सम्पादकीय

नदी उत्सव मनाने की प्रासंगिकता

Gulabi
23 Dec 2021 4:41 AM GMT
नदी उत्सव मनाने की प्रासंगिकता
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हम ये कैसे भूल सकते हैं कि नदियां समुद्र में समाहित होने से पहले कई दायित्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करती हैं

हम ये कैसे भूल सकते हैं कि नदियां समुद्र में समाहित होने से पहले कई दायित्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करती हैं। इस दौरान मैदानों का निर्माण कर उन्हें ऊंचा करती हैं, डेल्टा बनाती हैं, भूजल के पुनर्भरण के साथ मिट्टी व भूजल का शोधन तो करती ही हैं, अंत में समुद्र में समाहित होकर उसका खारापन भी नियंत्रित करती हैं। नदी निरंतरता, बल, क्रियाशीलता, प्रेरणा, रूप, रस, संगीत, शीतलता, जीवंतता जैसे अनगिनत गुणों की खान है। नदी महज़ जल की धारा नहीं अपितु वनस्पतियों, सूक्ष्म व अन्य जलीय जीवों की संपूर्ण जीवन प्रणाली है…

हमारे ग्रंथों में कहा गया है ः 'पिबन्ति नद्यः, स्वयंमेव नाम्भः'। अर्थात नदियां अपना जल खुद नहीं पीती बल्कि परोपकार के लिए देती हैं। ये जलधारा का ही निमित मात्र नहीं अपितु उनके भीतर प्राणियों व अनेकों वनस्पतियों का संसार रचा बसा है। नदियां न केवल मनुष्य बल्कि जैव विविधता का भी केंद्र रही हैं। नदियों के तट पर सदियों से अनेकों सभ्यताएं पनपी हैं। भूत हो या वर्तमान या फिर भविष्य, सभ्यताओं का विस्तार न तो नदियों के बगैर संभव था न संभव होगा। नदियां हमारी आस्थाओं का केंद्र भी रही हैं। किसी भी स्थान का भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक परिदृश्य नदियों पर बहुत कुछ निर्भर करता है। हमारी संस्कृति इन्हीं के किनारे फली-फूली है, इसलिए हम अपनी सभ्यता को 'गंगा की सभ्यता' कहते हैं। इसी कारण हम स्वयं को 'गंगा जमुनी संस्कृति' से जोड़ते हैं। संस्कृति एक तरह का निर्देश भी है और पुरातन काल में नदियों को मां मानने का निर्देश था।

