इससे शर्मनाक और कुछ नहीं कि जब उगाही-वसूली के गंभीर आरोपों से घिरे महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए, तब उनका बचाव किया जा रहा है और वह भी बहुत भोंडे ढंग से। बचाव करने वालों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेताओं के साथ जिस तरह शिवसेना और कांग्रेस के नेता भी शामिल हो गए हैं, उससे तो यही लगता है कि दाल में कुछ काला होने के बजाय पूरी दाल ही काली है और इस सनसनीखेज कांड के तार केवल अनिल देशमुख तक सीमित नहीं हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अनिल देशमुख जिस सहायक पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाझे के जरिये सौ करोड़ रुपये महीना मांग रहे थे, उसकी बहाली की कोशिश खुद उद्धव ठाकरे ने तब की थी, जब देवेंद्र फड़नवीस मुख्यमंत्री थे। आखिर निलंबन के बाद नौकरी छोड़ चुके इंस्पेक्टर की बहाली के पीछे उद्धव का क्या स्वार्थ था? सवाल यह भी है कि उद्धव के मुख्यमंत्री बनने के बाद जब इस इंस्पेक्टर की बहाली हुई तो कांग्रेस और राकांपा ने कोई आपत्ति क्यों नहीं जताई? क्या कारण रहा कि उसे बहाल करने के बाद सारे महत्वपूर्ण मामले सौंपे गए? आखिर यह मनमानी किसके इशारे पर और किस मकसद से की गई? क्या इसलिए कि उससे उगाही-वसूली कराई जा सके? क्या इसी मकसद के लिए मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक लदी कार खड़ी की गई? जो भी हो, यह महज दुर्योग नहीं कि यह संदेह सचिन वाझे पर ही है कि उसने ही विस्फोटकों एवं कार का इंतजाम किया और बाद में कार मालिक को रास्ते से हटाया।