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- वृद्धि की दर
Written by जनसत्ता: हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगली दो तिमाहियों में इसके सुधरने की उम्मीद है और यह सात फीसद वार्षिक विकास दर के लक्ष्य तक आसानी से पहुंच सकती है। रिजर्व बैंक ने भी यही अनुमान जताया था कि चौथी तिमाही में विकास दर में उत्साहजनक नतीजे आएंगे और फिर अर्थव्यवस्था अपनी पुरानी लय में लौटनी शुरू हो जाएगी।
मगर ताजा आंकड़ों में जिस तरह औद्योगिक क्षेत्र का प्रदर्शन निराशाजनक दर्ज हुआ है, उसके मद्देनजर सरकार को अभी बहुत कुछ करने की जरूरत रेखांकित होती है। विनिर्माण और खनन क्षेत्र में भारी गिरावट दर्ज हुई है। इसकी वजह महंगाई बताई जा रही है। विनिर्माण क्षेत्र की उत्पादन दर में 4.3 फीसद की गिरावट आई है, जबकि पिछले साल की इसी अवधि में इसमें 5.6 फीसद की वृद्धि दर्ज हुई थी।
खनन क्षेत्र में भी उत्पादन दर 2.8 फीसद घटी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसमें 14.5 फीसद की वृद्धि दर्ज हुई थी। इसी प्रकार निर्माण, बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य जन-केंद्रित सेवाओं की जीवीए वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गई है। इस अवधि की विकास दर को पेशेवर सेवाओं और भवन निर्माण के क्षेत्र में हुई वृद्धि ने संभाल लिया।
ताजा विकास दर को लेकर चिंता इसलिए जताई जा रही है कि अभी तक महंगाई के मोर्चे पर काबू पाने में कोई कारगर उपाय नजर नहीं आ रहा। बैंकों की ब्याज दरें बढ़ी हुई हैं और रुपए की कीमत भी संभल नहीं रही। विकसित देशों में मंदी का माहौल है। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि जुलाई से सितंबर के दौरान लोगों ने खर्च किया, घरेलू बाजार में मांग बढ़ी और निवेश में भी उत्साह दिखाई दिया।
मगर त्योहारी मौसम होने की वजह से भी ऐसा हुआ होगा। फिर यह भी कि इस आधार पर समग्र विकास का चित्र खींचना संभव नहीं हो सकता। विकास दर का असर इससे नापा जाता है कि देश में नए रोजगार का सृजन कितना हो पाया और कितने लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल सके। अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि जब विनिर्माण, निर्माण और खनन क्षेत्र में उत्पादन की रफ्तार सुस्त पड़ी हुई है, तो उनमें रोजगार सृजन करना मुश्किल काम है। इन्हीं क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार की गुंजाइश रहती है। नए रोजगार सृजित नहीं होंगे, तो गरीबी रेखा से लोगों का बाहर निकलना और फिर बाजार में पैसे का प्रवाह बढ़ना कठिन ही रहेगा।
सेवा के जिन क्षेत्रों में वृद्धि दर्ज हुई है, उनमें, होटल व्यवसाय, परिवहन, व्यापार प्रमुख हैं। मगर दूसरी तरफ संचार तकनीक के क्षेत्र में उत्साह नहीं देखा जा रहा, जिसकी वजह से कंपनियों को छंटनी जैसे उपाय आजमाने पड़ रहे हैं। इस तरह अभी विकास दर को संतुलित करने की दिशा में चुनौतियां लगातार बनी हुई हैं। निवेश को लेकर बेशक कुछ सकारात्मक नतीजे देखने को मिल रहे हैं, पर बड़ी चुनौती निर्यात बढ़ाने को लेकर है।
जब तक निर्यात नहीं बढ़ेगा, तब तक औद्योगिक क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद धुंधली पड़ी रहेगी। केवल घरेलू बाजार के भरोसे उत्पादन दर में बढ़ोतरी का दावा नहीं किया जा सकता। महंगाई की दर ऊंची होने से घरेलू बाजार में सुस्ती पसरी पड़ी है। ऐसे में वार्षिक वृद्धि दर में आंकड़े बेशक कुछ क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन से अनुमानित लक्ष्य तक पहुंच भी जाएं, मगर संतुलित विकास दर का दावा नहीं किया जा सकता।