सम्पादकीय

130 वीं जयंती पर स्मरण: महादेव देसाई एक व्यक्तित्व,एक जीवन और गांधी जी

Gulabi
1 Jan 2022 5:22 PM GMT
130 वीं जयंती पर स्मरण: महादेव देसाई एक व्यक्तित्व,एक जीवन और गांधी जी
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एक जीवन और गांधी जी
महादेव देसाई एक और प्रतिभावान व्यक्ति थे। मेरे विचार से उनके चरित्र की सबसे बड़ी खूबी थी मौका पड़ने पर अपने को भूलकर शून्यवाद बन जाने की उनकी शक्ति। वह मुझ में पूरी तरह खो गए थे। मुझसे अलग उनकी कोई हस्ती ही नहीं रह गई थी। वह मेरे बॉसवेल ( जीवनी लेखक) बनना चाहते थे, फिर भी मुझसे पहले मरना चाहते थे। इससे बेहतर वह क्या कर सकते थे? सुबह तो चले गए और मुझे अपनी जीवनी लिखने के लिए छोड़ गए। महादेव भाई ने अपने जीवन के 50 साल में 100 बरस का काम पूरा कर डाला था।'
- महात्मा गांधी
महादेव देसाई गांधी जी के प्रिय सचिव थे। उनकी यह डायरी अति महत्वपूर्ण है जितनी कि स्वयं गांधी जी की होती। रामचंद्र जी के लिए जैसे लक्ष्मण थे, वैसे ही गांधीजी के लिए महादेव थे, मानो' एक प्राण दो देह। महादेव देसाई उर्फ महादेव भाई जैसा कि वह कहे जाते थे, अपने जीवन भर की ख्वाहिश पूरी नहीं कर पाए कि महात्मा गांधी की जीवनी लिख सकें क्योंकि 15 अगस्त 1942 उनकी असमय मौत हो गई।
जब उनकी मृत्यु हुई उस समय उनकी उम्र 50 साल थी और वे पुणे के आगा खान पैलेस में नजरबंद थे। उनके बेटे नारायण देसाई ने महात्मा गांधी की जीवनी चार खंडों में लिखी- माय लाइफ इज माय मैसेज। यह किताब उन डायरियों के आधार पर लिखी गई जिनमें महादेव भाई ने अपने 25 साल लंबे साथ में बहुत बारीकी से गांधीजी के पत्रों, भाषणों, बातचीत, विचारों को क्रमबद्ध रूप में नोट किया था। गांधीजी के भाषणों की प्रमाणित प्रतियां जोकि वह हिंदुस्तानी और गुजराती में बिना लिखे दिया करते थे। 100 भागों में प्रकाशित 'द कलेक्टिव वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी' भी महादेव की डायरियों के आधार पर तैयार हुआ।
नवजीवन पब्लिशिंग हाउस से महादेव की डायरियों का अंग्रेजी में प्रकाशन डे टुडे विद गांधी नाम से हुआ। इन में गांधी जी के भारत की आजादी के लिए चलाए गए अहिंसक आंदोलन का सजीव वर्णन दिया गया। इस विवरण को एक युद्ध रिपोर्टर का वर्णन समझना चाहिए जो पूरी लड़ाई में commander-in-chief के कंधे से कंधा मिलाकर राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल रहा। विशेष रूप से उतार-चढ़ाव भरी वे घटनाएं जिनकी परिणीति आखिर में भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में हुई।
महादेव भाई की डायरी और कुछ स्मृतियां
11 नवंबर 1917 से महादेव भाई ने डायरी रखना शुरू किया था। इन्हें गांधीजी के सचिव के रूप में काम करते हुए एक हफ्ता हुआ था। यह लेखन 14 अगस्त 1942 तक चला, उनकी मौत से 1 दिन पहले तक। इन्हें महादेव भाई की डायरी कहना सही नहीं है क्योंकि यह महात्मा गांधी के बारे में लिखी गई क्योंकि सिर्फ उन दिनों डायरी नहीं लिखी गई जब या तो गांधीजी यह स्वयं महादेव भाई जेल में थे। उनकी 23 डायरियों के 9500 से ज्यादा पेज छप चुके हैं। 1936- 1942 के कालखंड कि डायरिया अभी भी संपादित और प्रकाशित होनी बाकी है।
