सम्पादकीय

कानून-व्यवस्था और लोकतंत्र के रिश्ते

Subhi
7 Aug 2022 10:40 AM GMT
कानून-व्यवस्था और लोकतंत्र के रिश्ते
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हां हम योगी माडल कर्नाटक में लाने के लिए तैयार हैं। बल्कि योगी माडल से आगे भी जाने को हम तैयार हैं। ऐसा कहा कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने, जब एक के बाद एक तीन नौजवान मारे गए एक हफ्ते के अंदर।

तवलीन सिंह: हां हम योगी माडल कर्नाटक में लाने के लिए तैयार हैं। बल्कि योगी माडल से आगे भी जाने को हम तैयार हैं। ऐसा कहा कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने, जब एक के बाद एक तीन नौजवान मारे गए एक हफ्ते के अंदर। पहली हत्या भारतीय जनता युवा मोर्चा के सदस्य, परवीन नेटारु, की जब हुई तो खूब हल्ला मचाया हिंदुत्ववादियों ने कि यह जिहादियों का काम ही हो सकता है, किसी और का नहीं।

दो मुसलिम युवक गिरफ्तार भी हुए। इसके बाद जब दो मुसलिम युवकों को जान से मारा गया, तो जिहादियों पर दोष लगाना मुश्किल हो गया और मुख्यमंत्री से जब जवाब मांगा पत्रकारों ने तो उन्होंने योगी माडल को कर्नाटक में लाने की बात कही।

इस बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी के समर्थक लग गए मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को बचाने में। चर्चाएं हुर्इं टीवी पर, जिनमें कहा गया कि मुख्यमंत्री का यह मतलब नहीं था कि योगी की तरह वे भी बुलडोजर चलाने को तैयार हैं उन लोगों के मकानों पर, जिन पर हिंसा या दंगों में शामिल होने का शक है।

ऐसी एक चर्चा में मैंने भी भाग लिया और हैरान रह गई जब देखा कि जो भाजपा समर्थक मेरे सामने थे उनको कानून-व्यवस्था और लोकतंत्र का रिश्ता तक नहीं मालूम था। एक महिला ने गर्व से उत्तर प्रदेश के आंकड़े पेश करते हुए कहा कि योगी के बुलडोजर माडल के कारण उत्तर प्रदेश में डकैतियां और अन्य अपराध कोई सत्तर फीसद कम हो गए हैं और अपराधी अब या तो जेलों में बंद हैं या इतने डरे हुए हैं कि दंगे करने की हिम्मत नहीं रही है उनमें।

मैंने जब इस योगी समर्थक को याद दिलाया कि उत्तर प्रदेश से तकरीबन रोज खबर आती है किसी बच्ची से बलात्कार की या किसी दलित पर अत्याचार की, तो इतनी तैश में आ गई वह महिला कि उससे बहस करना बेकार था।

लेकिन कानून-व्यवस्था और लोकतंत्र के रिश्ते पर बहस बहुत जरूरी हो गई है, इसलिए कि ऐसा लगने लगा है कि इस रिश्ते के बारे में बहुत कम भारतीय जानते हैं। बहुत कम लोग हैं अपने इस भारत महान में जो समझते हैं कि लोकतंत्र का नीव का पत्थर है कानून-व्यवस्था।

जिन देशों में कानून प्रणाली के नियमों के तहत किसी को दंडित नहीं किया जाता है, उनको लोकतांत्रिक नहीं, तानाशाही कहा जाता है। सो, योगी माडल की तारीफ जो करते हैं उनको शर्म आनी चाहिए। योगी माडल का मतलब है कानून-व्यवस्था की जगह बुलडोजर लाना। सो, जो काम पुलिस और अदालतों को करना चाहिए, उस काम को बुलडोजर करते हैं किसी राजनेता के आदेश पर।

इस माडल की खासियत है कि अपराध साबित किए बिना ही दंडित किया जाता है किसी और को दंड फांसी की सजा से कम नहीं है, इसलिए कि घंटों में बुलडोजर चूर-चूर कर देता है किसी के पूरे जीवन को। मकान कभी सिर्फ मकान नहीं होता। उसकी चार दीवारों के अंदर कैद होती हैं किसी परिवार की सारी यादें, सारी मेहनत, सारी उमीदें। सो, सजा भुगतता है एक पूरा परिवार।

यह कैसा न्याय है? शायद वही लोग इसको न्याय मानते हैं, जिन्होंने कभी सोचा ही नहीं है कि उनके साथ भी ऐसा कभी हो सकता है, अगर देश के सारे राज्यों में योगी माडल की नकल होती रही। योगी माडल की नकल हमने मध्यप्रदेश और दिल्ली में होती देखी है। मध्यप्रदेश में जब बुलडोजर चले तो उस राज्य के गृहमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि जो लोग पत्थर फेंकेंगे, उनके घर पत्थरों के ढेर में बदल दिए जाएंगे।

सर्वोच्च न्यायालय में जब बुलडोजर न्याय का मामला पहुंचा तो भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कहा गया कि बुलडोजर सिर्फ उन इमारतों को गिराने भेजे जाते हैं, जो अवैध हैं और अगर वे वहीं पहुंचते हैं, जहां कोई हिंसक घटना घटी हो तो यह सिर्फ इत्तेफाक है, और कुछ नहीं।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री शायद पहले आला अधिकारी हैं, जिन्होंने स्पष्ट किया है कि बुलडोजर न्याय में वे विश्वास रखते हैं, और योगी माडल जैसी कोई चीज है, जिसके तहत एक नई किस्म की न्याय प्रणाली का इजाद हुआ है 'न्यू इंडिया' में। यानी हममें और चीन जैसे तानाशाही देश में जो फर्क था, वह धीरे-धीरे मिट रहा है।

यह शर्म की बात इसलिए है, क्योंकि चीन बेशक आर्थिक तौर पर हमसे पचास वर्ष आगे निकल गया हो, लेकिन राजनीति में हमसे बहुत पीछे है और यही कारण है कि लोकतांत्रिक देशों में भारत की इज्जत चीन से कहीं ज्यादा है। लोग याद करते हैं कि हमने अजमल कसाब को भी फांसी चढ़ाई थी कानूनी कार्रवाई पूरी होने के बाद, बावजूद इसके कि 26/11 में उसके शामिल होने के हमारे पास सारे सबूत थे।

जिहादी आतंकवाद कम करने के लिए हमको योगी माडल की जरूरत नहीं है। जरूरत है कोई तो कानून-व्यवस्था को मजबूत करने की। हमारे न्यायाधीश बड़ी-बड़ी बातें बहुत करते हैं। राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों को डांट कर लगाते हैं फटकार, लेकिन अपने गिरेबान में झांकने का काम बहुत कम करते हैं।

थोड़ा-सा समय निकाल कर आत्ममंथन करते तो शायद उनको दिखता कि योगी माडल की जरूरत कई भारतीय इसलिए महसूस करते हैं, क्योंकि न्याय की गाड़ी हमारे देश में बैलगाड़ी की रफ्तार से चलती है। अनुमान लगाया जाता है कि अदालतों में चार करोड़ से ज्यादा मामले दशकों से लटके पड़े हैं। तारीख पर तारीख दी जाती है महत्त्वपूर्ण मामलों में भी।

सो, मुंबई में विस्फोट करने वालों को दंडित करने में बीस वर्ष लगे। सूची लंबी है उन मुकदमों की, जो दशकों भटकते फिरते हैं हमारी अदालतों में। सो, अदालत तक पहुंचने की हिम्मत देश की गरीब जनता के पास है ही नहीं।


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