- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- भारत के हाल का आईना
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना महामारी और लॉकडाउन की आम जिंदगी पर कैसी मार पड़ी है, इसे अगर देखना हो तो गुजरात के शहर सूरत पर गौर करनी चाहिए। वहां के हाल पर हाल में आई रिपोर्टों ने मार्मिक तस्वीर पेश की है। भारत के डायमंड यानी हीरा केंद्र के रूप में जाना जाने वाला सूरत दुनिया के 80 फीसदी हीरों की पॉलिश करता रहा है। यहां लगभग 7,50,000 मजदूर हीरा चमकाने के कारखानों में काम करते हैं। हालांकि लॉकडाउन के बाद जून से वहां कारखाने खुलने लगे हैं, लेकिन वहां काम करने वाले कामगारों का मानना है कि हीरा मजदूरों का भविष्य अच्छा नहीं है। उनकी आय लॉकडाउन से पहले जितनी थी, उससे आधी रह गई है। इसलिए बहुत से मजदूर जो गांव वापस चले गए हैं, वे शहर में वापस नहीं आना चाहते हैं। मजदूरों की शिकायत है कि राज्य सरकार ने हीरा उद्योग को बेसहारा छोड़ दिया। लॉकडाउन लागू होने के बाद हीरा उद्योग को अपने हाल पर छोड़ दिया गया। सूरत में करीब 5,000 हीरे के कारखाने हैं, जो मुख्य रूप से दो प्रकार के श्रमिकों को रोजगार देते हैं।
एक वे जो मोटे बिन तराशे हीरे का व्यापार करते हैं और दूसरे वो जो हीरे को तराशने और आकार देने का काम करते हैं। लॉकडाउन का ज्यादातर खामियाजा हीरे तराशने वाले मजदूरों को उठाना पड़ा है। वे अभी भी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। जानकारों के मुताबिक बिन तराशा हीरा विदेशों से आता है। जब लॉकडाउन शुरू हुआ, तो व्यापार बंद हो गया। इसलिए व्यापारी कच्चा हीरा नहीं खरीद पाए। इससे उत्पादन रुक गया, कारखाने पूरी तरह बंद हो गए और मजदूरों के पास काम नहीं रहा। गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार के बहुत से श्रमिक कारखानों के फिर से खुलने के लिए सूरत में दो महीने तक इंतजार करते रहे, लेकिन भुखमरी की स्थिति आने पर वे अपने घर चले गए। अब काम एक सीमित पैमाने पर शुरू हो गया है, लेकिन बड़ी संख्या में श्रमिकों ने काम की गारंटी ना मिलने के कारण वापस आने से मना कर दिया है। गौरतलब है कि मार्च से लेकर अब तक 13 हीरा पालिश के काम से जुड़े लोगों ने आत्महत्या कर ली है। हीरे के लिए सबसे बड़े निर्यात बाजारों में से एक चीन के साथ भारत के तनाव और देश में आर्थिक मदी की आशंका के बीच हीरा श्रमिकों की स्थिति विकट दिख रही है। कुल मिलाकर हीरा मजदूरों के काम करने की स्थिति भी बहुत खराब है।