सम्पादकीय

मंदी, महंगाई और मेहनताना

Subhi
23 Dec 2022 4:33 AM GMT
मंदी, महंगाई और मेहनताना
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उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में जहां लगभग चार हजार डालर प्रतिमाह प्राप्त होता है, वहीं उभरती अर्थव्यवस्थाओं- जिसमें भारत भी शामिल है- में लगभग अठारह सौ डालर प्रतिमाह मिलता है। इस अध्ययन में यह भी पता चला है कि कोविड-19 के दौरान साढ़े सात से साढ़े नौ करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में चले गए हैं।

रंजना मिश्रा; उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में जहां लगभग चार हजार डालर प्रतिमाह प्राप्त होता है, वहीं उभरती अर्थव्यवस्थाओं- जिसमें भारत भी शामिल है- में लगभग अठारह सौ डालर प्रतिमाह मिलता है। इस अध्ययन में यह भी पता चला है कि कोविड-19 के दौरान साढ़े सात से साढ़े नौ करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में चले गए हैं।

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आइएलओ ने दो रिपोर्टें जारी की हैं, जिनमें महामारी के बाद वैश्विक रोजगार की स्थितियों के बारे में चर्चा की गई है। दरअसल, कोविड-19 के चलते बहुत सारे लोगों का रोजगार छिन गया और परिस्थितियां काफी खराब होती चली गर्इं। महामारी का प्रभाव कम होने के बाद कुछ लोग तो वापस रोजगार से जुड़ गए, मगर अब भी बहुत सारे लोगों को उनका खोया रोजगार नहीं मिल पाया है।

आइएलओ की रिपोर्ट, 'ग्लोबल वेज रिपोर्ट 2022-23 : वेतन और क्रयशक्ति पर मुद्रास्फीति और कोविड-19 का प्रभाव' के अनुसार, 2022 की पहली छमाही में वास्तविक रूप से मासिक वेतन में 0.9 फीसद की गिरावट आई है। यह इस बात का संकेत है कि इक्कीसवीं सदी में पहली बार वास्तविक मजदूरी वृद्धि नकारात्मक स्तर तक गिर गई है, क्योंकि वास्तविक उत्पादकता वृद्धि और वास्तविक वेतन वृद्धि के बीच असमानता बढ़ रही है।

इस रिपोर्ट में जुड़वां संकट की बात की गई है, जिसमें मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी की स्थितियां शामिल हैं। दरअसल, महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर चल रही आर्थिक गतिविधियां धीमी होती चली गर्इं। दूसरी तरफ महंगाई बढ़ती रही, क्योंकि मांग और आपूर्ति का नियम टूटते ही महंगाई बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप दुनिया भर में वास्तविक मासिक वेतन में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट देखने को मिली।

इस स्थिति के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध और वैश्विक ऊर्जा संकट को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। कोविड महामारी की वजह से स्थितियां पहले ही ज्यादा खराब हो रही थीं, उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हो गया, जिससे वैश्विक हालात और बिगड़ गए। निम्न आय वाले देश विशेष रूप से इससे प्रभावित हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की दूसरी रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया महाद्वीप क्षेत्र में 2022 में लगभग 2.2 करोड़ नौकरियों का नुकसान हुआ है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सबसे कम वेतन पाने वालों की क्रय शक्ति को बनाए नहीं रखा जाता है, तो आय, असमानता और गरीबी में और बढ़ोतरी होगी।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन सामाजिक न्याय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त एक महत्त्वपूर्ण संगठन है, जो लोगों के श्रम और रोजगार से संबंधित आंकड़े एकत्रित करता और उनसे जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए उपाय सुझाता है, जिनके अनुरूप देशों की सरकारें और नीति निर्माता अपनी नीतियों को सुधार कर लोगों को रोजगार और श्रम से जोड़ सकते हैं। आइएलओ की स्थापना 1919 में वार्सा संधि के तहत की गई थी और आगे चल कर 1946 में इसको संयुक्त राष्ट्र की एक विशिष्ट एजंसी के रूप में स्थापित किया गया। वर्तमान में इसके 187 सदस्य देश हैं, जिनमें भारत भी शामिल है।

लोगों के वेतन पर आइएलओ की ये रिपोर्ट बताती हैं कि कर्मचारियों के वास्तविक और न्यूनतम वेतन में काफी अंतर बना हुआ है। दरअसल, न्यूनतम वेतन वह सामान्य वेतन होता है, जो किसी कर्मचारी को उसके नियोक्ता द्वारा मासिक या वार्षिक स्तर पर गणना करके प्रदान किया जाता है। न्यूनतम वेतन में अगर किसी भी स्तर पर वृद्धि होती है तो उसमें महंगाई को समायोजित नहीं किया जाता।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि महंगाई में होने वाली वृद्धि के हिसाब से ही वेतन में वृद्धि की जानी चाहिए, क्योंकि अगर महंगाई के हिसाब से व्यक्ति के वेतन में बढ़ोतरी नहीं होगी, तो वास्तव में उसके वेतन में गिरावट ही आएगी। मसलन, अगर वेतन में वृद्धि केवल एक फीसद हुई हो और महंगाई दस फीसद बढ़ गई हो, तो हम देखते हैं कि उसकी वेतन वृद्धि नकारात्मक ही रहती है। इसलिए जरूरी है कि महंगाई में जितने फीसद की बढ़ोतरी हुई हो, उसकी गणना करके उसके हिसाब से वेतन में वृद्धि की जानी चाहिए।

