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![ग्राहकों को मिली राहत ग्राहकों को मिली राहत](https://jantaserishta.com/h-upload/2022/07/06/1758449-50.webp)
नवभारत टाइम्स: सेंट्रल कंस्यूमर प्रटेक्शन अथॉरिटी (सीसीपीए) ने आखिरकार सोमवार को बाकायदा गाइडलाइन जारी कर कह दिया कि होटलों और रेस्तरां में ग्राहकों से सर्विस चार्ज नहीं लिया जा सकता। इसे अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस करार दिया गया है। इसके बावजूद अगर किसी होटल या रेस्तरां में सर्विस चार्ज लगाया जाता है और अनुरोध करने पर भी इसे नहीं हटाया जाता तो ग्राहकों को तत्काल शिकायत करने का विकल्प भी मुहैया कराया गया है। दरअसल, सर्विस चार्ज का यह विवाद कई वर्षों से चल रहा है। ग्राहकों की ओर से इस बारे में काफी शिकायतें भी दर्ज होती रही हैं। बावजूद इसके, होटलों और रेस्तरां ने बिल में सर्विस चार्ज जोड़ना बंद नहीं किया। इस संबंध में उपभोक्ता मामलों के विभाग की ओर से पिछले महीने बुलाई गई बैठक में भी होटल और रेस्टोरेंट इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों ने इस चलन का बचाव किया। उनका कहना था कि यह किसी होटल या रेस्तरां की इंडिविजुअल पॉलिसी का मामला है और इसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं है। यह भी कि सर्विस चार्ज के जरिए आया पैसा होटल और रेस्तरां के कर्मचारियों में बंटता है, जिनकी ग्राहकों तक सेवा पहुंचाने में प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका होती है और यह भी कि इस पर टैक्स अदा किया जाता है, इसलिए सरकार को भी इससे आमदनी ही होती है। लेकिन किसी रकम पर टैक्स चुका देना उसकी वसूली के जायज होने की गारंटी नहीं होता।
जहां तक सर्विस चार्ज का सवाल है तो इसकी तुलना टिप से नहीं की जा सकती। टिप कस्टमर किसी होटल या रेस्तरां की सर्विस से संतुष्ट होने पर अपनी मर्जी से देता है। टिप की रकम भी वह खुद निर्धारित करता है। लेकिन सर्विस चार्ज होटल या रेस्तरां की ओर से ग्राहक पर थोपा जाता है। उसे पहले से इसकी सूचना भी नहीं दी जाती। फिर कुछ होटल और रेस्तरां ऐसा करते हैं, जबकि कुछ नहीं करते। कौन कितना सर्विस चार्ज लगाएगा यह भी उसकी 'इंडिविजुअल पॉलिसी' पर निर्भर करता है। ऐसे में कस्टमर अक्सर खुद को ठगा सा महसूस करता है। गाइडलाइन के जरिए ठीक ही पूरी सख्ती से यह बात स्थापित की गई है कि कस्टमर और इंडस्ट्री के बीच व्यवहार में पूरी पारदर्शिता रहनी चाहिए। अगर कोई होटल मैनेजमेंट अपने कर्मचारियों का वेतन और उनकी सुविधाएं बढ़ाना चाहता है तो वह रेट बढ़ा सकता है। लेकिन उसके मेन्यू पर रेट दर्ज रहेगा, जिसके आधार पर कोई कस्टमर यह तय कर सकता है कि उसे वहां की सेवाएं लेनी हैं या नहीं। पर निर्धारित रेट और उस पर लगने वाले टैक्स के अलावा कोई भी और रकम किसी भी नाम पर अगर कस्टमर से उसकी मर्जी के खिलाफ ली जाती है तो उसे फेयर ट्रेड नहीं माना जा सकता। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह कदम अपने देश में होटल इंडस्ट्री में प्रफेशनलिज़म को बढ़ावा देते हुए कस्टमर के साथ उसके रिश्ते को ज्यादा सौहार्दपूर्ण बनाएगा।