- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- Rekha Birthday...
x
जैसे मोनालिसा की रहस्यमयी मुस्कान का अर्थ कोई आज तक नहीं भेद पाया है
शकील खान जैसे मोनालिसा की रहस्यमयी मुस्कान का अर्थ कोई आज तक नहीं भेद पाया है, कुछ ऐसे ही रहस्य के आवरण में लिपटा है फिल्म अभिनेत्री भानुरेखा गणेशन उर्फ रेखा के चिर यौवन का भेद. रेखा के जीवन के बारे लोग बस उतना ही जानते हैं, जितना रेखा ने चाहा कि लोग उनके बारे में जानें. रेखा के बारे में आप कुछ भी पूरे भरोसे से नहीं कह सकते. जब रेखा बॉलीवुड की नंबर वन अभिनेत्री थीं तब भी, और आज भी, जब वो अब 67 साल की हो रही हैं. आप उनके किस्सों की चर्चा गॉसिप के रूप में ही कर सकते हैं.
मसलन आप दावे से नहीं कह सकते कि फिल्म इंडस्ट्री की सबसे महत्वपूर्ण और सबसे चर्चित अमिताभ-रेखा की लव स्टोरी का सच क्या है? किसी भी पक्ष द्वारा आज तक नहीं स्वीकारी गई ये लव स्टोरी को अचानक ब्रेक कैसे लगा, कब और कहां लगा? पता नहीं. बड़े-बड़ों को घास नहीं डालने वालने वाली रेखा ने एक अपेक्षाकृत अनजान से गैर फिल्मी शख्स मुकेश अग्रवाल से अचानक शादी क्यों कर ली. कर ली ठीक है लेकिन शादी क महज़ सात महीने बाद मुकेश ने सोसाइड क्यों कर लिया? गॉड नोज़.
इस खबर में कितनी सच्चाई है, कोई नहीं जानता कि रेखा ने अभिनेता विनोद मेहरा से शादी की भी थी या नहीं? कुंआरी रेखा कुछ समय पहले मांग भरकर सार्वजनिक समारोह में शामिल हुई थीं, यूं ही तो ऐसा नहीं किया होगा? किसके नाम का सिंदूर उनकी मांग में था, कोई बताएगा?. उनके बांद्रा स्थित बंगले के अंदर की फोटो आज तक किसी ने नहीं देखी है. सत्तर के दशक के मध्य तक अपनी पारिवारिक परिस्थिति का खुलासा उन्होंने नहीं किया था.
उनकी आंखों में झांकने की कोशिश का मौका तो वो किसी को देती नहीं है, जिंदगी में क्या झांकने देंगी. विनोद मेहरा के साथ उनकी मशहूर और चर्चित फिल्म 'घर' के एक गाने के बोल बरबस याद आते हैं, 'आपकी आंखों में कुछ महके हुए से राज़ हैं. आपसे भी खूबसूरत आपके अंदाज़ हैं.' चलिए, सीधी नज़र आने वाली लेकिन वास्तव में वक्र रेखा की मानिंद आड़ी-तेड़ी रही, रेखा की जिंदगी के 68 साला सफर की किताब के पन्ने पलटते हैं और रहस्य भेदने की असफल (!) कोशिश करते हैं. शुरूआत रेखा द्वारा खुद अपने बारे में दिए गए वक्तव्य से, रेखा कहती हैं,
'बंबई एक जंगल की तरह था, और मैं निहत्थे चल रही थी. यह मेरे जीवन के सबसे भयावह चरणों में से एक था… मैं इस नई दुनिया के तौर-तरीकों से पूरी तरह अनभिज्ञ थी… हर एक दिन मैं रोती थी, क्योंकि मुझे वह खाना था, जो मुझे पसंद नहीं था, दीवानों से कपड़े पहनने थे. सेक्विन और सामान मेरे शरीर में प्रहार कर रहे थे. कॉस्टयूम ज्वैलरी मुझे पूरी तरह से भयानक एलर्जी दे रही थी. मेरे द्वारा बहुत अच्छे से धोने के बावजूद हेयर स्प्रे कई दिनों तक नहीं जाता था. मुझे एक तरह से धक्का दिया जाता था, एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो में घसीटा जाता था.'
