सम्पादकीय

हकीकत और फसाना

Gulabi Jagat
6 May 2022 12:23 PM GMT
हकीकत और फसाना
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भारत सरकार पर कोरोना से हुई मौतों के आंकड़े छिपाने के आरोप लगते रहे हैं
Written by जनसत्ता।
भारत सरकार पर कोरोना से हुई मौतों के आंकड़े छिपाने के आरोप लगते रहे हैं। न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में। इसे लेकर कई विदेशी संगठनों और शोध पत्रिकाओं ने भी अपने अनुमानित आंकड़े प्रकाशित किए, जिसमें मौतों की संख्या सरकार के बताए आंकड़े से कई गुना ज्यादा थी। सरकार शुरू से इसका खंडन करती रही है।
अब उसने 2020 के जन्म और मृत्यु पंजीकरण के आधार पर तथ्य पेश करते हुए कहा है कि लांसेट जैसी कुछ पत्रिकाओं ने बेतुके ढंग से मौतों का आंकड़ा बढ़-चढ़ कर दिखाया और भारत को बदनाम करने की कोशिश की। नीति आयोग ने ऐसी एजंसियों को नसीहत भी दी है कि उन्हें ऐसे आंकड़े देने बंद कर देना चाहिए। नीति आयोग ने 2020 के आंकड़ों पर आधारित नागरिक पंजीकरण प्रणाली यानी सीआरएस रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि 2019 में कुल मौतें 76.4 लाख थीं, जो 2020 में 6.2 फीसद बढ़ कर 81.2 लाख हो गई थी। इस तरह 2019 की तुलना में 2020 के मृत्यु पंजीकरण में 4.75 लाख की वृद्धि दर्ज की गई। जबकि लांसेट पत्रिका ने कोरोना की वजह से भारत में हुई मौतों का अनुमान चालीस लाख सत्तर हजार पेश किया था, जो दुनिया में सबसे अधिक है।
कोरोना की दूसरी लहर भारत में सबसे भयावह रूप में उभरी थी। उस दौरान अस्पतालों में बिस्तर खाली न होने, समुचित इलाज न मिल पाने की वजह से सबसे अधिक मौतें हुई थीं। सब जगह अफरा-तफरी का आलम था। उस दौरान बहुत सारे अस्पतालों में आक्सीजन की भारी कमी हो गई थी, जिसके चलते सरकार को दूसरे देशों से आक्सीजन मंगाना पड़ा।
आक्सीजन की कमी के चलते बहुत सारी मौतें हुई थीं। उस दौरान श्मशानों और कब्रिस्तानों में जगह न मिल पाने के कारण लाशें गंगा में बहाने या गंगा की रेती पर दफनाने के प्रमाण भी सामने आए थे। कई जगह अतिरिक्त श्मशान बनाने पड़े थे, खुले में शवदाह की व्यवस्था की गई थी, जहां रात-रात भर चिताएं जलती थीं। इसके चलते केंद्र और कुछ राज्य सरकारों को काफी किरकिरी झेलनी पड़ी थी।
इन सारी स्थितियों को देखते हुए लोगों का अनुमान था कि भारी पैमाने पर मौतें हुई हैं, क्योंकि सामान्य मौतों के मामले में इस तरह अंतिम क्रिया को लेकर अफरा-तफरी कभी नहीं देखी गई। यानी श्मशानों की क्षमता से अधिक उनमें लाशें पहुंचने के कारण ही ऐसी स्थिति पैदा हुई थी। इसलिए अब भी कई लोग सरकार के ताजा आंकड़ों पर शक जाहिर करें, तो हैरानी नहीं।
दरअसल, कोरोना से हुई मौतें सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की नाकामी का भी पता देती हैं, इसलिए कई राज्यों में सरकारों ने वास्तविक संख्या छिपाने की कोशिश की। इतना ही नहीं, संसद में भी एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि आक्सीजन की कमी की वजह से कोई मौत नहीं हुई। तब भी सरकार की तीखी आलोचना हुई थी।
बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि कोरोना से हुई मौतों पर सरकार को मुआवजा देना होगा। अभी तक उस दिशा में इसलिए आगे नहीं बढ़ा जा सका है कि कोरोना से हुई मौतों के स्पष्ट विवरण उपलब्ध नहीं हैं। बहुत सारे अस्पतालों ने बहुत सारी मौतों की वजह कोरोना लिखा ही नहीं, जैसे आक्सीजन की कमी को मौत का कारण नहीं लिखा। अगर सरकार ने अस्पतालों के उसी ब्योरे को सही मान लिया है, तो इस रपट को सवालों से परे नहीं माना जा सकता।
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