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- प्रतिक्रियात्मक चुनाव
हिमाचल के उपचुनावों का विजय घोष अंततः ऐसा ईको सिस्टम निर्मित करता है, जिसकी हर भूमिका में आम जनता अपने विषयों की पैरवी करती है। यही वजह है कि हार के बाद मुख्यमंत्री ने साफगोई से स्वीकार कर लिया कि कहीं महंगाई का तड़का और कहीं भीतरघात का धुआं रहा है। जाहिर तौर पर हिमाचल की जनता अपने भीतर राष्ट्रीय संवेदना को उद्वेलित करते हुए यह कह रही है कि आम आदमी की जरूरतें पूरी करना बेहद कठिन और दुर्लभ होता जा रहा है। हिमाचल की परिस्थितियों में चुनावों का हर पहलू सुविचारित इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यह प्रदेश मध्यमवर्गीय परिवारों की छत के नीचे अपनी हसरतें और उम्मीदें पालता है। मध्यमवर्ग की मान्यताएं और मूल्य हमेशा तरक्की पसंद व परिवर्तनशील रहते हैं और इसीलिए हर चुनाव के आलेख पूरी तरह पढ़े जाते हैं। इस चुनाव की निराशाजनक परिणति में सरकार को यह सोचना होगा कि आखिर हर घर के चूल्हे पर चर्चा क्या रही। हिमाचल नौकरीपेशा है और अधिकतर मां-बाप अपने अस्तित्व की पहचान में औलाद की नौकरी को अहमियत देते हैं यानी हर घर बहुत कुछ कहता है और कहने की स्पष्टता में चुनावी पहर का इस्तेमाल करता है।
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