रेखा के इस मार्मिक वक्तव्य को उनकी पहली फिल्म में घटी घटना के साथ लिंक करें तो मंतव्य समझा जा सकता है. बात 1969 की उनकी पहली फिल्म 'अंजाना सफर' की शूटिंग के समय की है, निर्देशक थे राजा नवाथे तथा फिल्म के हीरो थे उस जमाने के जाने माने अभिनेता विश्वजीत. फिल्म में एक रोमांटिक सीन था, जिसने रेखा को गंभीर रूप से आहत तो किया, लेकिन रातों रात चर्चित भी कर दिया.
बॉयोग्राफी 'रेखा: द अनटोल्ड स्टोरी 'के अनुसार, इस रोमांटिक सीन के शूट के दौरान को-एक्टर विश्वजीत ने उनके साथ एक तरह से जबरदस्ती कर डाली. 40 साल के विश्वजीत ने 15 साल की नवोदित रेखा को जबरदस्ती किस करना शुरू कर दिया. रेखा ने रोकने की बहुतेरी कोशिश की, लेकिन विश्वजीत नहीं माने. लगभग पांच मिनिट तक चले इस 'किस सीन' के दौरान डायरेक्टर नवाथे ने कट बोलने की ज़हमत भी नहीं उठाई.शूटिंग के तमाम लोग सीन के मजे ले रहे थे और रेखा रूआंसी हो रही थी, उसकी आंखें नम थीं.
फिल्म दस साल बाद दो शिकारी के नाम से रिलीज़ हुई. चुंबन के इस सीन ने 1970 में लाइफ पत्रिका के एशियाई संस्करण के मुख्य पृष्ठ पर जगह पाई. इसके चलते अमेरिकी पत्रकार जेम्स शेफर्ड रेखा का साक्षात्कार लेने मुंबई आए. 1970 में उनकी फिल्म सावन भादों आई, जिसने रेखा को रातों रात स्टार बना दिया. इस रोमांटिक थ्रिलर फिल्म में नवीन निश्चल हीरो थे. निर्देशक थे मोहन सहगल. 'घर'(1978) उनकी पहली ऐसी फिल्म थी, जिसने उन्हें एक समर्थ अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया.
मुख्य धरा की फिल्में करने के बावजूद रेखा की पहचान उमराव जान से है. कहते हैं उमराव जान के रोल के लिए उन्होंने बाकायदा गाना भी सीखा. उनकी गायकी का जादू लोगों ने अनेक समारोह में देखा-सुना है. उमराव जान उनकी अभिनय यात्रा में मील का पत्थर साबित हुई. उमराव जान की तवायफ और मुकद्दर का सिकंदर की तवायफ का आकलन करें तो रेखा के अभिनय की वेरायटी का कायल होना पड़ता है. वे सही मायने में वर्स्टाइल अभिनेत्री हैं.
कमर्शिलय फिल्मों के साथ रेखा ने ऑफ बीट फिल्में भी की हैं. जिनमें कलयुग (1981, निर्देशक श्याम बेनेगल), विजेता (1982, निर्देशक गोविंद निहलानी), उत्सव (1984, निर्देशक गिरीश कर्नार्ड) और इजाज़त(1987, निर्देशक गुलज़ार) शामिल हैं. श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, गिरीश कर्नार्ड, गुलज़ार और मुज़फ्फर अली (उमराव जान) जैसे एक नहीं पांच निर्देशक अगर किसी मसाला फिल्म की हीरोइन के साथ काम करते हैं तो समझ लेना चाहिए कि उसके अभिनय में कैसी और कितनी वैरायटी होगी.
इसके अलावा, कमर्शियल फिल्मों में भी उन्होंने अलग तरह की भूमिकाएं निभाईं. 'खून भरी मांग' (निर्देशक राकेश रोशन) एक अद्भुत कलात्मक फिल्म थी जिसमें रेखा के चरित्र का कमोबेश वैसा ही कायाकल्प होता है जैसा उनकी रियल लाइफ में हुआ था. बहुत ही साधारण महिला अनिन्य सुंदरी में तब्दील हो जाती है और खूंखार तरीके से बदला लेती है. इसके लिए उन्हें 1988 का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला.
