सम्पादकीय

उपाय : ईंधन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की राह, खराब खाद्यान्न या कृषि अवशेषों से एथेनॉल निकालना रहेगा बेहतर

Neha Dani
11 Jun 2022 1:43 AM GMT
उपाय : ईंधन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की राह, खराब खाद्यान्न या कृषि अवशेषों से एथेनॉल निकालना रहेगा बेहतर
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कार्बन उत्सर्जन बड़ा मुद्दा बन गया है। ऐसे में एथेनॉल मिश्रित ईंधन एक बेहतर विकल्प बन सकता है।

भारत ने तय समय से पांच महीने पहले पेट्रोल में 10 प्रतिशत एथेनॉल मिलाने का लक्ष्य हासिल कर लिया है। ऐसे समय, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं, यह एक राहत देने वाली खबर है। हम पेट्रोलियम उत्पादों के लिए आयात पर निर्भर हैं। कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए 2025-26 तक पेट्रोल में एथेनॉल के मिश्रण को दोगुना करने का लक्ष्य है।

गन्ने और अन्य कृषि जिंसों से निकाले गए एथेनॉल को पेट्रोल में 10 प्रतिशत मिलाने का लक्ष्य नवंबर, 2022 का था, लेकिन इसे जून में ही हासिल कर लिया गया। सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम विपणन कंपनियों - इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) के जोरदार प्रयासों के चलते ऐसा संभव हो सका।
गन्ने और गेहूं व टूटे चावल जैसे खराब हो चुके खाद्यान्न तथा कृषि अवशेषों से एथेनॉल निकाला जाता है। इससे प्रदूषण भी कम होता है और किसानों को अलग आमदनी कमाने का एक जरिया भी मिलता है। पिछले वर्ष सरकार ने वर्ष 2022 तक पेट्रोल में 10 प्रतिशत तथा वर्ष 2030 तक 20 प्रतिशत एथेनॉल का सम्मिश्रण करने का लक्ष्य तय किया था। विपणन कंपनियां देश भर में पेट्रोल में औसतन 10 प्रतिशत एथेनॉल मिला रही हैं (10 प्रतिशत एथेनॉल, 90 प्रतिशत पेट्रोल) जबकि वर्ष 2014 में इस सम्मिश्रण का स्तर 1-1.5 प्रतिशत ही था।
पांच जून को पर्यावरण दिवस के मौके पर खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इस उपलब्धि की जानकारी दी थी। इसके फलस्वरूप 41,500 करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा की बचत हुई, ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) के उत्सर्जन में 27 लाख टन की कमी आई और किसानों को 40,600 करोड़ रुपये से अधिक का तत्काल भुगतान भी हुआ है। भारत दुनिया में अमेरिका, ब्राजील, यूरोपीय संघ और चीन के बाद एथेनॉल का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक है।
एथेनॉल की खरीद सालाना 38 करोड़ लीटर से बढ़कर अब 320 करोड़ लीटर हो गई है। जब 20 प्रतिशत सम्मिश्रण होने लगेगा, तो एथेनॉल खरीद की मात्रा और बढ़ जाएगी। पिछले साल तेल कंपनियों ने एथेनॉल खरीद पर 21,000 करोड़ रुपये खर्च किए थे। दुनिया भर में एथेनॉल का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर उपभोग के लिए किया जाता है, लेकिन ब्राजील और भारत जैसे देश इसे पेट्रोल में मिलाते हैं।
भारत सरकार ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने, ईंधन के लिए आयात पर निर्भरता कम करने, विदेशी मुद्रा बचाने, पर्यावरणीय मुद्दों को हल करने और घरेलू कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम को बढ़ावा दे रही है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है, जो अपनी 85 प्रतिशत से अधिक मांग को पूरा करने के लिए विदेशों से आयात पर निर्भर है। एथेनॉल पर ध्यान केंद्रित करने से पर्यावरण के साथ-साथ किसानों के जीवन पर भी बेहतर प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि यह किसानों को आय का एक और स्रोत उपलब्ध कराता है।
एथेनॉल खरीद में इस आठ गुना वृद्धि के एक बड़े हिस्से से देश के गन्ना किसानों को फायदा मिला है। कच्चे तेल पर आयात पर निर्भरता कम करने में बायोफ्यूल पॉलिसी काफी मददगार होगी। बायोफ्यूल प्रोडक्शन के लिए कई और उत्पादों की अनुमति दी जा रही है। इससे आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा मिलेगा तथा इससे भारत को 2047 तक ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को पूरा करने में मदद मिलेगी।
स्वीडन और कनाडा जैसे देशों में एथेनॉल मिश्रित ईंधन से वाहन चल रहे हैं। कनाडा में तो एथेनॉल के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से सब्सिडी तक दी जाती है। यही कारण है कि इन देशों में प्रदूषण का स्तर बेहद ही कम है। हाल के वर्षों में हमने देखा है कि कैसे वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन बड़ा मुद्दा बन गया है। ऐसे में एथेनॉल मिश्रित ईंधन एक बेहतर विकल्प बन सकता है।

सोर्स: अमर उजाला

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