अप्रकाशित डोरियों से पता चलता है कि महादेव भाई ने कम से कम 25 पाठ शॉर्टहैंड और टेक्स्ट बुक और फारसी व्याकरण के मूल कोर्स से तैयार किए थे। गांधी जी के साथ उनकी छाया के रूप में बराबर साथ रहने के कारण महादेव भाई को सभी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम को नजदीक से देखने का अवसर मिला। इस तरह से उनकी यह डायरियां गांधीजी के दिमाग में चल रही सोच को दृष्टि देने का प्रयास है।
'अपनी क्रमबद्ध डायरी में जितनी सामग्री का संकलन महादेव भाई ने किया, उन पर धैर्य से काम करने में वर्षों का समय लगा। उन्होंने उम्मीद की थी कि वह खुद इस को पूरा करते। गांधी जी ने उनकी मृत्यु के तुरंत बाद अपनी डॉक्टर और सहयोगी सुशीला नायर से कहा था-' मेरे अलावा कोई उन्हें बाहर नहीं ला सकता, यहां तक कि मुझे भी नहीं पता कि इसको किस तरह इस्तेमाल करने के लिए उन्होंने रखा है।'
गांधी, कस्तूरबा और महादेव भाई 8 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो प्रस्ताव की घोषणा करते ही गिरफ्तार कर लिए गए थे।
शुरू-शुरू में वह सिर्फ महत्वपूर्ण पत्रों की नकल किया करते थे। इसके बाद उन्होंने लिखने लायक घटनाओं को और बापू द्वारा दिए गए भाषणों में उनके विचारों को कलमबद्ध किया। स्वाभाविक रूप से उनकी बाद की डेयरियों में ज्यादा विस्तार से नोट्स लिए गए। महादेव भाई के करीबी दोस्त और सहयोगी नरहरि पारिख ने डायरियों के 2 खण्डों की प्रस्तावना लिखी।
यह 1953 में गुजराती में छपे थे। महादेव भाई के लेखन की शुरुआत चंपारण सत्याग्रह से हुई। आंदोलन 1917 में उत्तरी बिहार के किसानों को नील की खेती करने वाले किसानों के शोषण से मुक्त कराने के लिए शुरू हुआ था।
यह भारत में गांधीजी की अहिंसक कार्यवाही का पहला कदम था। इससे पहले दक्षिण अफ्रीका में यह काफी सफल रहा था। चंपारण सत्याग्रह की सफलता के बाद गांधी जी ने ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की शिक्षा,, स्वास्थ्य और सफाई के लिए काम शुरू किया था। 17 जनवरी, 1918 को मधुबन में खोले गए स्कूल में काम करने वालों में महादेव भाई और उनकी पत्नी दुर्गाबेन शामिल थे।
आगे चलकर महात्मा गांधी के सचिव बने प्यारेलाल ने हरिजन में लिखा-'
युद्ध के दिन और रोलेट एक्ट विरोधी आंदोलन के बीच, महादेव भाई ने छाया की तरह गांधी जी के साथ रहकर सारे घटनाक्रम को आत्मसात किया।
इसके बाद खिलाफत और असहयोग आंदोलनों के दौरान महादेव भाई ने बोस्वेलियन डारिया लिखना शुरू किया जो अंत तक चलता रहा। उनकी स्मृति कितनी तीक्ष्ण थी। डायरियों में ऐसी बातचीत भी के हिस्से भी हैं जिनमें वे खुद भी शामिल थे। यह विवरण उन्होंने स्मृति के भरोसे ही लिखें। इनमें कांग्रेस कार्यसमिति की बंद कमरे में हुई बैठकों की रोचक बातें हैं, जो केवल महादेव भाई की विलक्षण याददाश्त के कारण प्रकाशित हो सके।
प्यारेलाल ने बताया-'
उनका जुनून इतना बढ़ा हुआ था कि कागज की कमी होने पर, मैंने उन्हें अखबारों के हाशिए पर, कभी-कभी अंगूठी और उंगली के नाखूनों पर लिखते और फिर नीचे जाकर नियमित डायरी में दर्ज करते देखा। उन्होंने खुद को गांधी जी के विचारों के जीवित को और अपील के लिए अंतिम अदालत के रूप में गठित किया, जहां गांधी जी के कार्य और कथन की प्रामाणिकता जांची जा सके। किसी ने भी महादेव भाई के जीवित रहते गांधी जी को गलत तरीके से पेश करने की हिम्मत नहीं की।'
