सम्पादकीय

वास्तविक बनाम आभासी रिश्ते

Subhi
19 Aug 2022 5:38 AM GMT
वास्तविक बनाम आभासी रिश्ते
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पिछले दो दशक में अभूतपूर्व तकनीकी प्रगति से जैसे पूरा सामाजिक परिदृश्य ही बदल गया है। कोरोना काल से पहले बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन कभी-कभार ही जाता था

आकांक्षा दीक्षित: पिछले दो दशक में अभूतपूर्व तकनीकी प्रगति से जैसे पूरा सामाजिक परिदृश्य ही बदल गया है। कोरोना काल से पहले बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन कभी-कभार ही जाता था, पर पूर्णबंदी के समय वैकल्पिक व्यवस्था के तहत शुरू हुई 'आनलाइन' कक्षाओं के कारण छोटे-छोटे बच्चों को भी मोबाइल देना बाध्यता हो गई। कोई भी चीज जब तक सीमा के अंदर हो, तब तक सही रहती है, सीमा तोड़ते ही नुकसान पहुंचाने लगती है।

वही हाल मोबाइल का भी है। निस्संदेह तकनीक के लाभ हैं, घर बैठे पढ़ाई हो जाती है, दुनिया भर की सूचनाएं उपलब्ध हो जाती हैं, मगर इसके कई दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चों में आ रहे व्यवहारगत परिवर्तन के लिए सलाह लेने अभिभावक मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं। बच्चे भी शारीरिक खेल-कूद, व्यायाम आदि की जगह सोशल मीडिया पर समय बिताना ज्यादा पसंद करते हैं।

जितना समय वे आभासी दुनिया में बिता रहे हैं, उतना ही वास्तविक दुनिया से दूर होते जा रहे हैं। देखी गई चीजें मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं और अगर उनको समझने की परिपक्वता न हो तो इसका परिणाम अच्छा नहीं निकलता। आभासी को सच और सच को महत्त्वहीन मानने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। आजकल बच्चों पर पढ़ाई का बहुत दबाव है। तकनीक के जरिए उनकी समस्याओं का समाधान करना सरल हुआ है, यहां तक तो ठीक भी है। कुछ सीमा तक मनोरंजन के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है।

पारिवारिक और सामाजिक संबंधों की मजबूती के लिए आपसी बातचीत भी जरूरी है। कोविड के समय सोशल मीडिया ने निस्संदेह सकारात्मक भूमिका निभाई। इससे अनेक विषयों पर बच्चों को नई जानकारियां भी प्राप्त होती हैं, बच्चों की सोच को एक नया आयाम मिलता है। उनकी संप्रेषण क्षमता का विकास भी इसके माध्यम से होता है। मगर ये लाभ तभी संभव हैं, जब इसका उपयोग सीमित मात्रा में, आवश्यकतानुसार किया जाए।

बच्चे भावनात्मक रूप से अत्यंत संवेदनशील होते हैं, इसलिए सोशल मीडिया पर अगर उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली सामग्री पर नियंत्रण सही ढंग से न किया जाए तो यह माध्यम उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है। सोशल मीडिया पर आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी सक्रिय हैं। चूंकि यहां अपनी पहचान छिपाना या छद्म पहचान से सक्रिय होना सरल है और इसके लिए अभी कोई प्रभावी कानून नहीं है, इसलिए इसका लाभ उठा कर ऐसे अराजक तत्व बच्चों को कई तरह से हानि पहुंचा सकते हैं। अमेरिका में किए गए बारह से पंद्रह साल की आयुवर्ग के बच्चों पर एक सर्वेक्षण में लगभग आधे बच्चों ने संकेत दिया कि उन्हें 'आनलाइन' रहते हुए उनके साथ आपत्तिजनक संवाद किया गया या उन्हें धमकाया गया।

इसी प्रकार सिडनी की यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलाजी के शोधकर्ताओं ने सोशल मीडिया के उपयोग से जुड़े छियालीस हानिकारक प्रभावों की जानकारी दी है। इनमें से चिंता, अवसाद, आत्महत्या के खयाल, अपराध, ईर्ष्या, सूचना अधिभार और आनलाइन सुरक्षा की अनुपलब्धता आदि शामिल हैं। यानी सोशल मीडिया का अनियंत्रित प्रयोग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होता है। सोशल मीडिया पर जरूरत से अधिक समय व्यतीत करने पर उसकी लत लगने का खतरा रहता है।

ब्रिटिश साइकोलाजिकल सोसायटी के एक अध्ययन में पाया गया कि पूरे दिन अगर बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग करते रहते हैं, तो यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक होता है। एक अन्य अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया कि जो बच्चे सोशल मीडिया पर कम सक्रिय हैं, वे उन बच्चों की तुलना में शांत, घर-परिवार से संतुष्ट और प्रसन्न हैं, जो इन माध्यमों पर अधिक समय व्यतीत करते हैं। यह भी पाया गया कि अगर सोशल मीडिया पर अपेक्षित समर्थन यानी 'लाइक', 'कमेंट' न मिले तो बच्चों में हीनता की भावना आने लगती है और धीरे-धीरे उनका आत्मविश्वास भी प्रभावित होने लगता है। ये साधन आत्मीय संबंधों का स्थान नहीं ले सकते।

समस्या में ही उसका समाधान भी निहित होता है। यह ठीक है कि इंटरनेट का उपयोग करना आजकल अनिवार्य है। सारी दुनिया की जानकारी और सूचनाएं एक स्पर्श पर प्राप्त की जा सकती हैं। पर आभासी दुनिया और वास्तविक दुनिया का अंतर सदा रहेगा। हमारे बच्चे हमारा भविष्य हैं। इनका सर्वांगीण विकास हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। व्यस्तता के बावजूद प्रत्येक मात-पिता, अभिभावक का दायित्व है कि वे अपने बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय व्यतीत करें, उनकी समस्याएं सुनें और उनकी कठिनाइयों का निराकरण करें।

कम से कम एक समय का भोजन साथ करें और उस समय सभी लोग फोन आदि का उपयोग न करें। जितना आपसी संवाद बेहतर होगा, उतना ही वाह्य प्रभाव कम पड़ेगा। अगर पारिवारिक संबंध प्रगाढ़ होंगे, तो बच्चे अपनी समस्याएं भी सहजता से अभिभावकों के साथ बांट सकेंगे। पारिवारिक प्रगाढ़ता से मानसिक एकाकीपन और साइबर अपराधों पर भी अंकुश लगेगा, जो हमारे समाज के लिए सबसे बड़ा गुणात्मक और सकारात्मक परिवर्तन होगा।

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