सम्पादकीय

RBI की मुश्किलें बढ़ीं, खुदरा महंगाई दर में फिर हुई बढ़ोतरी

Subhi
15 Oct 2022 3:08 AM GMT
RBI की मुश्किलें बढ़ीं, खुदरा महंगाई दर में फिर हुई बढ़ोतरी
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खुदरा महंगाई दर सितंबर में लगातार दूसरे महीने बढ़कर 7.41 फीसदी पर पहुंच गई, जो पिछले पांच महीने में सबसे ज्यादा है। इससे रिजर्व बैंक की परेशानी और बढ़ेगी। पिछले महीने खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी की बड़ी वजह खाने की कीमतों में आई तेजी है, जो 22 महीने के शिखर पर जा पहुंची। अनाज और सब्जियों के दाम में तेजी की वजह सितंबर में देश के कई हिस्सों में हुई बारिश से सप्लाई में आई बाधा है, जो अस्थायी दिक्कत है। लेकिन कोर इन्फ्लेशन भी ऊंची बनी हुई है।

नवभारतटाइम्स; खुदरा महंगाई दर सितंबर में लगातार दूसरे महीने बढ़कर 7.41 फीसदी पर पहुंच गई, जो पिछले पांच महीने में सबसे ज्यादा है। इससे रिजर्व बैंक की परेशानी और बढ़ेगी। पिछले महीने खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी की बड़ी वजह खाने की कीमतों में आई तेजी है, जो 22 महीने के शिखर पर जा पहुंची। अनाज और सब्जियों के दाम में तेजी की वजह सितंबर में देश के कई हिस्सों में हुई बारिश से सप्लाई में आई बाधा है, जो अस्थायी दिक्कत है। लेकिन कोर इन्फ्लेशन भी ऊंची बनी हुई है। इसमें अनाज और पेट्रोल-डीजल जैसे ईंधन की महंगाई शामिल नहीं की जाती। सितंबर में कोर इन्फ्लेशन 6.1 फीसदी के साथ चार महीने में सबसे अधिक रही।

रिजर्व बैंक की परेशानी यह भी है कि पिछले 9 महीने से खुदरा महंगाई दर उसके लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है। आरबीआई ने इसके लिए 4 फीसदी का लक्ष्य तय किया है और 2 फीसदी कम या ज्यादा की फ्लेक्सिबिलिटी भी रखी है। जिस एक्ट के तहत रिजर्व बैंक काम करता है, उसमें कहा गया है कि 9 महीने तक खुदरा महंगाई दर के लक्ष्य से ऊपर रहने पर उसे सरकार को आने वाले वक्त में इसका अनुमान और उसे नियंत्रित करने के उपाय बताने होंगे। महंगाई कम करने और अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी की वजह से रिजर्व बैंक पिछले मई से कर्ज महंगा कर रहा है। कर्ज महंगा होने से डिमांड कम होती है, जिससे महंगाई पर अंकुश लगता है।

मई से अब तक आरबीआई नीतिगत दरों में 1.9 फीसदी की बढ़ोतरी कर चुका है। अभी रीपो रेट 5.9 फीसदी है, जो कोरोना महामारी से पहले के स्तर से भी अधिक है। माना जा रहा है कि दिसंबर के पहले हफ्ते में भी आरबीआई ब्याज दरों में 0.35 फीसदी का इजाफा कर सकता है। इससे आर्थिक ग्रोथ पर दबाव बन सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल ही में वित्त वर्ष 2023 में जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटाकर 6.8 फीसदी कर दिया था, जबकि आरबीआई ने 7 फीसदी का अनुमान रखा है। ब्याज दरों में बढ़ोतरी से डिमांड में कमी आएगी, जिससे आगे चलकर ग्रोथ और कम हो सकती है। यूं भी अगले साल वैश्विक मंदी के आने का खतरा है।

मंदी से भी ग्रोथ में कमी आएगी, जिसका असर अभी से निर्यात की कमी के रूप में दिखने लगा है। दूसरी तरफ, सरकार का ध्यान ग्रोथ बढ़ाने पर होगा। वह तब रिजर्व बैंक पर डिमांड और इन्वेस्टमेंट बढ़ाने के लिए ब्याज दरों में कटौती का दबाव बना सकती है। महंगाई कम रखते हुए तेज ग्रोथ की बुनियाद पक्की करना आरबीआई के लिए आसान नहीं होगा, वह भी ऐसे दौर में जब यूक्रेन युद्ध और अमेरिका की मौद्रिक नीतियों की वजह से दुनिया भर में आर्थिक अनिश्चितता काफी बढ़ गई हो।

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