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हिमनद के गिरने के बाद ऋषिगंगा नदी ने जैसा उग्र रूप धारण कर लिया था
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हिमनद के गिरने के बाद ऋषिगंगा नदी ने जैसा उग्र रूप धारण कर लिया था और जिस बड़े पैमाने पर तबाही मची, उसमें जान बचा पाना किसी के लिए आसान नहीं था। जल प्रवाह का वेग इतना ज्यादा था कि अचानक पानी आने की किसी को कल्पना भी नहीं रही होगी। ऐसे में जिसको जो समझ आया और जहां बचने का ठिकाना मिला, उसने अपने को बचा लिया।
जो नदी के बहाव की चपेट में आ गए, वे बह गए या फिर मलबे के ढेर में दब-फंस गए। अब आपदा ग्रस्त क्षेत्र में एक-एक व्यक्ति को खोज कर निकालना सबसे बड़ा और चुनौतीभरा काम है। राहत और बचाव के काम युद्धस्तर पर चल रहे हैं। सेना, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, स्थानीय पुलिस, आपदा प्रबंधन के दल और स्थानीय नागरिक मीलों में फैले इलाके में चप्पा-चप्पा छान रहे हैं ताकि लापता लोगों को खोजा जा सके। राहत और बचाव के काम में अत्याधुनिक तकनीक, उपकरणों और यहां तक कि ड्रोन का भी उपयोग किया जा रहा है।
सबसे ज्यादा मुश्किल काम सुरंग जैसी जगहों पर फंसे लोगों को निकालने का है। तपोवन-विष्णुगाड बिजली पन बिजली परियोजना की सुरंग में कई लोग फंसे है। इस काम में नौ सेना के विशेष दस्ते की मदद ली जा रही है। कोशिश यही है कि जितना जल्दी संभव हो सके, फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाए।
पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादातर इलाके दुर्गम होते हैं और किसी भी आपात स्थिति में तत्काल वहां पहुंच पाना आसान नहीं होता। आपदा के कारण भारत-चीन सीमा के पास पुल टूट जाने से कई गांवों का संपर्क कट गया है। छोटे नदी-नालों को पार करने के लिए ग्रामीण इन पुलों पर ही निर्भर रहते हैं। पहाड़ों में ज्यादातर गांवों तक पहुंचने का जरिया पगडंडियां और दुर्गम रास्ते ही होते हैं। ऐसे में आपदा की सूरत में संकट और गहरा जाता हैं। हालांकि ग्रामीणों तक पहुंच के लिए राहत दलों ने हेलिकॉप्टरों की मदद ली और जरूरी सामान पहुंचाया है। इसी तरह लापता लोगों की तलाश के लिए ड्रोन से तस्वीरें ली जा रही हैं।
चमोली में आई आपदा से हुई तबाही का सही-सही आकलन फिलहाल संभव नहीं है। अभी तो यही सामने आया है कि दो पनबिजली परियोजनाओं को डेढ़ हजार करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचा। लेकिन जिन परिवारों के लोग इस हादसे की बलि चढ़ गए हैं, उनके नुकसान की कोई कीमत नहीं आंकी जा सकती। साढ़े सात साल पहले केदारनाथ की आपदा के बाद इतना तो हुआ है कि पहाड़ी क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन तंत्र की सजगता देखने को मिली है।
आपदा के कुछ ही घंटों में जिस तरह से बचाव और राहत के काम शुरू हो गए, पहले इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। पर अब नए-नए उपकरण, तकनीक और संचार नेटवर्क ने बचाव कार्यों को आसान तो बना दिया है। तीन दिन के भीतर ही संचार सेवाएं शुरू हो गई हैं और सीमा सड़क संगठन के जवानों ने रास्तों और पुलों को दुरुस्त करने का काम शुरू कर दिया है। इस आपदा से हमें यह सीख लेना चाहिए कि जिन इलाकों में खतरों को लेकर बार-बार जो चेतावनियां दी जा रही हैं, उन्हें नजरअंदाज न करें।
Neha Dani
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