पत्रकार के रूप में महादेव भाई
पत्रकार के रूप में महादेव भाई ने हरिजन का संपादन किया। इसके अलावा नवजीवन (गुजराती),' यंग इंडिया' और 'द हिंदुस्तान टाइम्स' समेत कई राष्ट्रीय अखबारों में योगदान दिया। प्यारेलाल द्वारा किया गया महादेव भाई का मूल्यांकन बहुत महत्वपूर्ण है-' महादेव भाई गांधी जी की यात्रा किट की देखभाल करते थे। उनके बिस्तर को ठीक करना, खाना बनाना, कपड़े धोना जैसे दायित्व निभाए। सचिव के रूप में अपना काम तो देखते ही थे, गांधी जी के साथ बैठकों के लिए आने वाले खास मेहमानों के लिए आश्रम में व्यवस्था बनाते थे।
हिसाब रखना, रेलवे के नक्शे की मदद से गांधीजी के दौरों के कार्यक्रम बनाना, उनकी तारीखें तय करना, पत्रों के जवाब लिखना। अक्सर मगनवाड़ी से सेवाग्राम आश्रम तक वापस 5 मील की दूरी तय करके आते थे। तेज धूप में, प्रतिदिन निर्देशों का पालन घड़ी की मौत पर निपटाते। साथ ही हरिजन के लिए नियमित लेखन भी करते थे।
महादेव देसाई के पोते नचिकेता के अनुसार- श्री महादेव देसाई केवल एक कार्यालय के अधिकारी नहीं थे, वह एक संस्था थे। उनका कार्यालय शुरू हुआ और उनके साथ ही समाप्त हुआ। उन्होंने अपने पीछे कोई उत्तराधिकारी नहीं छोड़ा।'
महात्मा गांधी के आंदोलन के 'रोजनामचे' के लिए तीन लोग उत्तरदाई थे- महादेव देसाई, नरहरी पारिख और स्वामी आनंद
महात्मा गांधी इस बात की मिसाल थे कि जो में बोलते हैं लिखते थे उसके प्रति जिम्मेदार रहते थे। इससे उनके सचिव की जिम्मेदारी और मुश्किल हो जाती थी और महादेव देसाई(1892-1942) इस भूमिका के सबसे उपयुक्त पात्र थे। मात्र सचिव नहीं थे, वह उनके गणेश थे,दूत थे, साथ ही पीर- बावर्ची-भिश्ती-खर सब कुछ थे।
महादेव देसाई वकील थे और शब्दों के जादूगर थे। गांधी जी से भेंट से पहले उन्होंने रविंद्र नाथ टैगोर की चित्रांगदा और जॉन मोर्ले की ऑन कंप्रोमाइज का गुजराती भाषा में अनुवाद किया था। अपने समय के और युवा लोगों की तरह वह भी होमलीग से जुड़े थे। लेकिन गांधी जी से भेंट के बाद उनका जीवन एकदम बदल गया। ऐसे ही कुछ महात्मा गांधी के साथ भी हुआ।
महादेव देसाई और गांधी जी
महादेव देसाई ने गांधी जी से प्रभावित होकर अपना पूरा जीवन उनके और आश्रम के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने ना सिर्फ विस्तृत- संपूर्ण नोट लिखे बल्कि गांधी जी के दर्शन को भी उसमें समाया। ऐसे बहुत से अवसर आए जब गांधी जी ने महादेव देसाई के तैयार लेखों में सिर्फ अपने हस्ताक्षर जोड़े।
गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी के अलावा महादेव देसाई, मराठी और बांग्ला भी जानते थे। उनकी लिखने की स्पीड और लिखावट पर लोग मुग्ध हो जाते थे, लेकिन बहुत बार उन्हें गांधी जी के गैर समझौतावादी स्वभाव की मार भी झेलनी पड़ती थी। वह उन कुछ चुनिंदा शख्सों में शुमार थे जिन पर महात्मा गांधी आंख मूंदकर विश्वास करते थे।
