सम्पादकीय

घर के दरवाजे वाले बाजार का नियमन: ऐसी कंपनियों पर नियंत्रण जरूरी, जिन्होंने भारत को अपने उत्पादों का डंपिंग ग्राउंड बना दिया

Gulabi
3 April 2021 4:41 PM GMT
घर के दरवाजे वाले बाजार का नियमन: ऐसी कंपनियों पर नियंत्रण जरूरी, जिन्होंने भारत को अपने उत्पादों का डंपिंग ग्राउंड बना दिया
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कोरोना संक्रमण से निर्मित हुई ऑनलाइन खरीदारी देश के कोने-कोने में करोड़ों उपभोक्ताओं की आदत और व्यवहार का अभिन्न अंग बन गई है

कोरोना संक्रमण से निर्मित हुई ऑनलाइन खरीदारी देश के कोने-कोने में करोड़ों उपभोक्ताओं की आदत और व्यवहार का अभिन्न अंग बन गई है। ऑनलाइन उत्पादों के कैटलॉग चेक करके मनपसंद वस्तुओं की एक क्लिक पर वापसी की सुविधा के साथ घर के दरवाजे पर डिलीवरी का लाभप्रद बाजार ई-कॉमर्स की देन है। देश में ई-कॉमर्स कितनी तेजी से छलांगें लगाकर आगे बढ़ रहा है, इसका अनुमान ई-कॉमर्स से संबंधित कुछ नई रिपोर्टों से लगाया जा सकता है। विश्व प्रसिद्ध ग्लोबल प्रोफेशनल र्सिवसेज फर्म अलवारेज एंड मार्सल इंडिया और सीआइआइ इंस्टीट्यूट ऑफ लॉजिस्टिक्स द्वारा तैयार रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ई-कॉमर्स का जो कारोबार 2010 में एक अरब डॉलर से भी कम था, वह 2019 में 30 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया और अब 2024 तक 100 अरब डॉलर के पार पहुंच सकता है। गोल्डमैन सैक्श का भी अनुमान है कि भारत का ई-कॉमर्स कारोबार 27 फीसद चक्रवर्ती ब्याज दर से बढ़ते हुए 2024 तक 99 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। अमेरिकी कंपनी एफआइएस की ग्लोबल पेमेंट रिपोर्ट, 2021 में कहा गया है कि भारत में बाय नाउ, पे लेटर के चलते ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम दूसरे देशों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ रहा है। देश में जिस रफ्तार से ई-कॉमर्स बढ़ रहा है, उसी रफ्तार से ई-कॉमर्स के तहत विदेशी निवेश भी बढ़ रहा है। ऐसे में देश में ई-कॉमर्स के चमकीले बाजार तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए दुनियाभर की बड़ी-बड़ी ऑनलाइन कंपनियों के कदम भारत की ओर तेजी से बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं।



कोरोना संक्रमण के चलते घर बैठे सामान प्राप्त करने की प्रवृत्ति बन गई

कोरोना संक्रमण की चुनौतियों का सामना कर रहे देश के करोड़ों लोगों के लिए घर बैठे सामान प्राप्त करने की प्रवृत्ति जीवन का अहम भाग बन गई है। विभिन्न वैश्विक अध्ययन रिपोर्टों के मुताबिक बड़ी संख्या में लोगों का मानना है कि वे अब खरीदारी के लिए भीड़भाड़ में नहीं जाएंगे। भारत में इंटरनेट मीडिया लोकल सर्कल ने पिछले दिनों विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के मद्देजनर एक विशेष सर्वे किया। इसमें यह बात सामने आई कि 49 फीसद भारतीय अब खरीदारी के लिए ई-कॉमर्स साइट एवं एप को वरीयता देने लगे हैं।

बढ़ता डिजिटलीकरण

बढ़ते डिजिटलीकरण, इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की लगातार बढ़ती संख्या, मोबाइल और डाटा पैकेज, दोनों का सस्ता होना भी ई-कॉमर्स के बढ़ने के प्रमुख कारण हैं। मोबाइल ब्रॉडबैंड इंडिया ट्रैफिक इंडेक्स, 2021 के मुताबिक डाटा खपत बढ़ने की रफ्तार पूरी दुनिया में सबसे अधिक भारत में है। पिछले वर्ष 10 करोड़ नए 4जी उपभोक्ताओं के जुड़ने से देश में उनकी संख्या 70 करोड़ से अधिक हो गई है। ट्राई के मुताबिक जनवरी 2021 में भारत में ब्राडबैंड उपयोग करने वालों की संख्या बढ़कर 75.76 करोड़ पहुंच गई। रेडसीर कंसल्टिंग की नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2019-20 में जो डिजिटल भुगतान बाजार करीब 2,162 हजार अरब रुपये रहा, वह 2025 तक तीन गुना से भी अधिक बढ़कर 7,092 हजार अरब रुपये पर पहुंच जाना अनुमानित है।

