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भारतीय सीमा से सटे क्षेत्रों में पुलों और सड़कों का निर्माण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण पहल है
सुशांत सरीन, रक्षा विशेषज्ञ
भारतीय सीमा से सटे क्षेत्रों में पुलों और सड़कों का निर्माण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण पहल है. हाल ही में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने सीमा सड़क संगठन द्वारा निर्मित 27 पुलों एवं सड़कों का उद्घाटन किया है, जिनमें अधिकतर चीन सीमा के करीब हैं. उन्होंने उचित ही रेखांकित किया है कि आज के अनिश्चित माहौल में लड़ाइयों की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है. ऐसे में इन दुर्गम इलाकों में विकास जरूरी है. उल्लेखनीय है कि सरकार की भारतमाला परियोजना के तहत बीते छह-सात वर्षों में सीमावर्ती क्षेत्रों में कई सड़कों, पुलों, सुरंगों, रेल लाइनों, हवाई पट्टियों आदि का निर्माण हुआ है. इस परियोजना के महत्व को समझने के लिए हमें सीमा क्षेत्रों और संबधित पृष्ठभूमि को देखना चाहिए. भारत के अन्य पड़ोसी देशों से लगती सीमा से चीन से सटी सीमा बिल्कुल अलग है. ये क्षेत्र ज्यादातर दुर्गम और वीरान पहाड़ी इलाके हैं तथा वहां अधिक आबादी भी नहीं है. ऐसा भी नहीं है कि इन जगहों से व्यापार के बहुत रास्ते निकलते हों.
पहले इन इलाकों का विकास नहीं करने का एक बड़ा कारण यह था कि इसका कोई आर्थिक लाभ नहीं था. इसके बरक्स अगर हम भारत-पाकिस्तान सीमा को देखें, तो इन क्षेत्र में आबादी रहती है. पहले दोनों ही ओर से विकास नहीं हो रहा था. चीन के पास भी निवेश करने के लिए धन नहीं था और भारत की भी स्थिति ऐसी ही थी. जब दोनों ओर ही इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित नहीं हो रहे थे, तो किसी को फर्क भी नहीं पड़ता था. एक पहलू यह भी था कि जब चीन ने इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना शुरू किया, तो भारत में यह सामरिक सोच थी कि अगर हम भी सड़कें, रेल, हवाई पट्टी आदि बना दें, और अगर चीन के साथ लड़ाई छिड़ जाती है, किसी स्थिति में हमें पीछे हटना पड़ता है, तो शत्रु देश को इसका फायदा मिल सकता है.
इन सुविधाओं के न होने से उसे भीतर आने में बड़ी दुश्वारी होगी और उन स्थितियों का लाभ उठाकर हम उसे पीछे खदेड़ सकते हैं. बहुत पहले पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने इस बाबत बयान भी दिया था. पर धीरे-धीरे हमने यह महसूस किया कि चीन जिस तरह से निर्माण कर रहा है, उससे वह बड़ी तादाद में अपनी सेनाओं को सरहद पर ला सकता है तथा हमले की स्थिति में वह हमारे इलाकों पर काबिज हो सकता है. ऐसे में हमें उसे पीछे धकेलने में बहुत मुश्किल होगी क्योंकि ऐसी कई जगहों पर अपनी टुकड़ियां भेजने में कई दिनों का समय लग सकता है. इस स्थिति में जब तक हमारे सैनिक मोर्चे पर पहुंचेंगे, तब तक लड़ाई खत्म हो चुकी होगी.
