सम्पादकीय

शरणार्थियों की नागरिकता

Gulabi
30 May 2021 5:25 AM GMT
शरणार्थियों की नागरिकता
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नरेन्द्र मोदी सरकार ने भारत में रह रहे शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए बड़ा कदम उठाया है

नरेन्द्र मोदी सरकार ने भारत में रह रहे शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए बड़ा कदम उठाया है। देश के 13 जिलों में रह रहे अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बंगलादेश से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों से नागरिकता के लिए आवेदन मांगे हैं। गृह मंत्रालय ने यह कदम नागरिकता कानून 1955 की धारा 16 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए कानून की धारा पांच के अन्तर्गत उठाया है। इसका सीएए यानि नागरिकता संशोधन कानून से कोई संबंध नहीं है। यह विशुद्ध रूप से मानवीय आधार पर उठाया कदम है कि बिना सीएए के पीड़ितों को नागरिकता दी जाए। यद्यपि 2019 में पारित नागरिकता संशाेधन कानून के तहत अभी तक नियमों को तैयार ही नहीं किया गया है।


नागरिकता संशोधन कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। लगभग 140 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लम्बित हैं। अब सरकार के सामने सवाल यह था कि गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब के 13 जिलों में रह रहे हिन्दू, सिख, जैन और बौद्धों जैसे गैर मुस्लिमों को नागरिकता कैैसे दी जाए। इन सभी का स्वाभाविक स्थान भारत ही है। इसलिए सरकार नेे यह कदम उठाया।

अविभाजित भारत में रहने वाले लाखों लोग अलग-अलग धर्म को मानते हुए आजादी के वक्त वर्ष 1947 से पाकिस्तान आैर बंगलादेश में रह रहे थे। इसके साथ ही अफगानिस्तान भी मुस्लिम राष्ट्र है और यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि इन देशों में हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों और ईसाई समुदाय के लोगों का धार्मिक आधार पर उत्पीड़​न किया जाता है। पाकिस्तान में इन धर्मों के लोगों की बहू-बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। उनकी इज्जत लूटी जाती है, उनका जबरन धर्म परिवर्तन करा निकाह किया जाता है। इनके धर्म स्थलों को आग के हवाले कर दिया जाता है। ऐसा ही बंगलादेश में होता आया है। अपना जीवन बचाने के लिए परिवारों के परिवार भारत में आकर शरण मांगते हैं। पाकिस्तान, बंगलादेश आैर अफगानिस्तान का संविधान उन्हें मुस्लिम धार्मिक देश बनाता है। इन तीनों देशों में अल्पसंख्यकों को अपनी धार्मिक पद्धति, उसके पालन और आस्था रखने में बाधा आती है। इनकी दर्द भरी दास्तानें सुनकर तो सबका दिल पसीज जाता है। भारत आने वाले लोगों के वीजा और पासपोर्ट की अवधि समाप्त हो चुकी है। कुछ लोगों के पास कोई दस्तावेज नहीं हैं। अगर वे भारत को अपना देश मान कर यहां रहना चाहते हैं तो सरकार पर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का दायित्व भी है। हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध हमारे ही भाई बंधू हैं। अगर इनके दुख-दर्द दूर होते हैं तो फिर विरोध का कोई औचित्य ही नहीं है।

भारत में सवा लाख से ज्यादा तिब्बति शरणार्थी, 65 हजार से ज्यादा श्रीलंकाई, पन्द्रह-बीस हजार रोहिंग्या दस हजार से अधिक अफगानी, लगभग आठ सौ सोमालियाई और एक हजार दूसरे शरणार्थी हैं। इनके अलावा ऐसे शरणार्थी भी हैं, जिनकी कोई पहचान ही नहीं है। इन शरणार्थियों को देश में बसेरा संकट का विषय माना जाता है। निश्चित रूप से भारत को शरणार्थियों का देश नहीं बनाया जा सकता।

नागरिकता संशोधन कानून पर इतना बवाल मचाया गया। सड़कों पर प्रदर्शन हुए। दिल्ली में दंगे भड़क उठे थे जबकि यह कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता, बल्कि भारत से बिछुड़े हुए अपने ही लोगों को जीवन का अधिकार देता है। यहां तक मुस्लिमों को शरण नहीं देने का संबंध है, सरकार का कहना है कि मुस्लिम देशों में वे बहुसंख्यक हैं, इसलिए उनके उत्पीड़न का सवाल ही पैदा नहीं होता। इससे कानूनी, लोकतांत्रिक या धर्मनिरपेक्ष अधिकार प्रभावित नहीं होते। यह संसद की सम्प्रभु शक्ति से जुड़ा मामला है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश इस्लामी राष्ट्र घोषित हैं तो 6 समुदायों के विश्वास के आधार पर सताए गए, पीड़ित समूह के लिए उचित वर्गीकरण का निर्माण किया गया है। नागरिकता कानून को लेकर भ्रम फैलाया गया। जबकि केन्द्र सरकार ने आश्वासन भी दिया था ​कि वह दूसरे समुदायों के प्रार्थना पत्रों पर अलग-अलग मामले में गौर करेगी। पाकिस्तान के नागरिक रहे गायक अदनान सामी को भी भारत की नागरिकता प्रदान की गई है तो फिर इतने बवाल की जरूरत क्या थी।

पूर्वोत्तर राज्याें में बवाल का कारण यह रहा कि उनके यहां ने बड़ी संख्या में इन समुदायों के लोग ठहरे हुए हैं, अब उन्हें नागरिकता मिलती है तो वह स्थाई हो जाएंगे। इससे उनकी संस्कृति, भाषा, खानपान आैर अन्य पहचान काे खतरा पैदा हो जाएगा। अपनी अस्मिता की चिंता बेवजह है। विविधता में एकता ही भारत की विशिष्ट पहचान है। लुट-पिट कर आए हिन्दुओं, सिखों को नागरिकता मिलने से वे भारत की मुख्यधारा में शामिल होंगे। उन्हें पहचान मिलेगी। वे आम भारतीयों की तरह काम-धंधा कर सकेंगे। आम भारतीयाें की तरह बैंकों आैर अन्य सरकारी सेवाओं और सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगे और परिवार का पालन-पोषण कर सकेंगे।

आदित्य नारायण चोपड़ा


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