वास्तव में महात्मा गांधी और सरदार पटेल मानते थे कि उनकी जीवनी के साथ सिर्फ महादेव देसाई ही न्याय कर सकते हैं। उन्होंने गांधीजी की आत्मकथा और गीता की टीका का अंग्रेजी में अनुवाद किया। देसाई ने बहुत सी चीजों के अलावा जवाहरलाल नेहरू की जीवनी का गुजराती में अनुवाद किया।
1942 में महात्मा गांधी और कस्तूरबा के साथ महादेव देसाई को भी आगाखान जेल भेजा गया, जहां उनका हार्ट फेल हो गया। गांधी जी ने पिता के रूप में उनके सारे अंतिम संस्कार निभाए। महादेव देसाई ने गांधी के साथ बहुत यात्राएं की। उनकी पूरी दिनचर्या व्यवस्थित की। महादेव देसाई ने 1917 से 1942 तक की संपूर्ण डायरियां लिखी। जनवरी 1948 में गांधी जी की हत्या के फौरन बाद देसाई की डायरियां प्रकाशित होनी शुरू हुई। यह डायरिया महात्मा गांधी के काम और उनके विचार प्रक्रिया को जानने की सर्वप्रथम सूचना का एकमात्र स्रोत हैं।
महादेव देसाई की डायरियों के पहले प्रकाशक उनके पुराने मित्र और गांधीजी के साथी नरहरी पारीख ( 1891- 1957) थे। उन्होंने मुंबई में साथ-साथ वकालत पढ़ी थी। 1915 में अहमदाबाद में दोनों ने एक साथ गांधी जी से मुलाकात की थी। उत्सव में वे अपनी वकालत शुरू करने की तैयारी कर रहे थे। नरहरी 1916 में आश्रम से जुड़े और महादेव देसाई 1917 में। देसाई की मौत के बाद, कुछ समय तत्व गांधीजी के सचिव रहे। उन्होंने महादेव देसाई की डायरियां संपादित कीं।
साबरमती आश्रम का पुस्तकालय और महादेव देसाई
साबरमती के गांधी आश्रम में बहुभाषी पुस्तकालय में 50 हजार के करीब किताबें हैं। इस संग्रह में जीवनी परक, ऐतिहासिक, दार्शनिक और राजनीतिक पक्षों पर महात्मा गांधी के जीवन और विचारों पर आधारित किताबें हैं। लाइब्रेरी में उल्लेखनीय संग्रह आधुनिक इतिहास, राजनीति, समाज और संस्कृति पर केंद्र पुस्तकों का भी संग्रह है। एक प्रमुख हिस्सा हिटलर दीदी का गांधीजी से जुड़ी प्रमुख हस्तियों पर किए गए अध्ययनों का है। लाखेरी में खास अनुभाग है जिसका नाम है महादेव देसाई संग्रह।
गांधी जी के साथ 25 वर्ष- महादेव देसाई की डायरी- 10 खंड ( संपादक-नरहरि पारिख ) के कुछ दुर्लभ अंश
खंड-1
नवंबर 1917 में महादेव भाई बापू के साथ रहे। मालूम होता है, तभी से उनका डायरी रखने का विचार था। शुरू शुरू में बापू के लिखे महत्वपूर्ण पत्रों की नकल अपनी डायरी में कर लेते। बाद में बापू के उद्गार, उनके साथ समय-समय पर होने वाली बातचीत और महत्वपूर्ण घटनाओं को भी अपनी डायरी में लिखने लगे।
डायरी का यह खंड 13 नवंबर 1917 से 28 मई 1919 तक के समय का है इस डायरी में जो बहुसंख्यक पत्र हमें मिलते हैं, उनसे इस बात का अत्यंत स्पष्ट दर्शन हो जाता है कि देश में आकर काम शुरू करते समय गांधी जी के सामने कैसे-कैसे प्रश्न आए, अपने जीवन दर्शन की दृष्टि से उन्होंने इन प्रश्नों को किस ढंग से देखा और किस तरह हल करने का प्रयत्न किया।
जब चंपारण की लड़ाई और उसकी जांच का काम पूरा हो चुका था, कमेटी की सिफारिशों के अनुसार बनाए गए कानून को अंतिम रूप देना ही बाकी था और वहां के किसानों में पैदा हुई जागृति को कायम रखने और उनकी ताकत बढ़ाने का प्रयत्न करने के लिए बापूजी ने वहां रचनात्मक काम शुरू कर दिया था, उसी समय यह डायरी शुरू हुई थी.