इसके बाद हमें खतरे का अहसास हुआ और भारत ने भी इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने की ओर ध्यान देना शुरू किया. पिछली सरकारों के दौर में बातें तो हुईं, बड़ी-बड़ी योजनाएं भी बनीं, पर काम कुछ नहीं हुआ. जब केंद्र में मोदी सरकार आयी, तो इस दिशा में तेजी से पहल हुई. भारतमाला परियोजना के तहत सड़कें, रेल लाइनों, हवाई पट्टियों आदि का निर्माण तो हो ही रहा है, साथ ही पुरानी हवाई पट्टियों को भी बेहतर किया जा रहा है. साल 2017 में दोकलाम के बाद इन प्रयासों को और तेज करने की जरूरत महसूस हुई और 2020 में गलवान की झड़प के बाद तो देरी करने का कोई मतलब नहीं रह गया. यह अहसास भी मजबूत हुआ कि पुरानी रणनीति पर चलना ठीक नहीं है. चूंकि चीन लंबे समय से इन गतिविधियों में लगा हुआ है और उसके पास अधिक क्षमता व धन भी है, तो हम फिलहाल उसके बराबर तो इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित नहीं कर सकते हैं, पर जिस गति से और अपनी जरूरत के हिसाब से काम हो रहा है, वह ठीक है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का जो बयान आया है, वह इसी के अनुरूप है.
यह रेखांकित किया जाना चाहिए कि भारत सरकार दृढ़ निश्चय के साथ इस परियोजना को साकार करने में जुटी हुई है. अन्य देशों से जुड़ी सीमाओं का जहां तक प्रश्न है, तो बांग्लादेश सीमा पर बारिश की स्थिति में अक्सर बाड़, सड़कें आदि बह जाती हैं, पर बांग्लादेश या पाकिस्तान की सीमा पर वैसी चुनौतियां नहीं हैं, जो चीन से सटी सीमा पर है. पाकिस्तान की लगभग पूरी सीमा पर बाड़ लगायी जा चुकी है और नियमित चौकसी भी होती है. जहां नदी, नाले आदि हैं, वहां सेंसर लगाये गये हैं. वहां इंफ्रास्ट्रक्चर भी बहुत अच्छा है. बांग्लादेश से हमारा द्विपक्षीय सहयोग लगातार बढ़ रहा है, जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर भी विकसित हो रहा है. सुरक्षा से जुड़ी गतिविधियों, आवागमन और कारोबार के लिए हम नदियों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं. साथ ही, अंतर्देशीय सड़कें भी बनायी जा रही हैं. पाकिस्तान के साथ अभी हमारा कोई रिश्ता ही नहीं है, सो किसी तरह की ऐसी परियोजनाओं का सवाल भी पैदा नहीं होता. कुछ जगहों, जैसे- वाघा बॉर्डर, पोखरापार-मुनाबाब आदि कुछ जगहों पर चौकियां हैं. जहां तक सड़कों आदि की बात है, तो उनकी कोई कमी नहीं है.
चीन की सीमा पर जो चुनौतियां हैं, वे पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमा पर नहीं है. जैसा कि मैंने पहले कहा, सभी सीमाओं की स्थिति एक-दूसरे से अलग है. चीन की ओर से उस तरह की घुसपैठ नहीं होती है, जैसी पाकिस्तान या बांग्लादेश से होती है. बांग्लादेश से भारत में काम करने के लिए अधिकतर घुसपैठ होती है, जबकि पाकिस्तान से होनेवाली घुसपैठ भारत में अस्थिरता पैदा करने और आतंक फैलाने के इरादे से होती है. बांग्लादेश से लगनेवाले सीमा क्षेत्रों में बांग्लादेश से आये अवैध प्रवासन से आबादी का स्वरूप बदल गया है. सत्तर के दशक की स्थिति से आज की तुलना कर इस बात को सहज ही देखा जा सकता है.
इन इलाकों में आबादी बढ़ने की जो गति है, उसे जनसंख्या वृद्धि के आम आधारों से विश्लेषित नहीं किया जा सकता है. बहरहाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान की सीमा की सुरक्षा की रणनीति वह नहीं हो सकती है, जो हम चीन की सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के रूप में अपना रहे हैं. भारतमाला परियोजना के तहत जिस तेजी गति से निर्माण कार्य हो रहा है, उसके बहुत कम उदाहरण हमारे इतिहास में मिलेंगे. इससे सरकार की गंभीरता और प्राथमिकता का पता चलता है. अगर छिटपुट आलोचनाओं को छोड़ दें, तो जिस व्यापक दृष्टि और उद्देश्य के साथ यह महत्वाकांक्षी योजना आगे बढ़ रही है, उस पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है. यह परियोजना सामरिक सुरक्षा से जुड़ी है और इसकी निरंतरता बनी रहनी चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
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