। दिन में 1 बजे के बाद ग्रांफू-लोसर सडक़ पर वाहनों का चालन निषिद्ध होना चाहिए, क्योंकि अगर कोई मार्ग में दुर्घटना हो जाती है तो किसी भी प्रकार की सहायता यात्री को रात्रि में उपलब्ध नहीं हो सकती, न ही वह अपने मोबाइल फोन से सूचित कर सकता है। मैं कृतज्ञता व्यक्त करना चाहूंगा ''छतडू व बातल'' में उपस्थित उन स्थानीय दंपतियों के प्रति, जिन्होंने वर्षों से वहां अपने टैंट लगा रखे हैं तथा जहां वे इस मार्ग में फंसे यात्रियों का ''रेसक्यू'' करते हैं व भोजन उपलब्ध करवाते हैं। इस मार्ग पर मुसीबत में फंसे लोगों के लिए वे देवदूत का काम कर रहे हैं। इनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, उतनी कम है। हिमाचल पर्यटन के लिए देश-विदेश में प्रख्यात है व पर्यटकों के लिए ''शिमला-किन्नौर-काजा-मनाली-कुल्लू सर्किट'' और अधिक आकर्षण का केन्द्र हो सकता है, यदि ''लोसर-ग्रांफू मार्ग'' की हालत सुधर जाए और वहां यात्रियों के जीवन को बचाने वाली बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था हो।
संजय शर्मा
लेखक शिमला से हैं

By: divyahimachal

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story