चंपारण का काम अभी पूरा नहीं हुआ था इतने में गुजरात में दो बड़े काम गांधीजी के सामने आ पड़े- फसल मारी जाने के कारण खेड़ा जिले की लगान स्थगित कराने की लड़ाई और अहमदाबाद में महंगाई के कारण मिल मजदूरों की अपनी मजदूरी बढ़ाने की लड़ाई। मिल मजदूरों की लड़ाई के बारे में अमदाबाद के कलेक्टर ने बापू के सामने अपने हार्दिक उद्गार प्रकट किए थे कि' मिल मालिकों' और मजदूरों के बीच इतने स्नेह से हुई लड़ाई मैं अपनी जिंदगी में पहले पहल यही देख रहा हूं… ' इस हड़ताल के सिलसिले में बापू के उपवास का रहस्य भी इस डायरी से विशेष समझ में आता है।
एक पत्र में वे लिखते हैं:' अहमदाबाद की हड़ताल में मुझे जीवन के कीमती से कीमती सबक मिले। हड़ताल के दिनों में प्रेम की शक्ति का जो चमत्कारी प्रदर्शन हुआ, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था।…. उपवास में किया होता तो मजदूर ही जाते। उपवास से ही वह टिके रहे। ऐसी टेक के लिए कम से कम मांग ही उचित मानी जा सकती है.
खंड-2
यह डायरी असहयोग काल की है वह मेरा इस के पन्ने पन्ने पर नींद में सोए देश को जगाने के गांधी के उत्कट प्रयत्नों के दर्शन होते हैं। आजादी मिलने के पहले हमने तीन बड़ी लड़ाइयां लड़ी है: 1920- 21 की असहयोग की लड़ाई, 1930 से 1934 की सविनय कानून भंग की लड़ाई और 1942 कि भारत छोड़ो की लड़ाई। तीनों का महत्व बहुत अधिक है परंतु 1920-21 की लड़ाई का केवल हमारे ही देश के इतिहास के लिए नहीं, बल्कि दुनिया के इतिहास के लिए भी, लड़ने की एक बिल्कुल नई पद्धति का प्रयोग शुरु होने के कारण विशेष महत्व है। गांधीजी शांति और शमिता की मूर्ति थे किंतु लड़ाई के मौके पर भी ऐसी उग्रता धारण कर लेते हैं और ऐसे जूझने वाले बन जाते कि देखने और सुनने वाले सभी को उनकी उत्कटता की छूत लगती थी।
जिस साम्राज्य के लिए यह कहा जाता था कि उसमें कभी सूर्य अस्त नहीं होता और यह माना जाता था कि उसकी जने हमारे देश में बहुत गहरी जम गई हैं, यहां तक कि हमारे देश में यह मानने वाला एक बहुत बड़ा शिक्षित वर्ग था कि इस साम्राज्य की छत्रछाया में देश की ऐसी प्रगति हो रही है, जैसी पहले कभी नहीं हुई, और उस वर्ग में एक समय खुद गांधी जी भी थे; उस ब्रिटिश हुकूमत की प्रतिष्ठा एक ही विशेषण ' शैतानी' लगाकर गांधीजी ने धूल में मिला डाली।
आम जनता, औरतें और बच्चे तक खुल्लम-खुल्ला कहने लगे कि' हमें यह सरकार नहीं चाहिए।' इतने विशाल देश में इतनी बड़ी क्रांति गांधीजी ने कर डाली, इसका वर्णन महादेव भाई की मुख शैली में हमें इस डायरी में मिलता है।
जब 1914 से 1918 का प्रथम महायुद्ध छिड़ गया, तब वह इंग्लैंड में थे। वह वाले भारतीयों का एक सेवादल खड़ा किया। जब वे साम्राज्य के प्रति नरम रवैया रखते थे, तब भी साम्राज्य के अन्याय के विरुद्ध तो उन्होंने जबरदस्त लड़ाइयां लड़ी ही हैं। दक्षिण अफ्रीका की जगत प्रसिद्ध लड़ाई के सिवा गिरमिट प्रथा बंद कराने के लिए उनके द्वारा देश में शुरू की गई हलचल, चंपारण और खेड़ा की लड़ाइयां और रौलट कानून के विरुद्ध खेड़ा सत्याग्रह- यह सब कदम उन्होंने तब उठाए थे जब वह ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति नरम रवैया रखते थे।
