सम्पादकीय

बेलगाम पर लगाम

Subhi
29 Oct 2022 5:15 AM GMT
बेलगाम पर लगाम
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दरअसल, राजनेता इसलिए किसी धर्म, जाति, समुदाय के खिलाफ और प्रतिपक्षी पर तीखी व्यक्तिगत टिप्पणियां करने से गुरेज नहीं करते कि उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो पाती। मगर अब शायद राजनेताओं को समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां के मामले से कुछ सबक मिले।

Written by जनसत्ता: दरअसल, राजनेता इसलिए किसी धर्म, जाति, समुदाय के खिलाफ और प्रतिपक्षी पर तीखी व्यक्तिगत टिप्पणियां करने से गुरेज नहीं करते कि उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो पाती। मगर अब शायद राजनेताओं को समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां के मामले से कुछ सबक मिले।

आजम खां को भड़काऊ और नफरती भाषण देने की वजह से दोषी करार दिया गया। उन्हें पच्चीस हजार रुपए का जुर्माना और तीन साल कैद की सजा सुनाई गई है। इससे समाजवादी पार्टी की राजनीतिक पकड़ और आजम खां के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा, वह अलग बात है, मगर महत्त्वपूर्ण यह है कि इस फैसले से राजनेताओं के आपत्तिजनक और अलोकतांत्रिक बयानों पर अंकुश लगाने की नजीर बनी है।

राजनीति में प्रतिद्वंद्वी पर कटाक्ष करना, उसकी कमियों को सामने लाना और तीखे प्रहार करना गलत नहीं माना जाता। बल्कि विपक्षी दलों से तो यह अपेक्षा की जाती है कि वे सत्तापक्ष की गलत नीतियों, फैसलों और कामकाज के अनुचित तरीकों के खिलाफ आवाज उठाएं। मगर इसकी भी एक मर्यादा होती है।

शालीन भाषा में भी गलत बातों का प्रतिकार किया जा सकता है, सत्ता की नीतियों का विरोध किया जा सकता है, बल्कि यही लोकतांत्रिक तरीका होता है। मगर कुछ राजनीतिक दल मान बैठे हैं कि सत्ता पक्ष या अपने प्रतिपक्षी के खिलाफ वे जितनी कड़वी भाषा का इस्तेमाल करेंगे, जितना वे उसके नेताओं पर व्यक्तिगत हमले करेंगे, उतना ही उनका जनाधार बढ़ेगा।

यह प्रवृत्ति बहुत खतरनाक रूप से बढ़ चुकी है। अब न केवल विपक्षी, बल्कि सत्ता पक्ष के नेता भी जवाबी हमले के रूप में खूब बढ़-चढ़ कर अशोभन, भड़काऊ और नफरत फैलाने वाले बयान देते नजर आते हैं। जब से अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की घेरेबंदी कर चुनावी समीकरण हल किए जाने लगे हैं, तब से ऐसे भाषणों की बाढ़-सी आ गई है। जैसे नेताओं की जुबान पर कोई लगाम ही न रह गई हो।

आजम खां ने भी इसी झोंक में न सिर्फ वहां के जिलाधिकारी के खिलाफ व्यक्तिगत तल्ख टिप्पणियां की थी, बल्कि प्रधानमंत्री के खिलाफ भी जहर उगले थे। कायदे से चुनाव प्रचार के समय दिए जाने वाले नफरती और आपत्तिजनक बयानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का अधिकार निर्वाचन आयोग को है, मगर वह प्राय: अपने कान में तेल डाले रहता है।

अगर ऐसे बयानों के खिलाफ मुकदमा किया जाता है, तो वह लंबे समय तक अदालतों में लटका रहता और अंतत: बेअसर साबित होता है। इसी का नतीजा है कि राजनेताओं का मनोबल बढ़ता गया है। पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे बयानों के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई न करने पर पुलिस के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का आदेश दिया।

तब से उम्मीद बनी है कि अब राजनेता अपनी जुबान को कुछ साफ करने की कोशिश करेंगे। अब आजम खां को मिली सजा से और कड़ा संदेश मिला है। मगर स्वाभाविक ही लोगों के मन में सवाल बने हुए हैं कि ऐसे राजनेता हर दल में हैं, तो क्या उनके खिलाफ भी कभी ऐसी कड़ी कार्रवाई हो पाएगी!

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