भारत में न्यूनतम वेतन 2006 के 4,398 रुपए से बढ़ कर 2021 में 17,017 रुपए प्रतिमाह हो गया। यह सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय का डेटा है। जब इसमें मुद्रास्फीति आंकी गई तो वास्तविक वेतन वृद्धि 2006 के 9.3 फीसद से गिरकर 2021 में – 0.2 फीसद पर आ गई। इस तरह वेतन और महंगाई में बढ़ोतरी का औसत निकाला गया तो पता चला कि वास्तव में उसकी आय कम हो गई है।

चीन में 2019 में विकास दर 5.6 फीसद से घटकर 2022 में 2 फीसद रह गई है। भारत में भी महामारी के बाद नकारात्मक वृद्धि देखी गई, यानी भारत की जो अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही थी, वह घटने लगी है। रिपोर्ट के अनुसार, कम आय वाले लोगों और परिवारों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है, क्योंकि अधिकांश आय जीवन की आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च हो जाती है और अक्सर देखा जाता है कि इन आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं में ही अधिक मूल्य वृद्धि होती है।

आइएलओ के महानिदेशक ने कहा है कि हमें कम आय वाले लोगों पर ज्यादा ध्यान देना होगा, ताकि हम उनको मिलने वाली आय को इस तरह से समायोजित करें, जिससे महंगाई का दबाव उनके ऊपर न बढ़े। बढ़ती असमानता चिंताजनक है और एशिया प्रशांत स्तर पर केवल उच्च कौशल वाले व्यवसाय कोविड-19 से उबर पाए हैं। 2019 से 2021 तक उच्च कुशल श्रमिकों के बीच लगभग 1.6 फीसद की रोजगार वृद्धि भी देखी गई है, लेकिन यह वृद्धि निम्न और मध्यम कौशल वाले श्रमिकों के बीच नहीं दिखी।

जो महिलाएं कोविड-19 के चलते किसी रोजगार से बाहर हो गर्इं, उनके लिए फिर से उस रोजगार से जुड़ना कठिन हो गया। इसके अलावा छोटे व्यवसायियों का व्यवसाय एक बार बंद हो जाने पर, उनकी आय भी बंद हो जाती है और फिर उस व्यवसाय को शुरू करना उनके लिए बहुत कठिन हो जाता है। ऐसे में बहुत से छोटे व्यवसायी अपना व्यवसाय खो चुके हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार, जी-20 देशों में शामिल विकसित और विकासशील देशों के बीच वास्तविक मजदूरी के औसत स्तर में भी महत्त्वपूर्ण अंतर है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में जहां लगभग चार हजार डालर प्रतिमाह प्राप्त होता है, वहीं उभरती अर्थव्यवस्थाओं- जिसमें भारत भी शामिल है- में लगभग अठारह सौ डालर प्रतिमाह मिलता है। इस अध्ययन में यह भी पता चला है कि कोविड-19 के दौरान साढ़े सात से साढ़े नौ करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में चले गए हैं।

इस रिपोर्ट में आइएलओ ने इसका समाधान बताते हुए कहा है कि नीतिगत विकल्प चुने जाने चाहिए और भविष्य में विवेकपूर्ण न्यूनतम वेतन समायोजन पर ध्यान देना चाहिए, ताकि लोग कम से कम इतना वेतन प्राप्त कर सकें कि वे गरीबी और असमानता वाली स्थितियों से बच सकें। कम आय वाले परिवारों के जीवन स्तर की सुरक्षा करना बहुत जरूरी है। श्रम बाजार संगठनों और वेतन नीतियों को मजबूत करना होगा। हमें ऐसे रोजगारों का निर्माण करना होगा, जहां वेतन की स्थितियां बेहतर हों और औपचारिक रूप से लोगों को रोजगार मिल सके।

इसके अलावा लैंगिक वेतन अंतर पर भी ध्यान देना होगा। हमें बहुपक्षीय दृष्टिकोण अपनाना होगा। जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को दूर करना, महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव को समाप्त करना होगा। गरीबी, हिंसा और बहिष्कार की स्थितियों को समाप्त करने के प्रयास करने होंगे। लोगों की आवश्यक स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच होना जरूरी है। इसके अलावा नीति निर्माताओं को ऐसी नीतियां बनानी होंगी, ताकि हम उन तकनीकों को अपना सकें, जो लोगों को विश्व से जोड़ सकें और उन्हें एक समानता की ओर आगे ले जाएं। असमानता और गरीबी की स्थितियों को व्यावहारिक नीतियों के जरिए दूर करना होगा।


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