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- वैश्विक शांति के लिए...
मनुष्य जैसे-जैसे सभ्यता की सीढिय़ां चढ़ता गया, वैसे-वैसे जीवन को सुखी बनाने के उसने नए-नए रास्ते खोजने आरंभ किए। इसी खोज में धर्म का आविष्कार हुआ। बाहरी प्रयासों से मनुष्य समाज के भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करने की होड़ और टकरावों को रोक पाना उतना आसान नहीं था। धर्म ने आंतरिक अनुशासन द्वारा इन टकरावों को कम करके सुखी जीवन की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम बढ़ाया। धीरे-धीरे धर्म जीवन से जुड़ी समस्याओं को और गहराई से देखने लगा। धर्म के साथ दार्शनिक सोच का आविर्भाव हुआ। दर्शन से तर्कपूर्ण सोच का उदय हुआ। अलग-अलग देशों में पैदा हुए धर्मों ने अपने-अपने देशकाल जनित परिस्थितियों के अनुरूप धर्म के लक्ष्य निर्धारित करके संसार के पैदा होने के कारणों और संचालित होने के रहस्यों को जानने का प्रयास किया। उसके अनुरूप धार्मिक पद्धतियों का विकास हुआ। जाहिर है कि अलग-अलग देशकाल के कारण उनके निष्कर्ष अलग-अलग ही थे। इसलिए पद्धतियां भी अलग-अलग बनी। हालांकि मनुष्य की बुनियादी जरूरतों की साम्यता के चलते उनमें बुनियादी तत्त्वों में कुछ समानता भी थी। जैसे कि ईमानदारी से जीना, ताकि दूसरों को कष्ट न हो, सच बोलना, दूसरों की मदद करना, चोरी न करना, ईश्वर का धन्यवाद करते रहना आदि। ये मोटे नियम समाज में सुखी जीवन लाने के लिए ही बनाए गए। इन्हें मानने से कानून की मदद लेकर सामाजिक व्यवहार को दिशा देने की जरूरत कम ही पड़ती।
By: divyahimachal