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- पुनर्वास की नीति...

विस्थापन, विकास और इतिहास का कोई एक सिरा भी अलग करेंगे, तो युग की परिभाषा में दायित्व बोध कमजोर पड़ जाएगा। इन्हीं संदर्भों में भूअधिग्रहण के कई काल खंड अतीत से आज तक की नब्ज टटोल रहे हैं और यही विषय हिमाचल के सामने अपने अधिकार की मांग कर रहा है। प्रदेश में फोरलेन प्रभावितोंे की मांगों पर गौर करती मंत्रिमंडल की उपसमिति भले ही मंडी में पंचायत कर ले, लेकिन यह विषय केवल त्वरित राहत के लाग लपेट में पूर्ण व्याख्या नहीं कर सकता। यह मुश्किल विषय भी नहीं हंै, लेकिन विकास की शर्त की इस प्राथमिकता को अंगीकार करने की आवश्यकता है। विस्थापन का श्रेष्ठ हल पुनर्वास है और यह जमीन के बदले जमीन, रोजगार के बदले रोजगार, घर के बदले घर, कारोबार के बदले कारोबार और सामुदायिक एहसास को फिर से सिंचित करने का तरीका होना चाहिए। ऐसे में चार गुना मुआवजे की मांग का दायरा समझना होगा। हमने आज तक विकास को देखते हुए यह नहीं सोचा कि इसके जरिए आए आर्थिक बदलाव को उस समुदाय में कैसे बांटा जाए, जिसकी कुर्बानी से परिवर्तन संभव हुआ। विकास के चित्र का प्रचार करते हुए हमारे मंच तो ऊंचे हो गए, लेकिन जिनका आकाश गुम हुआ, उन्हें विस्थापन की सौदेबाजी का मुजरिम बना दिया गया। विस्थापन अपने जीवन से खुशहाली के निशान मिटाने जैसी कठिन सहमति है, फिर भी लोग कभी बांध, कभी सड़क, कभी एयरपोर्ट या कभी शहरी विकास की अमानत खड़ी करने के लिए अपना घर गंवाते हैं।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल
