सम्पादकीय

हिंसा पर लगाम

Gulabi
5 Feb 2021 8:06 AM GMT
हिंसा पर लगाम
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हिंसक विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के खिलाफ जारी बिहार सरकार के नए दिशा-निर्देश की चर्चा न केवल महत्वपूर्ण

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंसक विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के खिलाफ जारी बिहार सरकार के नए दिशा-निर्देश की चर्चा न केवल महत्वपूर्ण, बल्कि विचारणीय भी है। बिहार सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश में कहा गया है कि अगर कोई हिंसक विरोध प्रदर्शन में भाग लेता है, तो वह सरकारी नौकरी और अनुबंध के लिए पात्र नहीं होगा। आदेश में कहा गया है कि पुलिस एक व्यक्ति के आचरण प्रमाण पत्र में उसके ऐसे अपराध को सूचीबद्ध कर सकती है।

सरकार के इस निर्देश से युवाओं को संदेश देने की कोशिश है कि वे किसी तरह के विरोध प्रदर्शन में उलझकर किसी भी आपराधिक कृत्य में शामिल न हों। इसमें कोई शक नहीं कि सरकार का यह फैसला बहुत कड़ा है और युवाओं की ऊर्जावान अभिव्यक्ति को भी बाधित कर सकता है। अनेक बार किसी सामान्य मांग के लिए होने वाले धरना-प्रदर्शन को भी अचानक उग्र होते देखा गया है। किसी भी आंदोलन में तरह-तरह के लोग आ शामिल होते हैं और उसमें शामिल होने से पहले हर एक का चरित्र सत्यापन कठिन है, लेकिन जब मुकदमे दर्ज होते हैं, तब पूरे समूह का नाम दर्ज कराने की कोशिश आम है। इस निर्देश पर चिंता यहीं शुरू होती है।

बिहार सरकार द्वारा जारी निर्देश में पूरी कड़ाई से कहा गया है कि हिंसा करने वाले लोगों को गंभीर परिणामों के लिए तैयार रहना होगा, इस निर्देश के विरोध की मूल वजह भी यही है। वैसे किसी अपराधी या आपराधिक कृत्य करने वालों को सरकारी नौकरी में आने से रोकने के लिए पहले से ही व्यवस्था है, पर पहली बार विरोध प्रदर्शन में होने वाली हिंसा को निशाना बनाया गया है। आम तौर पर हमने विरोध प्रदर्शन के दौरान होने वार्ली ंहसा को राजनीतिक स्तर पर माफ होते देखा है। एक परंपरा-सी बन गई है। दिल्ली के किसान आंदोलन में भी हम देख रहे हैं कि किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने की मांग हो रही है। इसमें एक पक्ष यह भी है कि पुलिस ने मनमाने ढंग से मामले दर्ज किए हैं।
देश गवाह है, संपूर्ण क्रांति से उपजे अनेक नेताओं को हमने प्रदेश-देश में उच्च पदों पर जाते देखा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हिंसक विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के बाद राजनीति में जाना तो संभव है, पर सरकारी नौकरी मिलना असंभव? इस दिशा-निर्देश की भावना भले गलत न हो, लेकिन इसे लागू करने वाली एजेंसी की जमीनी निष्पक्षता, क्षमता और पारदर्शिता पर गौर कर लेना चाहिए। यह कोई नहीं चाहेगा कि कोई हिंसक तत्व सरकारी नौकरी में आए, लेकिन हर कोई यह जरूर चाहेगा कि इस निर्देश का किसी भी युवा के खिलाफ दुरुपयोग न हो।
समाज में बढ़ती हिंसा चिंता का कारण है, लेकिन उसे रोकने के लिए अन्य उपाय ज्यादा जरूरी हैं। सरकारी नौकरियों का बहुत आकर्षण है, लेकिन बमुश्किल दो से तीन प्रतिशत युवाओं को ही यह नसीब होती है। ऐसे में, अगर समाज में बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है, तो निस्संदेह अपर्याप्त है। बिहार जैसे राज्यों में सबसे पहले राजनीति में बढ़ती हिंसा को रोकना होगा। पुलिस को न्यायपूर्ण और संवेदनशील बनाकर समाज के आपराधिक तत्वों को काबू में करना होगा, सामाजिक संगठनों को भी हिंसा के खिलाफ सशक्त और सक्रिय करना होगा। साथ ही, शासन-प्रशासन से यह उम्मीद गलत नहीं कि राज्य में किसी हिंसक विरोध प्रदर्शन की नौबत ही न आने पाए।


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