ई-कॉमर्स बढ़ा: खरीदारी में क्षेत्रीय भाषाओं की सुविधा

देश में पहली बार ई-कॉमर्स का इस्तेमाल कर रहे लोगों को खरीदारी में आसानी हो, इसके लिए कुछ कंपनियों द्वारा विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में खरीद की सुविधा शुरू किए जाने से भी ई-कॉमर्स बढ़ा है। जैसे-जैसे देश में ई-कॉमर्स आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे विभिन्न औद्योगिक संगठनों और छोटे उद्योगों-कारोबारियों की ई-कॉमर्स के प्रति शिकायतें भी बढ़ रही हैं। इनका कहना है कि विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा गलाकाट प्रतिस्पर्धा करने के लिए अपने मार्केट प्लेटफॉर्मों के संचालन के लिए भारत में लाखों करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं।

ई-कॉमर्स में एफडीआइ नीति में स्थायित्व और निरंतरता लाई जाए

देश के छोटे कारोबारियों द्वारा यह भी कहा गया है कि अमेजन जैसी ई-कॉमर्स कंपनियां द्वारा अपने प्लेटफॉर्म पर गुपचुप तरीके से भारी छूट उपलब्ध कराकर छोटे कारोबार के भविष्य के सामने चिंताएं की लकीरें खींची जा रही हैं। ऐसे में हाल में सरकार द्वारा विभिन्न पक्षों के साथ नई ई-कॉमर्स नीति को लेकर विचार-विमर्श किया गया। इसमें देश के उद्योग-कारोबार संगठनों ने कहा कि नई ई-कॉमर्स नीति के तहत छोटे उद्यमियों और कारोबारियों के हितों का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। ई-कॉमर्स की वैश्विक और भारतीय कंपनियों के लिए समान अवसर मुहैया कराए जाने चाहिए, ताकि छूट और विशेष बिक्री के जरिये बाजार को बिगाड़ा न जा सके। कई बड़ी कंपनियों ने सरकार को सुझाव दिया है कि ई-कॉमर्स में एफडीआइ नीति में स्थायित्व और निरंतरता लाई जाए।

नई ई-कॉमर्स नीति में सरकार को उपभोक्ताओं के हितों और उत्पादों की गुणवत्ता पर देना होगा ध्यान

नई ई-कॉमर्स नीति तैयार करते समय सरकार का दायित्व है कि इससे देश की विकास आकांक्षाएं पूरी हों और बाजार भी विफलता और विसंगति से बचा रहे। नई नीति के तहत सरकार द्वारा देश में बढ़ते हुए ई-कॉमर्स बाजार में उपभोक्ताओं के हितों और उत्पादों की गुणवत्ता संबंधी शिकायतों के संतोषजनक समाधान के लिए नियामक भी सुनिश्चित किया जाना होगा। इसके तहत ऐसी बहुराष्ट्रीय ई-कॉमर्स कंपनियों पर उपयुक्त नियंत्रण करना होगा, जिन्होंने भारत को अपने उत्पादों का डंपिंग ग्राउंड बना दिया है। नई नीति में ऑनलाइन शॉपिंग से जुड़ी कंपनियों के बाजार, बुनियादी ढांचे के साथ-साथ निर्यात बढ़ाए जाने संबंधी रणनीति भी शामिल करनी होगी। इन रणनीतिक कदमों के साथ-साथ सरकार द्वारा देश के छोटे उद्योग-कारोबार को ई-कॉमर्स से जोड़ने के लिए विशेष सुविधाएं भी सुनिश्चित करनी होंगी। हम उम्मीद करें कि सरकार लगातार बढ़ रहे ई-कॉमर्स की चमकीली संभावनाओं को भुनाने, करोड़ों उपभोक्ताओं को संतुष्ट करने और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए ई-कॉमर्स कंपनियों तथा देश के उद्योग-कारोबार से संबंधित विभिन्न पक्षों के हितों के बीच उपयुक्त समन्वय से नई ई-कॉमर्स नीति को मूर्तरूप देने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी।
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