सम्पादकीय

सोशल मीडियाई भद्रों के सादर सूचनार्थ

Rani Sahu
1 March 2022 7:10 PM GMT
सोशल मीडियाई भद्रों के सादर सूचनार्थ
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हे मेरे अधम, निम्न, मध्यम, उच्च आर्थिक कैटेगरी के सोशल मीडियाई मित्रो! आपको यह जानकर हार्दिक दुख होगा कि कल से मैं व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, फेसबुक के ग्रुपों से कार्यभार मुक्त हो रहा हूं

हे मेरे अधम, निम्न, मध्यम, उच्च आर्थिक कैटेगरी के सोशल मीडियाई मित्रो! आपको यह जानकर हार्दिक दुख होगा कि कल से मैं व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, फेसबुक के ग्रुपों से कार्यभार मुक्त हो रहा हूं। यह बात दूसरी है कि राजनीति की मृत्युशैया पर लेटे होने के बाद भी कोई अपनी राजनीतिक हरकतों से कार्यभार मुक्त होना नहीं चाहता। मेरे कार्यभार मुक्त होने के पीछे किसी भी तरह की कोई सोशल मीडियाई सार्वजनिक वजह नहीं है। इसलिए मेरे मित्र इसे अन्यथा न लें। असल में सोशल मीडियाई ग्रुपों से मुक्त होने का कारण यह है कि मेरे इन ग्रुपों पर इतने अधिक आभासी मित्र हो गए थे कि उनको अब हैंडल करना मेरे बस से बाहर हो रहा था। उनके चलते मैं अपने घर के सदस्यों से अलग होने लगा था। अपने घर के सदस्यों से अब मुझे बातें करना मेरे लिए भार लगने लगा था। भद्रो! अब आपसे झूठ क्या बोलना, क्यों बोलना जबकि आज का दौर झूठ-फरेब का दौर है। असल में मैं अब अपने को ही नहीं संभाल पा रहा हूं तो आप जैसे गुणी मित्रों को और कैसे संभालूं? अब शरीर के अंगों और मुझमें तालमेल का अभाव गहरा होता जा रहा है। घर के सदस्यों और मुझमें तालमेल का अभाव तो उसी दिन से रहा है जिस दिन से हम घर के सदस्य हुए हैं।

अब हाथों को करने को कहता कुछ हूं तो वे करते कुछ और हैं। पैरों को चलने को कहता कहीं और हूं तो वे अपनी मर्जी कर मुझे ले कहीं और जाते हैं। जुबान से कहना कुछ चाहता हूं और वह कह जाती कुछ और है। भद्रो ! जबसे व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, फेसबुकिया ग्रुपों में मेंबरशिप ली थी तबसे वाहियात पोस्टें पढ़-पढ़, लिख-लिख कर दिमाग तो कदम-कदम पर धोखा देने ही लगा था, पर अब चौबीसों घंटे ग्रुप पर गड़ी होने के चलते आंखें भी धोखा देने लगी हैं। मैं सोना चाहता हूं, पर आंखें मुझे सोने नहीं देतीं। मैं सोशल मीडिया से आंखें फेरना चाहता हूं, पर मेरी आंखें मुझे आंखें फेरने नहीं देतीं। अब आप ही बताइए, आखिर कोई कितनी देर तक लगातार इन ग्रुपों की पोस्टों पर अपनी आंखें गड़ाए रख सकता है भला? इन ग्रुपों का मेरे दिमाग पर साइड इफैक्ट होने के बाद अब मेरी आंखों पर भी साइड इफैक्ट होने लगा है। मैं देखना कुछ चाहता हूं तो मेरी आंखें मुझे दिखाती कुछ और हैं।
मैं पढ़ना कुछ और चाहता हूं तो मेरी आंखें मुझे पढ़वातीं कुछ और हैं। इसलिए अपनी आंखों के हित में अब मैं तमाम तरह के सोशल मीडिया ग्रुपों से अपने को अलग कर रहा हूं। वैसे भी ग्रुपों के माध्यम से सृजन की बातें कम हो रही हैं और अपने-अपने हित साधने की बातें अधिक। भद्रो! यद्यपि मुझे अपने तमाम ग्रुपों से अपने को अलग करते हुए असहनीय दुख की प्रतीती हो रही है जिसकी उच्च से उच्च कोटि का दुखियारा कल्पना भी नहीं कर सकता। मुझे इस वक्त इतना दुख हो रहा है कि इतना तो आत्मा को शरीर से अलग होते हुए भी दुख न होता होगा। मुझे इस वक्त इतना दुख हो रहा है कि इतना तो रीतिकालीन प्रेमी-प्रेमिका को एक-दूसरे से अलग होते हुए भी न होता होगा। मुझे इस वक्त इतना दुख हो रहा है कि इतना तो सारी नौकरी रिश्वत वाली सीट पर बैठे सदाचारी को अपनी सेवानिवृत्ति पर भी नहीं होता होगा। मैं अपने इस दुख को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। मेरा यह दुख शब्दातीत है। सोशल मीडिया पर रहते हुए मैं अपने दिमाग की समस्या से तो न बच सका, पर अब मेरे पास अपनी आंखों की समस्या से बचने का एकमात्र यही तरीका बचा है। शेष आंखें बची रहें तो ग्रुप से बाहर भी कुछ देख सकूंगा।
अशोक गौतम


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