आज हम नदियों को मां कहते जरूर हैं, लेकिन हमारा व्यवहार उनके प्रति मां तुल्य नहीं है। हम आस्था के नाम पर केवल उनकी पूजा ही करते हैं। असल में हमने उन्हें कचरा, औद्योगिक व मल ढोने वाली मालगाड़ी बनाकर उनकी अविरल धारा को मलिन कर दिया है। यही वजह है कि 26 सितंबर 2021 को विश्व नदी उत्सव पर माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आजादी के अमृत महोत्सव के अनेक कार्यक्रमों व आयोजनों की श्रृंखला में एक और कड़ी जोड़ते हुए इस वर्ष का गंगा उत्सव 2021 को भारत के विभिन्न नदी घाटियों तक ले जाने और नदी उत्सव के माध्यम से हमारे देश में सदियों पुरानी नदियों से जुड़ी परंपराओं से लोगों को जोड़ने की बात उजागर की। मोदी जी ने मन की बात के माध्यम से विश्व नदी दिवस पर नदियों के महत्व, उनके प्रति आस्था व उनसे जुड़ी परंपराओं की याद दिलाते हुए साल में एक बार नदियों का आभार व्यक्त करने, उन्हें स्वच्छ रखने की शपथ लेने और उनकी अविरल धारा की निरंतरता बनाए रखने के लिए पूरे देश में गंगा महोत्सव की तर्ज पर मुख्य नदियों पर नदी उत्सव मनाने का आह्वान किया।
उसी के मद्देनजर संपूर्ण भारत में 17 से 23 दिसंबर तक सभी प्रांतों की मुख्य नदियों पर नदी उत्सव मनाया जा रहा है। जिस तरह गंगा उत्सव गंगा संरक्षण में जन-जन की भागीदारी सुनिश्चित करता है, उसी तरह नदी उत्सव पूरे देश की नदियों के जल, संपदा व नदी में रहने वाले प्राणियों के संरक्षण हेतु मनाया जा रहा है। नदी उत्सव के इस महायज्ञ में देवभूमि हिमाचल भी नदियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनके संरक्षण व उनकी स्वच्छता का प्रण लेने के लिए नदी उत्सव से बड़े हर्षोल्लास के साथ जुड़ चुका है। जैसा कि हम जानते ही हैं कि हिमाचल पंच नदियों का प्रदेश है। सतलुज, ब्यास, यमुना, रावी और चिनाब। यहां पहाड़ों के बीच बहने वाली ये खूबसूरत नदियां न केवल शीतल जल धाराओं की एक अविरल यात्रा है, अपितु ये यहां के भौगोलिक, आर्थिक व सांस्कृतिक परिदृश्य का भी आधार हैं। कृषि, बागवानी, विद्युत आपूर्ति, जल क्रीड़ा, धर्म, साहित्य, संस्कृति व आस्था की प्रतीक ये पंच नदियां प्रदेश की जीवन रेखाएं हैं। ये पंच नदियां न केवल हमारे जीवन सृजन का आधार हैं बल्कि हमारी विलक्षण पहचान भी हैं। पौंटा साहेब में यमुना, चंबा में रावी तथा मंडी व कुल्लू में ब्यास नदी पर भिन्न-भिन्न दिनों में ये उत्सव राज्य स्वच्छता एवं पेयजल मिशन, जल शक्ति विभाग का सिरमौर, सुंदरनगर, कुल्लू व चंबा वृत, जिला प्रशासन, संस्कृति विभाग, गैर सरकारी संगठन, वन विभाग, स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय, साहित्यकारों, लोक गायकों, नेहरू युवा केन्द्रों आदि अनेकों संस्थानों के साथ जन-जन की भागीदारी सुनिश्चित की गई है।
नदी उत्सव में प्रभात फेरी, योग, वृक्षारोपण, बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए पेंटिंग प्रतियोगिताएं, नदी को संरक्षित करने का प्रेरणा संदेश लिए युवा दौड़, नदी तट स्वच्छता अभियान और हजारों दीपोज्वलन के साथ नदी आरती जैसे मनमोहक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। प्रसन्नता का विषय यह है कि नदियों के प्रति अपनी संवेदनशीलता जताते हुए व नदी संरक्षण को प्रोत्साहन देने के लिए हिमाचल के माननीय मुख्यमंत्री, जल शक्ति मंत्री व शिक्षा मंत्री सहित अनेक गणमान्य जन नायकों व उच्चाधिकारियों की उपस्थिति ने नदी उत्सव की गरिमा को और भी बढ़ा दिया है। हम ये कैसे भूल सकते हैं कि नदियां समुद्र में समाहित होने से पहले कई दायित्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करती हैं। इस दौरान मैदानों का निर्माण कर उन्हें ऊंचा करती हैं, डेल्टा बनाती हैं, भूजल का पुनर्भरण के साथ मिट्टी व भूजल का शोधन तो करती ही हैं, अंत में समुद्र में समाहित होकर उसका खारापन भी नियंत्रित करती हैं। नदी निरंतरता, बल, क्रियाशीलता, प्रेरणा, रूप, रस, संगीत, शीतलता, जीवंतता जैसे अनगिनत गुणों की खान है। नदी महज़ जल की धारा नहीं अपितु वनस्पतियों, सूक्ष्म व अन्य जलीय जीवों की संपूर्ण जीवन प्रणाली है। कहना चाहूंगी कि नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा गंगा यमुना की जीवंतता को कानूनी दर्जा दिया गया है जिससे भारतीय संस्कृति की नदी जीवंतता की अवधारणा पुष्ट होती है। इसके तल में, धाराओं में प्राणियों का वास है। यदि नदी को जीवित होने का दर्जा मिलता है तो कानूनन उसे वे सभी अधिकार मिलते हैं जो एक जीवित प्राणी को मिलते हैं। नदी को मलिन कर बीमार करना, खनन करना जैसे कृत्य क्रिमिनल एक्ट के तहत आते हैं। मैं समझती हूं कि नदी उत्सव भारत सरकार द्वारा उठाया गया सराहनीय कदम है। यूं भी नदियां हमें जल देती हैं और जल हमें जीवन। आओ, हम सब जन-जन की भागीदारी सुनिश्चित कर, संरक्षित कर नदियों को मलिन होने से बचाएं, तभी सर्वकल्याण होगा।
कंचन शर्मा
लेखिका शिमला से हैं
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