पुष्पावली और जेमिनी गणेशन की बेटी रेखा को उसके बचपन में पिता ने पितृत्व की स्वीकरोक्ति नहीं दी थी. बाद में, अपने कैरियर के चरम पर, रेखा ने एक पत्रिका के साक्षात्कारकर्ता को कहा कि उनके पिता की उपेक्षा अब भी उन्हें भड़का देती थी एवं उन्होंने सुलह करने के प्रयासों को नजरअंदाज कर दिया था. अपनी मां पुष्पावल्ली के बारे रेखा ने सिमी गरेवाल को एक साक्षात्कार में बताया था कि मां अक्सर उनके (पिता) के बारे में बात करती थी और कहा करती थी कि 'उनके साथ नहीं रहने के बावजूद उसने उनकी उपस्थिति को हर समय मेहसूस किया.' 1991 में पुष्पावल्ली की मृत्यु हो गई.
जेमिनी गणेशन के कथन को सच मानें तो मां की मृत्यु के पांच साल बाद रेखा और पिता के साथ रिश्तों में सुधार होने लगा था. यह बात जेमिनी ने सिने ब्लिट्ज को दिए एक साक्षात्कार में कही थी. उनका कहना था, 'रेखा और मेरे बीच इतना अच्छा तालमेल है. हम वास्तव में करीब हैं.' इस बारे में रेखा का वक्तव्य देखने को नहीं मिलता. 2005 में जेमिनी गणेशन का निधन हो गया.
वो कहावत है ना पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. रेखा जब महज़ एक साल की थी तब उन्होंने तेलगु भाषा के नाटक इंति गुट्टू में एक छोटी सी भूमिका अदा कर ली थी. एक सांवली सी मोटी और सामान्य सी नज़र आने वाली किसी लड़की का कैसा और कितना कायाकल्प हो सकता है रेखा इसकी मिसाल हैं. समय के साथ न सिर्फ उनकी खूबसूरती बढ़ती गई बल्कि उनकी अदाकारी में भी निखार आता रहा. उम्र बढ़ने के साथ खूबसूरती ढलान की ओर बढ़ने लगती है लेकिन रेखा इस मामले में अपवाद थीं उम्र बढ़ने के साथ उनकी खूबसूरती में ना सिर्फ इज़ाफा हुआ बल्कि वह और मादक नज़र आने लगी थीं.
रेखा की मातृभाषा तेलुगु है. वह हिंदी और अंग्रेजी फर्राटे से बोलती हैं. दक्षिण भारत से बहुत सारी अभिनेत्रियां बॉलीवुड में आई हैं. लंबा समय हिंदी फिल्मों में गुज़ारने के बाद भी उनकी हिंदी में आज भी साउथ इंडियन टच है. हेमा मालिनी को देख लीजिए मथुरा जैसे हिंदी बेल्ट की सांसद हैं, लेकिन उनकी हिंदी चुगली कर देती है कि बोलने वाली महिला साउथ इंडियन है. रेखा की हिंदी अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा साफ सुथरी है, उसमें साउथ का टच मुश्किल से ही मिलता है.
एक साक्षात्कार में रेखा कह रहीं थीं कि उनकी फिल्मों के आने की इच्छा बिलकुल नहीं थी, मज़ाकिया अंदाज़ में वे कहती हैं मुझे तो एक तरह से मार मार के फिल्मों में लाया गया. बहरहाल जिसने भी ये किया अच्छा किया. नहीं तो बॉलीवुड को ऐसी अदाकार कैसे नसीब होती ? कुछ लोगों के लिए उम्र महज़ एक नंबर होती है. रेखा उनमें सहर्ष शामिल की जा सकती हैं. उनके लिए उम्र सचमुच एक नंबर भर है.
Rani Sahu
Next Story