खंड-3
यह डायरी बीच के फुटकर व्यवधान के साथ जून 1921 तक की है। दिसंबर 1921 में महादेव भाई गिरफ्तार हुए और तब तक वह पंडित मोतीलाल जी के साथ थे। उत्तमेश्वरी कृष्णदास नाम के एक बंगाली सज्जन गांधीजी के साथ घूम रहे थे। उन्होंने 'गांधीजी के सात मास' नामक पुस्तक अंग्रेजी में लिखी।
दूसरी डायरियो की तरह गांधी जी के कुछ सुंदर पत्र भी इस डायरी का बड़ा आकर्षक अंग है। इसके सिवा ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति अपनी वफादारी कैसे छोड़नी पड़ी और उसके साथ असहयोग क्यों करना पड़ा, इस बारे में अंग्रेज जाति को और अन्य लोगों को लिखी गई खुली चिट्टियां भी परिशिष्ट (274-290) में दी गई है।
खंड-9
महादेव भाई की डायरी का नौवां खंड है. यह खण्ड 1 जुलाई 1927 से 20 दिसंबर 1927 तक का है। यह समय भी प्रायः प्रवास में ही बीता था और वह भी मुख्य रूप से खाली था तथा चरके के प्रचार के लिए और उसके लिए फंड जमा करने में। गांधीजी ने इस प्रवास के दौरान गुजरात में प्रचंड प्रलय का संकट आ पड़ा। जहां वर्षा का वार्षिक औसत 30 इंच था, वहां वर्षा ऋतु के शुरू में ही जुलाई बीतते- बीतते 70 इंच वर्षा हो गई।
एक ही सप्ताह में 52 इंच वर्षा हुई। अनेक मकान ढह गए, इन से भी अधिक कच्चे मकान बह गए।डाक,तार, रेलवे- सारा व्यापार ठप्प हो गया। गांधी जी को यह समाचार बेंगलुरु में मिले। 'पालथी मारकर बैठे रहना और अपनी निर्मम आंखों से नुकसान को देखते रहना और उसका उपाय ना करना तो मूर्खता है' ऐसा कहकर गुजरात के लोगों तथा कार्यकर्ताओं को हिम्मत, उत्साह और मार्गदर्शन दिया।'
'गर्वीला गुजरात' रो रहा है। जिसने आज तक दूसरों की झोली या भरी है, उस पर ऐसा समय आया है कि खुद की झोली पसार रहा है। ऐसे विपत्ति के समय… मदद दोहराई ना जाए और दान का व्यर्थ व्यय ना हो, इसके लिए सब मंडलों का मिलकर काम करना जरूरी है।
सत्य का आग्रह रखते हुए कहा :'सट्टे के माह में जो ना आए, उसे छोड़ना, फिर भले ही वह बड़ी से बड़ी स्मृति में ही क्यों ना लिखा गया हो।' वे अहिंसा के अत्यंत आग्रही थे। श्री आवारी के नेतृत्व में चलने वाले नागपुर के शस्त्र भंग सत्याग्रह के साथ में सहमत नहीं थे। इस बारे में उनको लिखा -
'स्वर अक्षण की पूरी पूरी आवश्यकता है। इसके लिए मेरा हथियार सत्याग्रह हैं। दूसरे भले ही शास्त्रों के द्वारा स्वराज्य लें और संग्रह करें। मेरी स्वराज्य की योजना में ऐसे शस्त्र को भी स्थान है,दंड को नहीं। लेकिन' दया जहां दंड के जितना असर ना करती हो, वह वह सच्ची नहीं अथवा पर्याप्त नहीं, यह समझना चाहिए।'
खंड-10
गांधीजी की आत्मकथा के अंग्रेजी अनुवाद की पहली किस्त ' यंग इंडिया' के 3 दिसंबर 1925 के अंक में छपी थी उमरा उसके बाद हर सप्ताह 1-1 किस्त छपती , अनुवाद करने का काम महादेव भाई करते। यह काम सन 1926 में, 1927 में और डायरी के लेखन के दरमियान भी चालू था।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।

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